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डॉ अर्जुन तिवारी जी अब हमनी का बीच नइखी बाकिर स्मृति शेष बा- राजेश भोजपुरिया - श्रीनारद मीडिया

डॉ अर्जुन तिवारी जी अब हमनी का बीच नइखी बाकिर स्मृति शेष बा- राजेश भोजपुरिया

डॉ अर्जुन तिवारी जी अब हमनी का बीच नइखी बाकिर स्मृति शेष बा- राजेश भोजपुरिया

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

स्व.डॉ अर्जुन तिवारी जी के आ उहां के लिखल “भोजपुरी साहित्य के इतिहास” आउर “समकालीन भोजपुरी साहित्य कS समीक्षात्मक अध्ययन” दुनों ग्रन्थन पर।

डॉ तिवारी जी पुरनका पीढ़ी के पत्रकार रहीं,ओह समय के पत्रकार मूलतः साहित्यकार आ साहित्य पारखी होत रहन।
डॉ अर्जुन तिवारी जी के पत्रकारिता आ साहित्य के पी.जी. कक्षा सभन में 34 बरिस तक अध्यापन के अनुभव रहे।
उहां के काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त भइल रही। सेवानिवृत भइला के बाद वाराणसी में रह के साहित्य सेवा के काम करत रही।

हिन्दी के साथे-साथ उहां के भोजपुरी साहित्य खातिर बढ़िया काम कइले बानी।उहां के कई गो प्रकाशित पुस्तक भा ग्रन्थ बाड़ी सन।जवना में – ‘स्वतंत्रता आंदोलन आ हिन्दी पत्रकारिता’, ‘आधुनिक पत्रकारिता’, ‘जनसंचार और हिन्दी पत्रकारिता’, ‘हिन्दी पत्रकारिता का वृहद इतिहास’, ‘इतिहास निर्माता पत्रकार’, ‘आधुनिक विज्ञापन’, ‘हिन्दी व्याकरण और रचना’, ‘पराड़कर जी: एक जीवनी’, ‘मीडिया समग्र’, ‘जनसम्पर्क सिद्धान्त एवं व्यवहार’, ‘सम्पूर्ण पत्रकारिता’, ‘सदभाव सेतु शंकर’, ‘भोजपुरी साहित्य के इतिहास’, ‘भोजपुरी-हिन्दी-अंग्रेजी त्रिभाषी शब्दकोश’, ‘भोजपुरी हिन्दी शब्दकोश’, ‘समकालीन भोजपुरी साहित्य कS समीक्षात्मक अध्ययन’ इत्यादि प्रमुख बाड़ी सन।

उहां के कई गो सम्मान अलंकरण से सम्मानित भी भइल रही।
जवना में- ‘उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ग्रन्थ लेखन खातिर 1988 में अनुशंसा’, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा कर्नाटक द्वारा हिन्दी के विशिष्ट सेवा खातिर 1993 में सम्मान पदक से अलंकृत’, बाबूराव विष्णु पराड़कर नामित पुरस्कार से सम्मानित’, राहुल सांकृत्यायन नामित पुरस्कार 2015 में इत्यादि प्रमुख बाड़ी सन।एकरा अलावा आउर भी कई गो संस्थन से सम्मानित भइल रही।

अब हम चर्चा करब उहां के रचित “भोजपुरी साहित्य के इतिहास” पर। एह ग्रन्थ के एतिहासिक ग्रन्थ कहल जा सकत बा।भोजपुरियन खातिर ई ग्रन्थ संग्रह करे लायक बा।भोजपुरी शोधार्थी लोगन खातिर ई इतिहास के दिशा में इतिहास रचे वाला अनिवार्य ग्रन्थ बा।एह से भोजपुरी जगत के वैज्ञानिक आ एतिहासिक दृष्टि मिली।

‘भोजपुरी के राष्ट्रगान’, ‘भोजपुरी:बलिष्ठ जाति के व्यवहारिक भाषा: ग्रियर्सन’, भोजपुरी में हीरा डोम के ‘अछूत के शिकायत’ सन 1914 ई. में दूरदर्शी सम्पादक महावीर प्रसाद द्विवेदी जी अपना ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित कइले रहीं जवन दलित ना महादलित के साक्षात प्रमाण बा। ‘बटोहिया’, ‘फिरंगिया’, ‘लुटेरवा’ त भोजपुरियन के राष्ट्रभक्ति के पहचान बन चुकल बा, ‘बाबू कुँवर सिंह के पकड़ावे खातिर इनाम के घोषणा’, ‘भोजपुरी शब्द भण्डार’, ‘बाबा राहुल सांकृत्यायन के दिसम्बर 1947 के अध्यक्षीय भाषण’, ‘भोजपुरी शब्द भण्डार’ जइसन विषयन के परिशिष्ट में आ सन्दर्भ सामाग्री का रूप में एह ग्रन्थ में परोस के डॉ अर्जुन तिवारी जी आपन शोध परक प्रवृति के परिचय देले बानी।
डॉ अर्जुन तिवारी जी के ‘भोजपुरी साहित्य के इतिहास’ से भोजपुरी के गद्य आ पद्य भाग के विपुल भण्डार झलकत बा।एह ग्रन्थ से भोजपुरी साहित्य के सृजन पर जोर भी पड़त बा आ प्रेरणा भी मिलत बा।

डॉ अर्जुन तिवारी जी द्वारा एह ग्रन्थ के नौ गो अध्याय में प्रस्तुत कइल बा। जवना में-
1) पहिला अध्याय :- ‘अथातो भोजपुरी भाषा’,
2) दुसरका अध्याय :- ‘इतिहास का ह’,
3) तिसरका अध्याय:- ‘काल विभाजन’,
4) चउथा अध्याय:- ‘सिद्ध आ नाथ काल’,
5) पाँचवाँ अध्याय:- ‘भोजपुरी लोकगाथा’,
6) छठा अध्याय:- ‘भोजपुरी संत समागम’,
7) सातवाँ अध्याय:- ‘भोजपुरी नवजागरण’,
8) आठवाँ अध्याय:- ‘भोजपुरी के प्रसार’,
9) नउआ अध्याय:- ‘भारतीय संविधान आ भोजपुरी’,

एह नौ गो अध्याय में भोजपुरी के इतिहास के समेटे के बढ़िया प्रयास कइल गइल बा।ई ग्रन्थ पाठकन खातिर संग्रहणीय बा।

अब हम बात करब डॉ अर्जुन तिवारी जी द्वारा लिखल “समकालीन भोजपुरी साहित्य कS समीक्षात्मक अध्ययन” पर।
ई ग्रन्थ भी भोजपुरी क्षेत्र में जागरण,कर्मठता,प्रगति,विकास आ शांति के सूचक बन के राष्ट्र संस्कृति,राष्ट्रभाषा के उन्नति में एतिहासिक भूमिका निभा रहल बा।
गौरवशाली भोजपुरियन के चित्त,चिन्तन,चेतना में हो रहल परिवर्तन के साथे सम सामयिक बदलाव के रेखांकित करत ई समकालीन भोजपुरी साहित्य के समीक्षात्मक अध्ययन पाठकन खातिर प्रस्तुत कइल गइल बा।अपना माई, माटी आ मानुष खातिर जेतना ऊँचा भाव भोजपुरी भाषा आ साहित्य में बा ओतना आउर कही नइखे ।जन मन के संस्कृति के एगो परम्परा होला ओकर मेल मिलाप जब साहित्य के साथे स्थापित होला त ओकरा के समकालीन साहित्य कहल जाला।जब सोच विचार अपना समय के सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक,सांस्कृतिक परिस्थितियन के चलते बदलत रहेला उहे समकालीन साहित्य में लउकेला।एहू ग्रन्थ में इहे सब संकलित बाड़ी सन। ई ग्रन्थ भी भोजपुरी पाठकन खातिर संग्रह करे लायक बा।भोजपुरी विषय पर समग्र जानकारी बा एह ग्रन्थ में।

एह ग्रन्थ के बारह गो अध्याय में बाँटल बा।साथे साथ अपना धरोहर के चर्चा भी कइल बा आ सन्दर्भ ग्रन्थ के सूची भी दिहल बा।
1) पहिला अध्याय: गरिमामयी भोजपुरी : अनमोल सांस्कृतिक थाती,
2) दूसरा अध्याय: समकालीन भोजपुरी साहित्य क स्वरूप विवेचन,
3) तिसरका अध्याय: समसामयिकता आ भोजपुरी काव्य-जगत,
4) चउथा अध्याय : आधुनिक नाटक,
5) पाँचवाँ अध्याय: भोजपुरी उपन्यास,
6) छठवाँ अध्याय: समसामयिक कहानी,
7) सातवाँ अध्याय: आधुनिक पत्रकारिता,
8) आठवाँ अध्याय: समकालीन निबन्ध,
9) नउआ अध्याय: भोजपुरी सिनेमा,
10) दसवाँ अध्याय: समकालीन भोजपुरी आलोचना,
11) ग्यारहवा अध्याय: विविधा,जीवन लेखन, संस्मरण, ठहाका लेखन, आत्मकथा,यात्रा साहित्य, अनुवाद साहित्य,
12) बारहवाँ अध्याय : उपसंहार।

थाती में – 1) भोजपुरी गरिमा, 2) अछूत के शिकायत, 3) बटोहिया, 4) फिरंगिया, 5) महापण्डित राहुल सांकृत्यायन के भाषण प्रकाशित बा।

डॉ अर्जुन तिवारी जी ई दूनो ग्रन्थ के लिख के ऐतिहासिक काम कइले बानी। खासकर के भोजपुरी विषय के शोधार्थी आ रिसर्चर खातिर ई दूनों पुस्तक बहुत उपयोगी बा।

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