डेटा प्रोटेक्शन बिल: क्या बदलाव करना चाहती है सरकार?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

29 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है। संसद की संयुक्त समिति ने पर्सनल डेटा संरक्षण विधेयक 2019 को दो साल से ज्यादा समय तक विचार विमर्श करने के बाद अंतिम रूप दे दिया है। इस बिल को जल्द ही संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा। यह कानून डाटा के दुरुपयोग के खिलाफ व्यक्तियों को अधिकार प्रदान करता है। ।राष्ट्रीय सुरक्षा, कानूनी कार्यवाही के लिए इस डाटा का इस्तेमाल किया जाने के प्रावधान भी शामिल हैं। डाटा जुटाने वाली संस्थाओं की निगरानी के लिए डाटा संरक्षण प्राधिकरण स्थापित करने का भी प्रावधान किया गया है। ऐसे में आज समझेंगे की आखिर इस बिल की जरूरत क्यों है और क्या कुछ इसके प्रावधान हैं।

निजी डेटा  है क्या 

बिल का ड्राफ्ट सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज पीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में तैयार किया गया है। इस बिल में वो हरेक डेटा शामिल है जिससे किसी आदमी की पहचान होती हो। इसमें लोगों के नाम, फोटो, पता शामिल है। सरकारी आईडी कार्ड जैसे कि आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, पैन कार्ड आदि शामिल हैं। लोग क्या खरीद रहे हैं, कौन सी फिल्में देख रहे हैं और कहां जा रहे हैं जैसी चीजें भी शामिल हैं। इस बिल में कुछ डेटा को संवेदनशील माना गया है। वित्तीय लेन-देन, बायोमेट्रिक, सेक्युअल ओरियंटेशन, जाति, धर्म, राजनीतिक मत क्या हैं ये सब शामिल हैं।

निजी डेटा को किसी भी वक्त जमा किया जा सकता है। जैसे कोई व्यक्ति ऑनलाइन ट्रांजक्शन कर रहा हो या नए फोन का कनेक्शन ले रहा हो तो वहां निजी डेटा शेयर करना पड़ता है। जब आप किसी कंपनी या ऑर्गनाइडेशन से अपना निजी डेटा शेयर करते हैं तो उस डेटा का सिर्फ संबंधित चीजों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। जरूरत पड़ने पर ही इस डेटा को किसी और के साथ शेयर किया जा सकता है। तीसरी पार्टी सिर्फ उतने ही डेटा का इस्तेमाल कर पाएही जितने की उसे जरूरत हो।

बिल की 5 बड़ी बातें

आपका निजी डेटा क्या है

आपके निजी डेटा का इस्तेमाल कौन लोग कर सकते हैं, किस कारण के लिए कर सकते हैं।

आपके डेटा का संरक्षण और जो लोग उस डेटा को इस्तेमाल करेंगे उसकी निगरानी के लिए एक अथॉरिटी बनाई गई है।

अगर इस कानून के अंतर्रगत प्रावधानों के उल्लंघन पर सजा मिलेगी।

एक डेटा होल्डर के रूप में आपके क्या कर्तव्य हैं और डेटा इस्तेमाल करने वाले की पाबंदियां और कर्तव्यों के बारे में बताया गया है।

सरकार इन डेटा का क्या करेगी

कुछ खास परिस्थितयों में इन डेटा का इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधित मामले में सरकार निजी डेटा का इस्तेमाल कर सकती है। किसी अपराध को रोकने, उसकी जांच करने या फिर प्रोजिक्यूशन के कानूनी कार्रवाई के लिए, घरेलू उद्देश्यों के लिए। जिनके हाथ में डेटा होगा उन्हें सुपरवाइज और रेगुलेट करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की एक ऑथरिटी का गठन किया गया है। ये ऑथरिटी रेगुलेशन को फ्रेम करेगी। डेटा के छेड़छाड़ और गलत इस्तेमाल को मॉनिटर किया जाएगा। जो भी निजी डेटा के साथ छेड़छाड़ करेंगे उन्हें तफ्तीश कर आरोपों के मुताबिक सजा मिलेगी। समिति ने कहा है कि पुलिस, आईबी, ईडी, रॉ, सीबीआई, यूआईडीएआई सहित सरकार और उसकी एजेंसियों को राष्ट्रीय सुरक्षा और जनहित में प्रस्तावित डेटा सुरक्षा कानून से छूट दी जा सकती है। बशर्तें वे उचित और निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करें।

कानून की पेचिदगी

आजकल हम जिस माहौल में रह रहे हैं। हर जगह हमारा डेटा है। हमारे फोन पर हमारा डेटा है, मोबाइल कंपनियों को मालूम है हम कहां जाते हैं। क्या खर्च करते हैं, बैंक के डिटेल से लेकर हॉस्पिटल तक की जानकारी। ये सारा डेटा हमें आसानी से चिन्हित कर सकता है। ऐसे में ये डेटा कहां पर रखा जाए, हिन्दुस्तान में या हिन्दुस्तान से बाहर। इस डेटा की प्रोसेसिंग कैसे हो? क्या इसकी प्रोसेसिंग किसी भी प्रयोजन के लिए की जाए या सिर्फ कानूनी प्रयोजनों के लिए। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और मनीष तिवारी और तृणमूल कांग्रेस के महुआ मोइत्रा और डेरेक ओ’ब्रायन सहित सात विपक्षी सदस्यों ने विधेयक पर जेपीसी रिपोर्ट के खिलाफ अपनी चिंताओं के साथ असंतोष नोट प्रस्तुत किया, जिसमें सरकारी एजेंसियों को एकत्र करने और संसाधित करने के लिए प्रदान की गई छूट पर ध्यान केंद्रित किया गया था।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपने असहमति नोट में कहा कि उन्होंने बिल के सेक्शन 35 में संशोधन का सुझाव दिया था। उन्होंने कहा कि सेक्शन 35 केंद्र सरकार को किसी भी सरकारी एजेंसी को इस पूरे एक्ट से छूट देती है जिसका मतलब निकलता है सरकारी एजेंसियों को बिना किसी रोक टोक के अधिकार मिलेगा। इस विधेयक को 2019 दिसंबर में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद द्वारा लोकसभा में पेश किया गया था। सदन के सदस्यों के आग्रह पर संसदीय जांच के अधीन था। अब इस विधेयक को लेकर समिति ने फाइनल रिपोर्ट तैयार कर ली है।

बिल का इतिहास काफी पुराना

इस बिल का इतिहास काफी लंबा है और काफी समय से इसको लेकर चर्चा होती रही। यह विधेयक 2017 में न्यायाधीश के. एस. पुट्टास्वामी बनाम केंद्र सरकार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के नतीजे के तौर पर आया है, जिसमें निजता को मौलिक अधिकार के तौर पर मान्यता दी गई थी। अपने फैसले में उन्होंने केंद्र सरकार को एक मजबूत डाटा संरक्षण कानून लाने का निर्देश दिया था। इसके बाद न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्णा के मार्गदर्शन में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था, जिसने जुलाई 2018 में निजी डाटा संरक्षण बिल 2018 का प्रस्ताव रखा था।

उसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आपका और मेरा जो डेटा है उसका इस्तेमाल कैसे हो और उसमें संरक्षण मिले या न मिले। इसको लेकर काफी समय से बात हो रही थी। 14वीं लोकसभा में इस तरह का एक बिल आया था जिसमें संवेदनशील निजी डेटा की बात हुई थी। उस वक्त संवेदनशील निजी डेटा के बारे में व्याख्या हुई थी और उस वक्त सोमनाथ चटर्जी स्पीकर थे।

इस तरह के कानून की जरूरत क्यों पड़ी?

भारत के संविधान के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना जाता है। अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर फैसला दिया था। ऐसे में बिना इजाजत किसी तरह का डेटा लेना या उसे शेयर करना कानूनन अपराध होगा। हरेक निजी डेटा को सिर्फ भारत में स्टोर किया जा सकता है। आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा है कि देश में तकनीक और इंटरनेट को लेकर एक नया कानूनी ढांचा आएगा। डेटा संरक्षण विधेयक इस दिशा में पहला कदम है। खासकर इस विधेयक की और जरूरत पड़ गई है, जब पेगासस स्पाईवेयर कांड की वजह से पिछला संसदीय सत्र पूरी तरह से ठप रहा था। उम्मीद है कि यह विधेयक भारत की डाटा संरक्षण व्यवस्था में मौजूद कमी को पूरा करेगा।

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