बिहारी शिक्षकों की दीपावली पर्व

बिहारी शिक्षकों की दीपावली पर्व

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श्रीनारद मीडिया,   सारण (बिहार):

विद्यार्थी जीवन से लेकर शिक्षक जीवन तक मैं दीपों का त्योहार दीपावली को बड़े निकट से देखा हूं, समझा हूं! इस पर्व का सनातन धर्म में कितना महत्वपूर्ण स्थान है! यह भारत का बच्चा बच्चा जानता है! इसी पर्व का एक भाग है धनतेरस, अगर भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो ज्ञात होता है मुगलकालीन से लेकर ब्रिटिश शासन काल तक और 1947 से लेकर 2023 तक दीपावली का अवकाश मात्र एक दिन नहीं हुआ है!

के के पाठक जिन्होंने बिहार के शिक्षा जगत में वह भूकंप लाया जिस के लहर से राज्यपाल, मुख्यमंत्री, और शिक्षा मंत्री तक अपने निवास स्थान से बाहर निकलने का साहस नहीं कर पाए, विपक्ष भी अपना भूमिका भूल गया था! लेकिन दीपावली की छुट्टी प्रभावित नहीं हुआ था! भारत के किसी अन्य राज्यों में दीपावली का अवकाश मात्र एक दिन नहीं है! फिर बिहार में किस आधार पर एक दिन का अवकाश घोषित किया गया है! यह संसार का आठवां आश्चर्यजनक चीज है! भारत के सभ्यता और संस्कृति के साथ घोर मज़ाक है!

भारतीय परम्परा के साथ खिलवाड़ है! या शिक्षा विभाग का संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है!
हम लोग विद्यालय, शिक्षक और समय सारणी का अध्ययन करें! नीतीश कुमार विशाल ह्रदय के व्यक्ति हैं! इन्होंने भारत के सभी राज्यों के शिक्षकों को नियुक्ति किया है! भारत में बिहार पहला राज्य है जहां शनिवार के दिन भी विद्यालय 9 बजे से 4:30 बजे तक संचालित होते हैं! हाफ डे समाप्त , स्थानीय शिक्षक भी रविवार को घर नहीं जा सकते हैं क्योंकि स्कूल बंद करते करते सूर्यास्त हो जा रहा है! सरकार आवास भत्ता 4% देती है मूल वेतन का , अर्थात 800 रूपया से 1000 रूपया तक , क्या इस राशि में परिवार के साथ रहने के लिए आवास उपलब्ध हो जाएगा! सम्भवतः जंगल में भी देने के लिए तैयार नहीं होगा!

ठीक है रविवार को घर नहीं जाएंगे! दिल पर पत्थर बांध लेंगे, लाचार बेबस माता पिता के सेवा को त्याग देंगे! शिक्षक पत्नी को और शिक्षिका पति को समझा देंगे,बाल बच्चे को अनाथालय में डाल देंगे! लेकिन दीपावली पर्व में एक शिक्षक और शिक्षिका को अपने परिवार के साथ दीपावली मनाने का अधिकार है या नहीं! अगर है तो जो शिक्षक और शिक्षिकाए 1500 किलोमीटर दूर से बिहार में अपना सेवा दे रहे हैं वह अपने परिवार के साथ एक दिन की छुट्टी में कैसे दीपावली कैसे मनाएंगे, हवाई जहाज से भी सम्भव नहीं है!

इस लिए कि हवाई जहाज भी विद्यालय से नहीं एयरपोर्ट से मिलता है और रही बात ट्रेन की तो वह भी अपने निर्धारित स्टेशन से समय पर खुलती हैं! शिक्षकों के पास अलाउद्दीन का चिराग नहीं है जो रगड़ते ही जिन पहुंचा देगा! शिक्षक भी एक समाजिक प्राणी है, इसको भी मां बाप, पति-पत्नी और बाल बच्चे हैं ! जब बच्चे पूछते हैं पापा घर कब आएंगे मम्मी घर कब आएंगी, नन्हे मुन्ने बच्चे का भी कोई उत्तर नहीं दे पाता है, बिहार के शिक्षक और शिक्षिकाए कितना अभागा हो चुकें हैं! अंदाजा लगाना मुश्किल है।

इस शुभ अवसर पर आकस्मिक अवकाश भी नहीं ले सकते हैं! क्यों कि 10% शिक्षक ही अवकाश ले सकते हैं अर्थात यदि स्कूल में 10 शिक्षक हैं तो एक शिक्षक CL पर जा सकते हैं! हाय रे शिक्षक. दीपावली का दीपक भी आप के भाग्य को उज्जवल नहीं कर सका! आखिर यह 16 CL कब काम आएगा! मेरे विद्यालय में एक शिक्षिका है उत्तर प्रदेश की है, उसके पास 10 CL बचा हुआ है लेकिन 10% में एक शिक्षक को भी आकस्मिक अवकाश नहीं मिल पा रहा है! बूढ़ी माता फोन पर फोन कर रही है कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रही है! कोई निर्णय नहीं ले पा रही है!

इसी परिस्थिति से हर शिक्षक गुज़र रहा है! अपने आप को मनोवैज्ञानिक दबाव से स्वतंत्र नहीं कर पा रहा है! हम बिहारी शिक्षक दूसरे के बच्चे को ज्ञान देते हैं शिक्षा देते हैं और मेरा ही बच्चा दर दर की ठोकरें खा रहा है ! उसका देख भाल और निगरानी करने वाले कोई नहीं है! सरकार का दायित्व बनता है कि वह पर्याप्त अवकाश दे ताकि शिक्षक और शिक्षिकाए अपने परिवार के साथ, होली, दशहरा, ईद, बकरीद, क्रिसमस पर्व मना सकें! नहीं तो सरकारी आवास दें जहां अपने परिवार के साथ रह कर अपने बाल बच्चे को पढ़ा लिखा सके! किस समीकरण से दीपावली और ईद में एक दिन की छुट्टी देते हैं! यह बेरहम सरकार जिस ने शिक्षकों से ग्रीष्मकालीन अवकाश भी छीन लाया, शनिवार का हाफ डे छीन लिया!

इस लेख को कोई अफसाना और कहानी समझने की भूल नहीं कीजियेगा! एक शिक्षक के ह्रदय की पीड़ा है,दिल का वह दर्द जिसका इलाज किसी डॉक्टर और वैध के पास नहीं है! विद्यालय में सफाई कर्मी नहीं है लेकिन शौचालय साफ चाहिए, कौन करेगा, क्लर्क नहीं है लेकिन रिपोर्ट रोज चाहिए, आदेश पाल नहीं है, लेकिन हर कमरे में झाडू चाहिए, छात्रों से दिला नहीं सकते हैं कौन देगा, एक ही धमकी शिक्षकों का वेतन काटा जाएगा! एक शिक्षक का अपने घर, परिवार और समाज के प्रति कोई दायित्व और कर्तव्य नहीं बनता है! क्या हफ्ते में एक दिन भी अपने माता-पिता का सेवा सत्कार नहीं कर सकता है! क्या एक शिक्षक के पास कोई नैतिकता नहीं होती है! कौन देगा शिक्षकों के इस सारे ज्वलंत प्रश्नों का उत्तर❓
सरकार,शिक्षा विभाग और समाज के सामने एक प्रश्न चिन्ह है ?
लेखक
शिक्षा व्यवस्था से प्रताड़ित शिक्षक

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