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रजस्वला को लेकर नहीं बदली रूढ़िवादी मान्यताएं,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

रजस्वला को लेकर नहीं बदली रूढ़िवादी मान्यताएं,क्यों?

रजस्वला को लेकर नहीं बदली रूढ़िवादी मान्यताएं,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यह वो दौर है जहां मांओं के साथ पिता भी अपनी बेटियों को रजस्वला(माहवारी के दौरान की अवस्था) के लिए पहले से ही तैयार कर देते हैं। अब टीवी पर सैनिटरी पैड के विज्ञापन देखकर कोई चैनल नहीं बदलता। लड़कियां माहवारी के दौरान हर वो काम कर रही हैं, जो सामान्य दिनों में करती हैं।

लेकिन देहात में आज भी रुढ़िवादी मान्यताएं इस कदम हावी हैं कि 100 प्रतिशत किशोरियों को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है। 77 प्रतिशत का स्कूल जाना प्रभावित होता है। 40 प्रतिशत को कपड़ा इस्तेमाल करने से जननांगों पर घाव होते हैं। 85.3 प्रतिशत को उन पांच दिनों में डिप्रेशन होता है। 96.6 प्रतिशत लड़कियों को पेट में दर्द की शिकायत रहती है। यह सारे आंकड़े डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान संस्थान द्वारा एत्मादपुर तहसील, खंदौली ब्लाक के कुबेरपुर और भागूपुर गांव में 10 से 19 साल की 120 किशोरियों पर कराए गए सर्वे में सामने आए हैं।

इस तरह की गई सैंपलिंग

 

दोनों गांवों में से 120 किशोरियों का चयन लाटरी के आधार पर किया गया।इनसे खान-पान, शिक्षा, सैनिटरी पैड या कपड़े के इस्तेमाल, जननांगों की सफाई, माहवारी के दौरान होने वाली दिक्कतों, सैनिटरी पैड या कपड़ों के निस्तारण, लंबाई, वजन, बाडी मास इंडेक्स, पोषक तत्व संबंधी सवाल पूछे गए। उसके बाद 10 से 13, 14 से 16 और 17 से 19 साल के समूह बना दिए गए। इन समूहों की किशोरियों की जीवनचर्या का वैज्ञानिक आधार पर विश्लेष्ण किया गया।शोध में किशोरियों द्वारा माहवारी में लिए जाने वाले पोषक तत्वों के आंकड़े भी जुटाए गए।

सैंपलिंग से निकले तथ्य

– 52.5 प्रतिशत किशोरियों के परिवारों की महीने की आमदनी 10 से 15 हजार रुपये है।

– 64.1 प्रतिशत लड़कियां भोजन के अलावा अन्य पोषक तत्व नहीं लेती है।

– 73.3 प्रतिशत को माहवारी के बारे में पहली माहवारी से पहले कुछ नहीं पता था।

– 55.8 प्रतिशत रजस्वला होने पर रसोई में जाने की अनुमति नहीं है।

– 96.6 प्रतिशत को अचार नहीं छूने दिया जाता है।

– 81.6 प्रतिशत को खाना नहीं बनाने दिया जाता है।

– 93.3 प्रतिशत को खट्टा नहीं खाने को दिया जाता है।

एक दिन में पूरी दुनिया में 880 करोड़ महिलाएं हर रोज माहवारी से गुजरती हैं। यह सामान्य प्रक्रिया है। अभी भी इसे लेकर भ्रम है। देहात में जागरूकता नहीं है।शहरों में भी सर्वे कराएंगे, तो 40 प्रतिशत लड़कियां सैनिटरी पैड ही इस्तेमाल करती हैं।इससे यूटरस में संक्रमण होता है।स्कूल-कालेजों में कार्यशालाओं की जरूरत है। माहवारी के दौरान सफाई सबसे जरूरी है। जागरूकता अभियान की जरूरत है।

माहवारी के दौरान किशोरियों को जानकारी नहीं होती। कई बार गंभीर दर्द होता है, लेकिन शर्म और पारंपरिक मान्यताओं के कारण खुलकर बात नहीं कर पाती हैं।माहवारी के दौरान अगर सफाई न रखी जाए तो संक्रमण भी होता है। मैंने और फूड एंड न्यूट्रिशन विभाग की विषय विशेषज्ञ प्रिया यादव ने इस सर्वे को कराया। हमने अपने संस्थान में ही यह समस्या देखी है, सर्वे के बाद जागरूकता अभियान भी चलाया गया।

मैंने और मेरी सहेलियों ने माहवारी के दौरान आने वाली समस्याओं को झेला है और झेल रहे हैं। यही वजह है कि इस विषय पर सर्वे किया।यह शोध सिर्फ दो गांवों का है, लेकिन स्थिति शहर में भी खराब है।

सरकार उपलब्ध करा रही है कम कीमत में सैनिटरी पैड

सरकार माहवारी के दिनों में घास, पराली, गंदे कपड़े आदि इस्तेमाल करने से संक्रमित होने पर हो रही मौतों पर गंभीर है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों पर 20 रुपये में सैनिटरी पैड उपलब्ध कराए गए हैं।कई गांवों, स्कूल-कालेजों में सैनिटरी पैड की वेंडिग मशीनें लगाई हैं।इसके बावजूद 70 प्रतिशत किशोरियों तक सैनिटरी पैड की उपलब्धता नहीं है।

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