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आलोचनाओं से डरें या घबराएं नहीं, डटे रहें,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

आलोचनाओं से डरें या घबराएं नहीं, डटे रहें,कैसे?

आलोचनाओं से डरें या घबराएं नहीं, डटे रहें,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी, किसी न किसी प्रकार की आलोचना का सामना करता है। हां, कुछ उसे सकारात्मक तरीके से ग्रहण करते हैं। वहीं, बहुत से लोग उससे अंदर तक आहत हो जाते हैं। आलोचनाओं को स्वयं में समाना या उन्हें सहजता से स्वीकार करना आसान नहीं होता। लेकिन जब हम ऐसा करते हैं, तो अपनी कमी एवं कमजोरियों की जंजीरों को तोड़ बाहर निकलते हैं। आगे बढ़ते हैं।

राजस्थान के राजसमंद जिले के छोटे से गांव काबड़ा की भावना जाट देश की पहली महिला रेस वाकर हैं, जिन्होंने टोक्यो ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई किया है। इनकी यह यात्रा चुनौतियों एवं आलोचनाओं से अछूती नहीं रही है। उनका शार्ट पहनकर अभ्यास करना गांववासियों को तनिक भी सुहाता नहीं था। वह उन्हें अभ्यास करने से रोकते थे और लड़कियों की तरह गृहकार्य में हाथ बंटाने को कहते थे। लेकिन भावना ने सभी बातों को नजरअंदाज करते हुए अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखा। सुबह तीन बजे उठकर अभ्यास करतीं। मैच के लिए जूते नहीं होते, तो साथी खिलाड़ियों से मांगकर काम चलाया करतीं। आज सभी को उन पर गर्व है।

महात्मा गांधी कहते थे कि लोग पहले आपको नजरअंदाज करेंगे, फिर आपका मजाक उड़ाएंगे, लड़ाई या आलोचना करेंगे। लेकिन अगर आप आलोचनाओं को सकारात्मक रूप में लेना शुरू करेंगे, तो आखिर में जीत आपकी ही होगी। इसके लिए अपनी क्षमता, रचना, कला अथवा विशेषता पर विश्वास रखें।

मीरा बरथ कहती हैं, एक कलाकार जब कोई नई कृति रचता है, तो उसे विश्व के साथ साझा करता है। दुनिया वाले बेशक कह सकते हैं कि वह अच्छी नहीं है। उसकी आलोचना हो सकती है। फिर भी वह उसे छोड़ता नहीं,नष्ट नहीं करता। क्योंकि वह कलाकार या सृजनकर्ता के मन को कहीं न कहीं सुकून व शांति देता है। ठीक वैसे ही जैसे कि किसी ‘कोलाज’अर्थात तस्वीरों के समूह का हिस्सा बनने से ही हमारे व्यक्तित्व को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। हम अपना कोलाज स्वयं गढ़ सकते हैं। क्योंकि हर कला अपने आप में अनूठी और विशेष होती है।

दरअसल, आलोचना सकारात्मक एवं नकारात्मक दो प्रकार की होती है। व्यक्ति के निजी विकास में सकारात्मक आलोचना का बड़ा प्रभाव हो सकता है। इसलिए सर्वप्रथम सामने वाले को सुनना, उसके कथन को समझना आवश्यक है। संभव है कि वह कुछ अर्थपूर्ण कह रहा हो। वरिष्ठ मनोचिकित्सक आरती आनंद के अनुसार, हम सही या गलत दोनों हो सकते हैं। इसलिए जब भी कोई आलोचनात्मक शैली में भी कुछ कहे, तो उसे स्वीकार करने का प्रयास करना चाहिए।

पहले से ही व्यर्थ या नकारात्मक सोचने या किसी निष्कर्ष पर पहुंचने का कोई फायदा नहीं है। आनलाइन एजुकेशन के क्षेत्र में बायजू रविंद्रन एक जाना-पहचाना नाम है। उनकी कंपनी निरंतर प्रगति के पथ पर है। जाहिर है, बाजार में उनके आलोचक व विरोधियों की कमी नहीं। लेकिन बायजू स्वस्थ आलोचना में विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि इससे हमें और बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है। यहां तक कि ग्राहकों के फीडबैक या प्रतिक्रिया से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

कोलकाता से करीब 20 किलोमीटर दूर हंसपुकुर नामक गांव में स्थित ‘ह्यूमैनिटी अस्पताल’ के चेयरमैन बताते हैं, ‘हमने गरीबी के साथ-साथ समाज की काफी जिल्लत एवं ताने सहे हैं। बचपन में जहां कहीं काम किया, तो छोटी-सी गलती पर भी लोगों की मार मिली। मुझे ‘डस्टबिन ब्वॉय’ कहा जाता था। इसलिए अंदर एक बदलाव लाने की तीव्र इच्छा थी। इसलिए डाक्टर बना।

गांव में ही आधे एकड़ की जमीन खरीदी। एक झोपड़ी बनाई और मां को साथ में रखकर मुफ्त में मरीजों को देखना शुरू किया। बाद में लोगों से मिली आर्थिक सहायता से एक पक्की इमारत खड़ी हुई। आज 75 बेड वाले इस अस्पताल में हर जरूरतमंद का इलाज होता है। यहां आइसीयू व अन्य अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। इतना ही नहीं, यहां कोविड-19 पीड़ितों का भी उपचार हो रहा है।

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