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बिहार में परीक्षा की धांधली को लेकर हुए घोटाले में 25 साल बाद चार्जशीट दायर - श्रीनारद मीडिया

बिहार में परीक्षा की धांधली को लेकर हुए घोटाले में 25 साल बाद चार्जशीट दायर

बिहार में परीक्षा की धांधली को लेकर हुए घोटाले में 25 साल बाद चार्जशीट दायर

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार के निगरानी ब्यूरो ने किशनगंज जिला कार्यालय में चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों की बहाली में हुई धांधली में एफआईआर दर्ज करने के 25 साल बाद चार्जशीट दायर की है। भागलपुर स्थित निगरानी के विशेष न्यायालय में चार्जशीट दायर की गई है। इनमें 54 अभियुक्त बनाए गए हैं, जिनमें 53 चतुर्थवर्गीय कर्मचारी के अलावा किशनगंज जिला स्थापना के तत्कालीन प्रधान लिपिक सदानंद शर्मा शामिल हैं।

निगरानी ब्यूरो में 2019 में दर्ज एफआईआर में 68 नामजद अभियुक्त बनाए गए थे। इनमें 6 आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है, जबकि सात को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। साथ ही एक नामजद आरोपी व्यासमुनी प्रधान (जिला स्थापना में तत्कालीन एडीएम) के खिलाफ अभी विभाग से अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली है। अभियोजन स्वीकृति मिलते ही इन पर भी चार्जशीट दायर होगी। शेष 54 नामजद आरोपी बनाए गए हैं।

मामले में किशनगंज के दो तत्कालीन डीएम राधेश्याम बिहारी सिंह और के. सेंथिल कुमार की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है। इनके खिलाफ अभी जांच जारी है। इसमें राधेश्याम बिहारी सिंह बिहार प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी थे और प्रोन्नति पाकर आईएएस बने थे। वे सेवानिवृत हो चुके हैं। वहीं, के सेंथिल कुमार अभी सचिव रैंक में हैं। मामेल में जल्द अनुपूरक चार्जशीट भी दायर होगी, जिसमें दो तत्कालीन डीएम की भूमिका स्पष्ट की जाएगी।

यह है पूरा मामला

तत्कालीन डीएम राधेश्याम बिहारी सिंह के कार्यकाल 1999 में जिला कार्यालय में चतुर्थवर्गीय कर्मियों के 143 पदों पर बहाली का विज्ञापन आया था। बहाली प्रक्रिया 2006 में पूर्ण हुई। इस मामले में धांधली का आरोप लगाते हुए कुछ अभ्यर्थी कोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने 2011 में मामले की जांच निगरानी को सौंप दी। निगरानी ने करीब 8 वर्ष जांच करने के बाद धांधली को सही पाते हुए 2019 में एफआईआर दर्ज की, जिनमें 68 नामजद अभियुक्त बनाए गए थे। तब से इसकी जांच जारी है।

आंसरशीट से हुई थी छेड़छाड़,

निगरानी जांच में पता चला कि लिखित परीक्षा में धांधली की गई थी। सभी अभ्यर्थियों की कॉपियों की एफएसएल की पुलिस प्रयोगशाला से हैंडराइटिंग की जांच कराई गई। इसमें व्यापक स्तर पर धांधली के साक्ष्य मिले। 53 अभ्यर्थियों को धांधली से नौकरी दिलाई गई। कई अभ्यर्थियों की कॉपी में सही उत्तर के बाद भी कम अंक दिए गए। जिन्हें 19 अंक आए थे, उसमें एक को शून्य में बदलकर सिर्फ नौ अंक दे दिया गया। इसी तरह कई अभ्यर्थियों की कॉपी में अंकों के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें जबरन अयोग्य घोषित कर दिया गया।

यह हो सकता है इस मामले में

-जिन 53 अभ्यर्थियों के अंकों से धांधली कर उनके स्थान पर दूसरे की बहाली की गई है, उन सभी योग्य लोगों को उस समय से अब तक के तमाम लाभ के साथ नौकरी मिल सकती है। जिनकी उम्र समाप्त हो गई है, उन्हें वेतन समेत पेंशन मिल सकती है।

-जिन लोगों ने गलत तरीके से इतने समय तक नौकरी की, उनसे वेतन समेत अन्य लाभ की वसूली के साथ कारावास का दंड झेलना पड़ सकता है, हालांकि इस मामले में निगरानी कोर्ट के स्तर से अंतिम फैसला आने के बाद ही पूरी स्थिति स्पष्ट हो पाएगी।

 

 

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