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डीएम जी. कृष्णैया हत्या कांड की बरसी - श्रीनारद मीडिया

डीएम जी. कृष्णैया हत्या कांड की बरसी

डीएम जी. कृष्णैया हत्या कांड की बरसी

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05 दिसम्बर 1994 को हुई थी हत्या

30 वर्ष पहले कैसे की गई थी DM जी कृष्णैया की हत्‍या

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्

5 दिसम्बर, 1994 की मनहूस दोपहरी थी, जब अधिकारियों की बैठक में शामिल होने के बाद गोपालगंज के जिलाधिकारी जी.कृष्णैया वापस लौट रहे थे. एक दिन पहले ही उत्तर बिहार के एक नामी गैंगस्टर छोटन शुक्ला की गैंगवार में हत्या हुई थी और हजारों का जन समुदाय शव के साथ एनएच जाम कर रोष प्रदर्शन कर रहा था. अचानक नेशनल हाईवे-28 से एक लाल बत्ती वाली कार गुजरती दिखी. उसी गाड़ी में आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया बैठे थे.

लालबत्ती की गाड़ी देख भीड़ भड़क उठी और गाड़ी पर पथराव करना शुरू कर दिया. ड्राईवर और अंगरक्षक ने डीएम को बचाने की भरपूर कोशिश की लेकिन नाकाम रहे. उग्र भीड़ ने कृष्णैया को गाड़ी से बाहर खींच लिया और खाबरा गांव के पास पीट-पीटकर उनकी हत्या कर दी. आरोप था कि शुक्ला के एक भाई ने डीएम की कनपटी में एक गोली भी मार दी थी. उस हत्याकांड ने प्रशासनिक और सियासी हलके में उस वक्त तूफान ला दिया था.

आंध्र प्रदेश के महबूबनगर गांव में जी कृष्णैया का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। कृष्णैया के पिता कुली का काम करते थे और कृष्णैया ने भी कुली का काम किया था। जी कृष्णैया एक ऐसे गरीब परिवार से थे जिनके पास खेती करने के लिए जमीन नहीं थी।

परिवार बेहद ही साधारण था। लेकिन पढ़ने की ललक और असहाय लोगों के लिए कुछ करने की ललक ऐसी थी कि देश की सबसे कठिन प्रतियोगिता क्लियर कर ली और आईएएस बन गए। कहते हैं आईएएस बनने से पहले कृष्णैया ने पत्रकारिता की पढ़ाई की और क्लर्क की नौकरी करने लगे। कुछ दिनों बाद वो लेक्चरर भी बने। चाहे पत्रकारिता पढ़ने की बात हो या फिर लेक्चरर या फिर आईएएस उन्होंने हमेशा ही एक ऐसे फील्ड को चुना जिससे वो लोगों की सेवा कर सकें।

1985 बैच के आईएएस जी कृष्णैया को बिहार का पश्चिमी चंपारण आज भी नहीं भूलता है। बिहार में तब लालू राज था। कानून-व्यवस्था कैसी थी ये बताने की जरूरत नहीं। लेकिन कृष्णैया ने विपरीत परिस्थितयों में भी लोगों की भलाई के लिए काम किया। जिस जिले में भी डीएम बनकर गए वहां के गरीब और शोषित लोगों के हीरो होते गए। हर दिन लोगों से मिलकर वो गरीबों की समस्या को जानते थे। उनके साथी उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद करते हैं जो हमेशा गरीबों की समस्याओं को सुलझाने में लगे रहते थे।

पश्चिमी चंपारण में भूमि सुधार के क्षेत्र में उन्होंने अद्भुत काम किया था। हालांकि इसमें उनको कई भू- माफियाओं से भी कई बार लोहा लेना पड़ा था। जब उनकी हत्या की खबर बेतिया पहुंची तो जिले के पत्रकार, वकील, और छात्रों का हुजूम सड़कों पर उतरकर उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दे रहा था। आंध्र प्रदेश के छोटे से गांव के रहने वाले कृष्णैया ने अपने गांव के लिए भी बहुत कुछ किया। वहां के डीएम को रिक्वेस्ट करते हुए कहा था कि एक ओवरब्रिज मेरे गांव तक बना दीजिए।

जी कृष्णैया की 37 साल की उम्र में कर दी गई थी हत्या

जी कृष्णैया की 37 साल की उम्र में हत्या कर दी गई थी। तब उनकी पत्नी 30 साल की थी और दोनों बेटियां 5 और 7 साल की थीं।  गोपालगंज मुख्यमंत्री लालू यादव का गृहजिला था। सो कई तरह के प्रेशर और पैरवी आते रहते थे। लेकिन कृष्णैया अपने धुन में काम करते रहे।

2007 में पटना जिला अदालत ने उनकी हत्या के लिए छह राजनेताओं को दोषी ठहराया। दोषी ठहराए गए नेताओं में आनंद मोहन सिंह और उनकी पत्नी लवली आनंद (दोनों पूर्व सांसद), मुन्ना शुक्ला के नाम से जाने जाने वाले विजय कुमार शुक्ला (विधायक), अखलाक अहमद और अरुण कुमार (दोनों पूर्व विधायक), हरेंद्र कुमार (वरिष्ठ जदयू नेता) और एसएस ठाकुर शामिल हैं।

बिहार के DGP रहे अभयानंद, जी. कृष्णैया को नहीं भूले हैं. उनको अभी भी पश्चिम चंपारण में जी. कृष्णैया संग बिताए लम्हे पूरी तरह याद हैं, जहां तब दोनों SP और DM के पद पर तैनात थे. अभयानंद ने सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखकर तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया के निजी और पेशेवर जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातों की चर्चा की है, जिससे अधिकांश लोग अनजान हैं.

पूर्व डीजीपी अभयानंद के फेसबुक पोस्ट से पता चलता है कि जी. कृष्णैया किस हद तक ईमानदार थे और आम जनता के बीच कितने पॉपुलर. पोस्ट पढ़ने के बाद दिवंगत अधिकारी के प्रति आदर और सम्मान का भाव बढ़ जाना अस्वाभाविक नहीं है. बिहार के पुलिस प्रमुख ( DGP ) के पद से रिटायर हुए अभयानंद अपने संस्मरण की शुरुआत इन शब्दों में करते हैं- “ श्री जी. कृष्णैया पश्चिम चम्पारण के जिला पदाधिकारी थे और मैं पुलिस अधीक्षक. एक दिन हम दोनों बगहा क्षेत्र में नहर की कच्ची सड़क पर चले जा रहे थे. बातों-बातों में अचानक उन्होंने मुझे अपनी ज़िन्दगी के कुछ किस्से सुनाए.

अभयानंद आगे लिखते हैं- “जिले का कोई व्यक्ति चाहे कितना भी धनाढ्य क्यों न हो, यह नहीं कह पाया कि कृष्णैया जी को उसने छोटा या बड़ा कुछ भी दिया हो. दूसरी ओर ऐसा भी कोई व्यक्ति नहीं था, जो यह कह सके कि वह उनसे मिलने उनके घर गया हो और उसे एक प्याला चाय नहीं मिला हो.”

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