मनीष कश्यप पर हंसो नहीं, बल्कि अपने हालात पर रोओ!
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
एशिया के दूसरे सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में शामिल पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (PMCH) आज अपनी चिकित्सीय सेवाओं के बजाय पत्रकारों पर हमलों और मीडिया बैन के कारण सुर्खियों में है। एक बार फिर यह प्रतिष्ठित संस्थान विवादों में है, इस बार मशहूर यूट्यूबर और पत्रकार मनीष कश्यप के साथ मारपीट की घटना को लेकर।
हैरानी की बात यह है कि मनीष किसी खबर के लिए नहीं, बल्कि एक बीमार मरीज को बेड दिलाने की गुहार लेकर PMCH पहुंचे थे। लेकिन अस्पताल प्रशासन और वहां के कुछ जूनियर डॉक्टरों ने उन्हें पत्रकार होने की ‘सजा’ दे डाली। मनीष कश्यप पर न सिर्फ हमला हुआ, बल्कि अब खुद वे इलाज के लिए अस्पताल के बिस्तर पर हैं।
यह पहला मामला नहीं है। बीते कुछ वर्षों में कई बार पत्रकारों के साथ अभद्रता, मारपीट और कैमरे छीनने जैसे मामले सामने आ चुके हैं। PMCH अब एक ऐसा संस्थान बन चुका है जहां मीडिया की मौजूदगी को अपराध समझा जाने लगा है।
सरकारी अस्पतालों में पारदर्शिता और जवाबदेही की जिम्मेदारी सर्वोच्च होती है। लेकिन जब पत्रकारों को ही सूचना जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़े, मारपीट झेलनी पड़े, तो सवाल उठता है—क्या अस्पताल के भीतर कुछ ऐसा है जिसे छिपाया जा रहा है?
PMCH में जूनियर डॉक्टरों की मनमानी और असंवेदनशीलता की खबरें लगातार आती रही हैं। मरीजों और परिजनों से बदसलूकी, घूसखोरी के आरोप और अब पत्रकारों पर हमले—इन घटनाओं ने अस्पताल के शैक्षणिक और सेवा गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि डॉक्टरों को सुरक्षा चाहिए, यह सही है—but it cannot come at the cost of basic accountability. मरीजों की सेवा और जनहित की रिपोर्टिंग—ये दोनों बुनियादी ज़रूरतें हैं, जिन्हें एक-दूसरे का विरोधी नहीं बनना चाहिए।
अब तक PMCH प्रशासन की ओर से कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं आई है। न तो हमले की निंदा हुई है, न ही दोषियों पर कोई सख्त कार्रवाई की घोषणा। मीडिया से दूरी और चुप्पी ने संदेह को और गहरा कर दिया है।
PMCH में मीडिया का प्रवेश वर्जित क्यों है?
क्यों हर बार पत्रकारों को अपमान और हिंसा का सामना करना पड़ता है?
क्या अस्पताल प्रशासन की चुप्पी, अंदर की गड़बड़ियों पर पर्दा डालने की कोशिश है?
PMCH जैसे संस्थान पर बिहार ही नहीं, पूरे पूर्वी भारत की जनता की नज़र रहती है। यहां की व्यवस्था और कार्यप्रणाली का सीधा असर लाखों ज़िंदगियों पर पड़ता है। ऐसे में अगर पत्रकारों को मारकर चुप कराया जाएगा, तो यह न सिर्फ लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला है, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था की गिरती हालत का भयावह संकेत भी।
मनीष कश्यप पर हमले की स्वतंत्र जांच हो
दोषी डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई हो
अस्पताल में मीडिया की निष्पक्ष पहुँच सुनिश्चित की जाए
मरीजों की सेवा को प्राथमिकता देते हुए जवाबदेही का ढांचा बनाया जाए.
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