समन्वित और संवेदनशील प्रबंधन से ही बचेगा पर्यावरण: गणेश दत्त पाठक
अंतराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के अवसर पर पाठक आईएएस संस्थान में परिचर्चा का आयोजन
श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):
पिछले कुछ वर्षों से मानवता कोरोना महामारी की विभीषिका का सामना कर रही है। भविष्य में मानवता को एक और गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ेगा। उस भावी चुनौती के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। मौसम के स्वभाव में आमूल चूल परिवर्तन हर जगह देखा जा रहा है। हर जगह कहीं ठंडी ज्यादा पड़ रही है तो कहीं गर्मी ।
कहीं वर्षा ज्यादा हो रही है तो कहीं भयंकर सूखा। ये सारे संकेत जलवायु परिवर्तन की आहट दे रहे हैं। जिस पर अंतराष्ट्रीय स्तर पर उतनी संजीदगी नहीं दिख रही है जितनी दिखनी चाहिए। जल, जंगल, हरियाली ही जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निबटने के प्रमुख आधार होंगे। पर्यावरण को बचाने के लिए समन्वित और संवेदनशील प्रबंधन की आवश्यकता होगी। शाश्वत विकास की अवधारणा को संपूर्ण कलेवर में अंगीकार करना होगा।
सघन वनारोपण भी पर्यावरण को बचाने का एक प्रमुख आधार हो सकता है। समन्वित ऊर्जा प्रबंधन, समन्वित जल प्रबंधन में जन भागीदारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। ये बातें अंतराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के अवसर पर रविवार को सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान में आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए शिक्षाविद् और पर्यावरण मामलों के जानकार श्री गणेश दत्त पाठक ने कही।
परिचर्चा में संस्थान से सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले कुछ अभ्यर्थियों ने भी शिरकत की। इस अवसर पर उपस्थित अभ्यर्थियों ने उपहार के तौर पर पौधों के आदान प्रदान का संकल्प लिया।
परिचर्चा में श्री पाठक ने कहा कि जहां आमजन अपने उपभोग के प्रति जागरूक हो वहीं राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर संवेदनशील प्रयासों की आवश्यकता है। वृक्षों के महत्व को समझना होगा। व्यक्ति को जहां जगह मिले, वहीं वृक्ष लगाए। उपहार में वृक्षों के आदान प्रदान की परंपरा भी जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों से निबटने में भारी मदद कर सकती है।
परिचर्चा में भाग लेते हुए अभ्यर्थी मोहन यादव ने कहा कि वन संरक्षण के अंतराष्ट्रीय प्रयास प्रभावी साबित नहीं हो पा रहे है। यह बेहद चिंताजनक स्थिति की ओर इशारा करती हैं। अभ्यर्थी रागिनी कुमारी ने कहा कि जनता के स्तर पर पर्यावरण के प्रति चेतना के जागृत होने के सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं। अभ्यर्थी मीना कुमारी ने कहा कि सौर ऊर्जा के संदर्भ में हालिया उपलब्धि सकारात्मक है। परंतु पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में अभी बहुत प्रयास करने हैं। समय भी गुजरता जा रहा है। अभ्यर्थी दिव्या तिवारी ने कहा कि युद्ध के दौरान मानवता के साथ पर्यावरण भी तबाह होता जाता है। जैसा कि रूस यूक्रेन युद्ध में देखने को मिल रहा है।
परिचर्चा में आशुतोष पांडेय, संजय सिंह, राजीव रंजन, इकबाल अंसारी, अमित कुमार सहित अन्य अभ्यर्थियों ने भी हिस्सा लिया।
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