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क्या पत्थरबाज भीड़ का कोई धर्म नहीं होता? - श्रीनारद मीडिया

क्या पत्थरबाज भीड़ का कोई धर्म नहीं होता?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हिंसा करने वालों का कोई धर्म नहीं होता। व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने भी ‘आवारा भीड़ के खतरे’ को बताते हुए लेख लिखा था। दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी बेकार युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती है। इसका उपयोग खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं। इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी ने किया।

इनकी कोई राष्ट्रीयता नहीं होती और उसका कोई देश नहीं होता। विवेक जब शून्य हो जाता है, तब व्यक्ति भीड़ का हिस्सा बन जाता है, और ऐसी विवेक-शून्य भीड़ क्या कुछ करती है, इसका नजारा इन दिनों हम भारत के कई राज्यों से लेकर यूरोपीय देश स्वीडन तक देख चुके हैं। खरगौन आनंद, हुबली, लोहरदगा, करौली, हुबली, वडोदरा, आंध्र प्रदेश कुरनूल और फिर दिल्ली का जहांगीरपुरी इलाका जहां पर त्थरबाजी, तलवारबाजी के नजारे से आप जरूर दो चार हुए होंगे। लेकिन भारत से साढ़े पांच हजार किलोमीटर दूर स्थित स्वीडन आज अशांत है।

स्वीडन भारत की राजधानी दिल्ली से भी आबादी में कम जनसंख्या वाला देश है लेकिन यहां संवैधानिक लोकतंत्र और राजतंत्र है। यूरोपीय यूनियन का तीसरा बड़ा देश आज अशांत है। यानी बस जगह बदल जाती है लेकिन दंगे का स्वरूप नहीं बदलता है। वही पत्थरबाजी, गाड़ियों का जलाया जाना।

दिल्ली और नारकोपिंग में सेम पैटर्न 

आप भारत के कई शहरों और हालियों दिनों में दिल्ली के जहांगीरपुरी में पत्थरबाजी के नजारे से रूबरू हुए होंगे। जहां हनुमान जयंती पर शोभा यात्रा निकाले जाने के दौरान तनाव होता है और फिर पत्थरों की बरसात होती है। ऐसा ही कुछ नजारा इन दिनों स्वीडन की सड़कों पर भी देखने को मिल रहा है। जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की तो प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थरबाजी की और पुलिस की गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया। बीते दिन प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस को मजबूरन फायरिंग करनी पड़ी। जिसमें तीन लोग घायल हो गए। स्वीड से आती हर तस्वीर वहां पर बिगड़ते हर दिन के हालात को बयां कर रही है।

स्वीडन में क्यों भड़के दंगे?

यूरोपीय देश स्वीडन को दुनिया के सबसे शांत देशों में से एक माना जाता है। ग्लोबल पीस इंडेक्स 2021 में 15वें स्थान पर काबिज ये देश अपने ‘बहुसंस्कृतिवाद’ और ‘शांतिप्रियता’ के लिए मशहूर है। यहां बच्चे की पैदाइश पर मां और बाप के लिए 480 दिनों की पेड लीव का प्रावधान है। इसके अलावा मुफ्त स्कूली शिक्षा, लैंगिंक समानता, अभिव्यक्ति की आजादी, मीडिया की स्वतंत्रता और भी बहुत कुछ। मतलब, कुल मिलाकर कहे तो हर मायने में एक आदर्श देश का मॉडल। जिसकी वजह से स्वीडन की गिनती दुनिया के सबसे तरक्की पसंद और शांतिप्रिय देश में होती है।

लेकिन… वर्तमान के हालात इन सारी खूबसूरत बातों को जैसे ग्रहण सा लग गया है। इन दिनों ये देश कुछ अशांत सा चल रहा है। यहां दंगे भड़के हुए हैं। स्वीडन में बसे मुस्लिम समुदाय की तरफ से शुरू हुआ उपद्रव लगातार बढ़ता रहा। वैसे ही दृश्य देखने को मिले, जैसे बीते एक सप्ताह में भारत के कई शहरों में एक के बाद योजनाबद्ध तरीके से देखे गए। पथराव, वाहनों में तोड़फोड़, आगजनी, पुलिस से टकराव और धार्मिक नारेबाजी। सड़कों पर एकत्र भीड़ स्वीडन के नोरकोपिंग शहर में उन्मादी हो गई और बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ व आगजनी देखने को मिली। उन्माद इतना अधिक था कि पुलिस को स्थिति संभालने में भारी मशक्कत का सामना करना पड़ा।

दंगे की आग ने ऐसे स्वीडन को अपनी चपेट में लिया 

लेकिन ये सब शुरू कैसे हुआ? इसके लिए थोड़ा पीछे चलना पड़ेगा। ज्यादा भी नहीं यही कोई एक हफ्ते पहले यानी 15 अप्रैल को इस्लाम विरोधी पार्टी स्टार्म कुर्स ने गुड फ्राइडे के मौके पर कुरान की प्रतियां जलाने का ऐलान किया। स्टॉर्म कुर्स पार्टी के नेता रामादुस पालुदान ने ओरेबो शहर में कार्यक्रम रखा। जिसके जवाब में मुस्लिमों ने विरोध करते हुए दूसरी रैली निकालीष जब पुलिस रोकने आई तो उनके ऊपर पथराव हुआ। पुलिस की गाड़ियों को आग के हवाले किया गया।  जिसके बाद देखते ही देखते स्वीडन के कई शहर दंगों की आग में झुलस गए। राजधानी स्टॉकहोम से लेकर कोपिंग और नॉरकोपिंग भी हिंसा की चपेट में आ गए।

कौन हैं रामादुस पालुदान 

स्टार्म कुर्स पार्टी के नेता रामादुस पालुदान के पिता स्वीडिश नागरिक हैं। साल 2017 में वो उस वक्त सुर्खियों में आए जब उन्होंने यूट्यूब पर मुस्लिम विरोधी वीडियो बनाना शुरू किया। उन्होंने मुस्लिम पवित्र पुस्तक को जलाना, कभी-कभी बेकन में लपेटा जाने जैसी बातों को अपने बयानों में उचित ठहराया। दिसंबर 2018 के एक वीडियो में कहा था कि दुश्मन इस्लाम और मुसलमान हैं।

सबसे अच्छी बात यह होगी कि अगर इस धरती पर एक भी मुसलमान नहीं बचा होता तो हम अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुँच जाते। 2019 में डेनमार्क में नस्लवादी भाषण के लिए पलुदान को 14 दिनों की जेल की सजा सुनाई गई थी। एक साल बाद, उन्हें नस्लवाद, मानहानि और खतरनाक ड्राइविंग के 14 अलग-अलग आरोपों का दोषी पाए जाने के बाद दो महीने की अतिरिक्त सजा के साथ एक महीने के कारावास का सामना करना पड़ा। 2019 के पिछले डेनिश चुनावों में स्ट्रैम कुर्स एक भी सीट जीतने में विफल रही। अब पलुदान की योजना इसी साल स्वीडन में होने वाले चुनाव को लेकर है।

क्या ऐसा पहले हुआ है?

यह पहली बार नहीं है जब पवित्र पुस्तक को जलाने की डेनिश पार्टी की योजना के खिलाफ हिंसा भड़की हो। 2020 में स्वीडन के माल्मो में हिंसा भड़क उठी थी।  पालुदान के दो साल के लिए स्वीडन लौटने पर रोक लगा दी गई थी। प्रदर्शनकारियों ने इसी तरह के प्रयासों पर कारों में आग लगा दी थी। मुसलमानों की भारी तादाद वाले ब्रुसेल्स के एक क्षेत्र में कुरान को जलाने की योजना को लेकर पलुदान और उनकी हार्ड लाइन पार्टी को 2020 में बेल्जियम से एक साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। पेरिस में ऐसा ही सुझाव देने के बाद उन्हें फ्रांस से भी निर्वासित कर दिया गया था।

यूरोप के कई देशों ने ओपन बॉर्डर्स नीति के तहत अप्रवासियों और शरणार्थियों को बड़ी संख्या में अपने देश में एंट्री दी थी। मध्य एशिया और अफ्रीका जैसे रीजन से कई शरणार्थी और अप्रवासी स्वीडन की ओपन बॉर्डर्स नीति के चलते वहां पहुंचे। धीरे-धीरे कभी शरणार्थी रहे ये मुस्लिम वहां के नागरिक हो गए। शांतिप्रिय लोकतंत्र स्वीडन ऐसे शरणार्थियों के लिए सुरक्षित स्थान रहा है। यूरोप में बीते एक दशक में बदली जनसांख्यिकी का वहां और विश्व के सामाजिक सद्भाव और शांति पर कैसा प्रभाव पड़ रहा है।

थोंपा जाता है शरिया कानून 

स्वीडन की एक तिहाई आबादी विदेश से आए लोगों की है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार स्वीडन के कई शहर ऐसे हैं जहां मुस्लिमों की संख्या अच्छी खासी हो गई है। अब मुस्लिम समाज के कुछ लोग चाहते हैं कि वहां के रहने वाले लोग इस्लामिक कानून शरिया को मानें। बीबीसी की रिपोर्ट में कहा गाया है कि लोगों से कहा जाता है कि अल्लाह के लिए लड़े मुसलमानों की आजादी के लिए लड़े। मुसलमान मारे जा रहे हैं, उनके साथ बलात्कार हो रहा है और आप अपना समय नष्ट कर रहे है।

आईएसआईएस की एंट्री

2016 में छपी बीबीसी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि स्वीडन से बड़ी संख्या में लोग इस्लामिक कट्टरपंथी आतंकी संगठन आईएसआईएस के साथ मुस्लिमों की जंग लड़ने के लिए चले गए थे। बीबीसी की रिपोर्ट में एक महिला का जिक्र है, जो कभी मतांतरण कर इस्लाम अपना चुकी थी और पति के साथ सीरिया में इस्लामिक स्टेट (आइएस) की आतंकी के तौर पर गोलियां चला रही थी।

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