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क्या 15 साल की सत्ता पर भारी पड़ गया हसीना का एक निर्णय? - श्रीनारद मीडिया

क्या 15 साल की सत्ता पर भारी पड़ गया हसीना का एक निर्णय?

क्या 15 साल की सत्ता पर भारी पड़ गया हसीना का एक निर्णय?

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भारत आने के लिए हसीना ने मांगी थी मंजूरी

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बांग्लादेश में पिछले कई दिनों से जारी हिंसा के बीच शेख हसीना की प्रधानमंत्री की कुर्सी चली गई है। हसीना ने सोमवार को प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा। शेख हसीना फिलहाल भारत में हैं, वो यहां से लंदन या फिनलैंड की शरण ले सकती हैं।

बांग्लादेश के मौजूदा हालात के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन इसमें जमात-ए-इस्लामी की भूमिका भी अहम है। आपको बताते हैं कि जमात-ए-इस्लामी क्या है और इस पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया।

जमात-ए-इस्लामी क्या है? क्यों लगा प्रतिबंध?

जमात-ए-इस्लामी को आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है। इसकी छात्र शाखा का नाम इस्लामी छात्र शिबिर है। हाल ही बांग्लादेश सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था। बांग्लादेश में तत्कालीन हसीना सरकार ने आतंकवाद रोधी कानून के तहत जमात-ए-इस्लामी और इस्लामी छात्र शिबिर पर प्रतिबंध लगा दिया था। आरोप है कि जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में आंदोलन को भड़का रही है। जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख डॉ. शफीकुर रहमान ने सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना की थी।

कभी बांग्लादेश की स्वतंत्रता का किया था विरोध

जमात-ए-इस्लामी 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की स्वतंत्रता के विरोध में उतर आया था। इसने मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों का पक्ष लिया था। इस संगठन पर प्रतिबंध का एक ये भी कारण है।

100 से ज्यादा लोगों की मौत

बांग्लादेश में हसीना सरकार की विदाई के बाद हुई हिंसा में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। सोमवार को अचानक शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और देश छोड़कर चली गईं। हसीना के देश छोड़कर जाने की खबर फैलते ही सैकड़ों लोगों ने उनके आवास में घुसकर तोड़फोड़ और लूटपाट की।

भारत आने के लिए हसीना ने मांगी थी मंजूरी

बांग्लादेश में जारी भारी हिंसा और शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ने के घटनाक्रम के एक दिन बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पड़ोसी देश को लेकर संसद में बयान दिया है।

सुरक्षा अधिकारियों के साथ बैठक के बाद दिया इस्तीफाः विदेश मंत्री

बांग्लादेश की स्थिति पर राज्यसभा में बोलते हुए विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा कि हमारी समझ यह है कि सुरक्षा अधिकारियों के साथ बैठक के बाद शेख हसीना ने स्पष्ट रूप से इस्तीफा देने का फैसला किया है। बहुत कम समय में उन्होंने कुछ समय के लिए भारत आने की मंजूरी मांगी। वे कल शाम दिल्ली पहुंचीं। उन्होंने आगे कहा कि पड़ोसी देश में जारी हिंसा और अस्थिरता के बारे में सभी राजनीतिक दलों की चिंता है।

भारतीय समुदाय के साथ संपर्क में है विदेश मंत्रालय

उन्होंने आगे कहा कि हम अपने राजनयिक मिशनों के माध्यम से बांग्लादेश में भारतीय समुदाय के साथ संपर्क में हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि बांग्लादेश में करीब 19,000 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें से अधिकतर छात्र हैं और हम सभी के साथ संपर्क बनाए हुए हैं। हालांकि, जुलाई में अधिकांश छात्र वापस लौट आए हैं। हम अल्पसंख्यकों की स्थिति के संबंध में भी स्थिति की निगरानी कर रहे हैं।

बांग्लादेश के साथ भारत के दशकों से हैं गहरे संबंधः जयशंकर

उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के साथ भारत के दशकों से गहरे संबंध हैं और वहां के हालात से यहां भी चिंता उत्पन्न हुई है। बांग्लादेश में जून से ही हालात बिगड़ने शुरू हुए और यह सिलसिला अब तक जारी है और उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद भी हालात नहीं बदले। उन्होंने कहा कि जो कुछ पड़ोसी देश में हुआ, उसका एक सूत्री एजेंडा यह था कि प्रधानमंत्री शेख हसीना इस्तीफा दे दें।

पड़ोसी देश में जारी हिंसा को लेकर भारत चिंतित

जयशंकर ने कहा कि पांच अगस्त को कर्फ्यू के बाद भी वहां दंगे हुए। उन्होंने कहा कि बहुत कम समय में शेख हसीना ने कल कुछ वक्त के लिए भारत आने की अनुमति मांगी थी और उनका अनुरोध स्वीकार कर उन्हें यहां आने की अनुमति दी गई।

विदेश मंत्री ने कहा कि बांग्लादेश में अभी भी अस्थिर हालात हैं। उन्होंने कहा कि सरकार राजनयिक मिशनों के माध्यम से बांग्लादेश में भारतीय समुदाय के साथ निरंतर संपर्क में है।

जयशंकर ने बताया कि बांग्लादेश में एक अनुमान के अनुसार 19,000 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें 9,000 छात्र हैं। उन्होंने कहा कि जुलाई में अधिकतर छात्र भारत लौट आए। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में हिंसा एवं अस्थिरता को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने चिंता जताई है।

हमने बातचीत करने की दी सलाहः जयशंकर

विदेश मंत्री ने कहा कि जनवरी 2024 में चुनाव के बाद से ही बांग्लादेश की राजनीति में काफी तनाव देखने को मिला। इसके कारण इस साल जून में शुरू हुए छात्र आंदोलन को और बढ़ावा मिला। सार्वजनिक भवनों और बुनियादी ढांचे पर हमलों के साथ-साथ यातायात और रेल अवरोधों सहित हिंसा बढ़ रही थी। हालांकि, हमने बार-बार संयम बरतने की सलाह दी और आग्रह किया कि बातचीत के माध्यम से स्थिति को शांत किया जाए।

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