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बादल का फटना और आकस्मिक बाढ़ के कारण! - श्रीनारद मीडिया

बादल का फटना और आकस्मिक बाढ़ के कारण!

बादल का फटना और आकस्मिक बाढ़ के कारण!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

    • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, आकस्मिक बादल फटने का कारण भारी तूफानी वर्षा है, जिसमें लगभग 10 वर्ग किलोमीटर के छोटे से क्षेत्र में एक घंटे से भी कम समय में 10 सेमी. से अधिक वर्षा होती है। ये प्रायः पहाड़ी क्षेत्रों, खासकर हिमालय में, में होती है।
    • भारतीय उपमहाद्वीप में यह आमतौर पर तब होता है जब मानसूनी मेघ बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से उत्तर की ओर बढ़ते हैं और मैदानी क्षेत्रों से होते हुए हिमालय की ओर पहुँचते हैं, जहाँ कभी-कभी प्रति घंटे 75 मिमी. वर्षा देखी जाती है।
  • कारण:
    • बादल फटने की घटना तब होती है, जब उष्ण पवनें वर्षा की बूँदों को गिरने से रोकती हैं, जिससे वे बड़ी हो जाती हैं जबकि नीचे नई छोटी बूँदें बन जाती हैं।
    • इससे वायुमंडल में जल का एक महत्त्वपूर्ण संचय होता है, जो ऊपरी धाराओं के कमज़ोर होने पर आकस्मिक उत्सर्जन होता है।
    • बादल फटने की घटनाएँ प्रायः भारतीय उपमहाद्वीप के पर्वतीय क्षेत्रों में देखी जाती हैं, जिसका मुख्य कारण इस क्षेत्र की जटिल स्थलाकृति है, जो ऑरोग्राफिक लिफ्टिंग (Orographic Lifting) को सुविधाजनक बनाती है।
      • ऑरोग्राफिक लिफ्टिंग तब होती है जब पवन ऊपर उठती है और पहाड़ के पवनाभिमुख में ऊपर की ओर उठते समय शीतल हो जाती है।
      • यह प्रक्रिया बादलों के विकास और वर्षा में वृद्धि करती है क्योंकि आर्द्र पवनें पहाड़ों पर ऊपर की ओर बढ़ती हैं, जिससे मानसून की गतिशीलता तथा स्थानीय जलवायु पैटर्न इन तीव्र वर्षा घटनाओं को और अधिक प्रभावित करते हैं।
  • बादल फटने की घटना वर्षा से भिन्न है:
    • वर्षा बादल से गिरने वाला संघनित जल है जबकि बादल फटना आकस्मिक होने वाली भारी वर्षा है।
    • प्रति घंटे 10 सेमी. से अधिक वर्षा को बादल फटना कहा जाता है।
    • बादल फटना एक प्राकृतिक परिघटना है, लेकिन यह अप्रत्याशित रूप से, अति आकस्मिक और काफी भीषण तरीके से होती है।
  • पूर्वानुमान:
    • उपग्रहों और ग्राउंड मॉनिटरिंग स्टेशनों में बादल फटने की घटना का पूर्वानुमान लगाने के लिये कोई संतोषजनक तकनीक नहीं है क्योंकि ये एक छोटे से क्षेत्र में और एक निश्चित अवधि के लिये विकसित होते हैं।
    • बादल फटने की संभावना का पता लगाने में रडार के एक बेहतरीन नेटवर्क की आवश्यकता होगी जो कि महँगा होगा।
    • केवल भारी वर्षा वाले क्षेत्रों की पहचान कम दूरी के पैमाने पर की जा सकती है। बादल फटने की घटना के अनुकूल क्षेत्रों और मौसम संबंधी स्थितियों की पहचान करके अधिक नुकसान से बचा जा सकता है।
  • बादल फटने के उदाहरण:
    • उत्तराखंड में बादल फटना (जुलाई 2021): चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में विनाशकारी बादल फटने से आकस्मिक बाढ़, भूस्खलन और बुनियादी ढाँचे तथा जान-माल का भारी नुकसान हुआ
    • हिमाचल में प्रदेश बादल फटना (अगस्त 2020): कुल्लू, लाहौल-स्पीति और किन्नौर में बादल फटने से भूस्खलन तथा आकस्मिक बाढ़ की घटना हुई, जिससे सड़कें, पुल और घर क्षतिग्रस्त हो गए।

बादल फटने के परिणाम क्या हैं?

  • फ्लैश फ्लड: फ्लैश फ्लड तीव्र वर्षा के दौरान या उसके बाद जल स्तर में अचानक, स्थानीय स्तर पर होने वाली वृद्धि है।
    • अधिक वर्षा के 6 या 3 घंटे के भीतर अचानक बाढ़ आ जाती है। यह आमतौर पर तीव्र तूफान के कारण होता है, लेकिन बाँध या तटबंध टूटने और मिट्टी के धँसने से भी हो सकता है।
    • वर्षा की तीव्रता, स्थान, भूमि उपयोग, स्थलाकृति, वनस्पति, मृदा प्रकार और जल सामग्री जैसे कारक फ्लैश फ्लड की गति तथा स्थान निर्धारित करते हैं।
  • भूस्खलन: भूस्खलन किसी ढलान से नीचे की ओर चट्टानमिट्टी या मलबे जैसी सामग्री का बड़े पैमाने पर खिसकना है। यह अचानक या लंबे समय तक धीरे-धीरे हो सकता है।
    • अधिक वर्षा, अपरदन और अपक्षय जैसे कारक भूस्खलन का कारण बन सकते हैं।
    •  IIT-मद्रास के शोध के अनुसार, भारत में भूस्खलन वैश्विक मौतों का लगभग 8% है, जिसमें वर्ष 2001 से वर्ष 2021 तक 847 मौतें हुईं और हज़ारों लोग विस्थापित हुए।
    • भारत का लगभग 13.17% क्षेत्र भूस्खलन के लिये अतिसंवेदनशील है, जिसमें से 4.75% को “अत्यधिक संवेदनशील” के रूप में नामित किया गया है।
    • सिक्किम सबसे अधिक संवेदनशील राज्य है, जबकि केरल का 14% से अधिक भू-भाग अत्यधिक संवेदनशील श्रेणी में है।
  • कीचड़ प्रवाह (Mudflows): यह जल प्रवाह का एक प्रकार है, जिसकी विशेषता इसका उच्च घनत्व और दलदलापन है तथा इसमें निलंबित कण और गाद की अधिक मात्रा होती है।
    • कीचड़ प्रवाह केवल सबसे मोटे पदार्थों का परिवहन और जमाव कर सकता है, जिससे अपरिवर्तनीय तलछट का जमाव होता है तथा यह आमतौर पर नियमित जल धाराओं जितना दूर तक नहीं बहता है।

बादल फटने पर जलवायु परिवर्तन का क्या प्रभाव है?

  • वायुमंडलीय नमी में वृद्धि: वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण वायुमंडल में अधिक नमी बनी रहती है। नमी से भरी यह हवा अधिक तीव्र बादल निर्माण और बादल फटने की संभावना खासकर हिमालय जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में, को बढ़ा सकती है।
  • वर्षा पैटर्न में परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन से वर्षा पैटर्न में बदलाव आ सकता है, जिसके कारण कुछ क्षेत्रों में लंबे समय तक शुष्क अवधि का सामना करना पड़ सकता है, जबकि अन्य क्षेत्रों में अधिक तीव्र वर्षा की घटनाएँ हो सकती हैं।
  • वायुमंडलीय स्थिरता में परिवर्तन: उच्च तापमान वायुमंडल को अस्थिर कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप संवहनीय गतिविधि बढ़ जाती है और अधिक बार तूफान आते हैं, जो अक्सर बादल फटने से संबंधित होते हैं।
  • हिमनद निवर्तन और बर्फ पिघलना: बढ़ते तापमान के कारण हिमालय जैसे क्षेत्रों में ग्लेशियरों के पिघलने से जल अधिक तेज़ी से निकल रहा है, जिससे बादल फटने की घटनाएँ बढ़ सकती हैं।
  • भूमि उपयोग में परिवर्तन: वनों की कटाई और शहरीकरण जैसी मानवीय गतिविधियाँ स्थानीय जलवायु और वर्षा के पैटर्न को बदल सकती हैं, जिससे पर्वतीय क्षेत्रों में सूक्ष्म जलवायु प्रभावित हो सकती है तथा बादल फटने की घटनाएँ भी प्रभावित हो सकती हैं।

बादल फटने के विनाशकारी प्रभाव को कम करने के क्या तरीके हैं?

  • पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: बादल फटने का पूर्वानुमान करने और समय पर चेतावनी देने के लिये प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ विकसित करना, ताकि लोग बचाव की तैयारी कर सकें और यदि आवश्यक हो तो वहाँ से निकल सकें।
  • शहरी नियोजन और बुनियादी ढाँचा: अतिरिक्त जल प्रबंधन और बाढ़ को कम करने के लिये आघात सहनीय शहरी नियोजन तथा बुनियादी ढाँचे, जैसे कि तूफानी जल निकासी प्रणालियों, प्रतिधारण तालाबों और हरित स्थानों में निवेश करना।
  • जलग्रहण क्षेत्रों का प्रबंधन: जलग्रहण क्षेत्रों के प्रबंधन के लिये कार्यप्रणालियों को लागू करना, जैसे मृदा अपरदन को कम करना और मृदा अंतःस्यंदन को बढ़ाना, ताकि जल प्रवाह को नियंत्रित करने तथा बादल फटने के प्रभाव को कम करने में सहायता मिल सके।
  • पुनर्वनीकरण और हरित अवसंरचना: अतिरिक्त जल को अवशोषित करने, मृदा अपरदन को कम करने और ढलानों को स्थिर करने के लिये पेड़ लगाए जाएँ तथा हरित क्षेत्र को बनाए रखने की आवश्यकता है, जिससे बादल फटने के प्रभाव को कम करने में सहायता मिलेगी।
  • जागरूकता और शिक्षा: समुदायों को बादल फटने के जोखिमों के बारे में शिक्षित करना तथा उन्हें प्रतिक्रिया और निकासी प्रक्रियाओं पर प्रशिक्षित करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे आवश्यक सावधानियाँ बरतें।
  • सतत् भूमि उपयोग अभ्यास: ऐसी भूमि उपयोग प्रथाओं को बढ़ावा देना जो बादल फटने की आशंका को कम करती हैं, जैसे बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण से बचना, वनों की कटाई को नियंत्रित करना और मृदा संरक्षण उपायों को लागू करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: पड़ोसी देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ संगठित होकर विशेष रूप से साझा नदी घाटियों में बादल फटने की घटनाओं के प्रबंधन के लिये सर्वोत्तम अभ्यास, प्रौद्योगिकी एवं संसाधनों को साझा करना।
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