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2024 का पहला ब्ल्यू सुपरमून दिखा! - श्रीनारद मीडिया

2024 का पहला ब्ल्यू सुपरमून दिखा!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सुपरमून एक ऐसा पूर्णिमा होता है जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है।यह सुपरमून ब्ल्यू मून भी है। दरअसल ब्ल्यू मून का रंग से कोई संबंध नहीं है। ब्लू मून दो तरह का होता है। मौसमी और मासिक। मौसमी ब्लू मून वह होता है जब एक मौसम में चार पूर्णिमाएं होती हैं।

भारत में सोमवार को ब्ल्यू सुपरमून दिखेगा। यह वर्ष 2024 का पहला सुपरमून होगा। भारत में यह 19 अगस्त की रात और 20 अगस्त की सुबह तक दिखेगा। ‘सुपरमून’ शब्द खगोलशास्त्री रिचर्ड नोले ने 1979 में किया था। सामान्य चंद्रमा की तुलना में सुपरमून लगभग 30 प्रतिशत से अधिक चमकीला होता है और 14 प्रतिशत बड़ा दिखाई देता है।

कब, कैसे और कहां देख सकेंगे आप?

सुपरमून ब्लू मून या ‘स्टर्जन मून’ 19 अगस्त, 2024 को दिखाई देगा। यह 19 अगस्त को दोपहर 2:26 बजे EDT पर उदय होगा। भारत में ये 19 अगस्त की रात से 20 अगस्त की सुबह तक देखा जाएगा। अगर आपके पास दूरबीन या टेलिस्कोप हो तो उनका उपयोग करें क्योंकि ये सुपरमून देखने के अनुभव को बेहतर बना सकता हैं।

चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होगा

धरती का चक्कर लगाते समय चंद्रमा की धरती से दूरी 357,000 से 407,000 किलोमीटर तक होती है। पूर्णिमा को चंद्रमा और सूर्य पृथ्वी से लगभग विपरीत दिशा में होते हैं। सुपरमून एक ऐसा पूर्णिमा होता है जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है।यह सुपरमून ब्ल्यू मून भी है। दरअसल ब्ल्यू मून का रंग से कोई संबंध नहीं है। ब्लू मून दो तरह का होता है। मौसमी और मासिक। मौसमी ब्लू मून वह होता है जब एक मौसम में चार पूर्णिमाएं होती हैं।

तीसरी पूर्णिमा को ब्ल्यू मून कहते हैं

तीसरी पूर्णिमा को ब्ल्यू मून कहते हैं। इस बार ऐसा ही ब्ल्यू मून दिखाई देगा। इसे स्टरजियान मून भी कहते हैं। इसका नाम स्टर्जन मछली के नाम पर रखा गया है। अमेरिकन इलाका ग्रेट लेक्स में इन दिनों स्टर्जन मछलियां दिखाई पड़ती हैं। इस साल उत्तरी गोलार्ध के लिए ग्रीष्म संक्रांति 20 जून 2024 को था। इसके बाद पहला पूर्ण चंद्र 22 जून, फिर दूसरा 21 जुलाई और अब तीसरा 19 अगस्त को हो रहा है। मासिक ब्लू मून वह होता है जब एक कैलेंडर महीने में दो पूर्णिमाएं होती हैं। 2024 में अगला सुपरमून 17 सितंबर को होगा। साल का आखिरी सुपरमून 15 नवंबर को होगा।

क्या है सुपर मून?

चांद से जुड़ी एक बेहद दुर्लभ घटना में से एक सुपर मून भी है। सुपरमून को साल में सिर्फ दो से तीन बार देखा जा सकता है। जिस दिन सुपर मून होता है, उस दिन चांद का आकार काफी ज्यादा बड़ा दिखता है। सुपरमून तब होता है जब अंतरिक्ष में होने वाली विशेष घटनाओं के कारण चंद्रमा सामान्य से अधिक बड़ा और चमकीला दिखता है। ऐसा तब होता है जब चांद, सूरज और पृथ्वी के बीच आ जाता है और सूरज की तेज रोशनी चंद्रमा पर पड़ती है। इस दौरान चांद पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है। इसी वजह से सुपरमून के दिन चांद पहले से कहीं बड़ा और चमकदार दिखता है।

सुपर मून और ब्लू मून में क्या फर्क है?

इस बार अगस्त में दो बार सुपरमून देखें जा सकते हैं। पहला एक अगस्त को दिखेगा, तो दूसरा 30 अगस्त को देखा जा सकता है। 30 तारीख को दिखने वाला चांद आकार में आम दिनों से कहीं ज्यादा बड़ा दिखेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन चांद पृत्थवी से ज्यादा करीब हो जाएगा, जिसे ब्लू मून कहा जा रहा है।

ब्लू मून दिखने में नीले रंग का नहीं होता। यह भी चमकदार सफेद ही दिखता है। असल में, जब एक ही महीने में दो सुपरमून दिखाई देते हैं, तो दूसरे सुपरमून को ब्लू मून कहा जाता है। इसलिए अगस्त में दिखने वाले पहले चांद को स्टर्जन मून कहा जा रहा है और दूसरे को ब्लू मून।

अब क्या होता है स्टर्जन मून?

ओल्ड फॉर्मर्स एल्मैनक की मानें तो अगस्त के महीने में अगर फुल मून पड़ता है, तो उसे पारंपरिक तौर पर स्टर्जन मून कहा जाएगा। इसके पीछे वजह है स्टर्जन नाम की मछली। दरअसल, कई सालों पहले अगस्त यानी गर्मी के मौसम में में ग्रेट लेक्स और लेक चैम्पलेन में स्टर्जन नाम की मछली की तादाद काफी ज्यादा हुआ करती थी।

इन मच्छलियों का साइज काफी बड़ा होता है। इसलिए इस महीने पड़ने वाले फुल मून को स्टर्जन मून का नाम दिया गया। हालांकि, अब इनकी संख्या पहले के मुकाबले काफी कम हो गई है।

फुल मून के हैं और भी कई नाम

जैसा कि आप जानते हैं कि इस साल कुल 4 सुपर मून देखने को मिलने वाले हैं। जिनमें से सबसे पहला जून के महीने में देखा गया था। इसे स्ट्रॉबेरी मून का नाम दिया गया, क्योंकि जून में स्ट्रॉबेरीज़ की खेती होती है और सुपर मून भी इस दौरान देखा गया।

दूसरा और तीसरा सुपर मून अगस्त में देखने को मिलेगा, जिसे स्टर्जन मून और ब्लू मून का नाम दिया गया है। वहीं, साल का आखिरी सुपर मून सितंबर में देखने का मिलेगा, जिसका नाम हार्वेस्ट मून दिया गया है।

हार्वेस्ट मून नाम क्यों पड़ा?

आमतौर पर सूरज डूबते ही चांद निकल आता है, लेकिन चारों तरफ अंधेरा ही रहता है। हालांकि, सितंबर में आने वाले सुपरमून की वजह से देर रात तक रौशनी रहती है, जिससे किसानों को फसल काटने का ज्यादा समय मिल जाता है। यही वजह है कि सितंबर में आने वाले सुपर मून को हार्वेस्ट मून कहा जाता है।

फुल मून यानी पूर्णिमा के नाम मूल अमेरिकी लोककथाओं से मिलते हैं। उस समय की जनजातियां मौसम के अलग-अलग नाम रखती थीं, ताकि उसे आसानी से पहचाना जा सके। सितंबर में होने वाले सुपर मून का नाम हार्वेस्ट मून इसलिए पड़ा, क्योंकि किसान फसल काटने के लिए फुल मून पर निर्भर हुआ करते थे।

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