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बिहार में न्याय मिलना पत्थर पर दूब जमाने जैसा है-नीलमणि पाण्डेय. - श्रीनारद मीडिया

बिहार में न्याय मिलना पत्थर पर दूब जमाने जैसा है–नीलमणि पाण्डेय.

बिहार में न्याय मिलना पत्थर पर दूब जमाने जैसा है–नीलमणि पाण्डेय.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार में न्याय मिलना पत्थर पर दूब जमाने जैसा है।दो उदाहरण आपके समक्ष पेश कर रहा हूँ आपलोग खुद निर्णय कीजिये कि न्याय कैसे मिलेगा?

1.सीवान के एक पेट्रोल पंप के खिलाफ कम मात्रा में तेल देने के आरोप में अगस्त 2021 को मैंने संबंधित तेल कंपनी के एरिया सेल्स मैनेजर को एक लिखित शिकायत किया ,लेकिन कोई कारवाई नही हुई उल्टे ASM द्वारा मुझे संबंधित पेट्रोल पंप के मालिक से मिलने की सलाह दे कर उनका मोबाइल नंबर उपलब्ध कराया गया।मैंने 1 सितंबर को सीवान के जिलाधिकारी महोदय को एक लिखित आवेदन दे कर जाँच कर कारवाई करने का अनुरोध किया।

मेरे आवेदन पर जिलाधिकारी महोदय ने जिला आपूर्ति पदाधिकारी सिवान को जाँच कर कारवाई करने का निर्देश दिया।जिला आपूर्ति पदाधिकारी ने उस आवेदन को SDO सिवान सदर को अग्रसारित कर दिया।उसके पश्चात SDO सीवान सदर द्वारा मेरे आवेदन को सहायक आपूर्ति पदाधिकारी को अग्रसारित किया गया।जब कई महीनो तक मुझे कारवाई से संबंधित कोई जानकारी नही मिली तो मैं SDO सिवान सदर के कार्यालय पहुंचा तो पता चला कि उनके कार्यालय के सहायक विजय कुमार मेरे आवेदन पर कुंडली मारकर बैठे है।

खैर वहाँ से जब मैंने आवेदन को सहायक आपूर्ति पदाधिकारी के यहाँ भेजवाया तो सहायक आपूर्ति पदाधिकारी आवेदन पढ़ कर हाथ खड़ा कर लिए और बोले कि सीवान के सभी पेट्रोल पंप वाले चोर है,जो सबसे ईमानदार है वो भी 1 लीटर की बजाय 900 ग्राम ही तेल देता है।उनकी घबराहट और विवशता को देख कर मैं भी अचंभित हो गया।सहायक आपूर्ति पदाधिकारी ने बताया कि मैं अकेले जाँच करने में सक्षम नही हु बकौल जाँच हेतु मुझे 3-4 आपूर्ति निरीक्षक की जरूरत है।उन्होंने भरे मन से 3-4 आपूर्ति निरीक्षक की मांग SDO सीवान सदर से की। 6 महीना बीतने पर भी न तो छापेमारी टीम का गठन हो पाया और न ही कोई जाँच और कारवाई हो पाई है।

आज जब मैं पुनः SDO सीवान सदर के कार्यालय गया तो पता चला कि मेरा फ़ाइल फिर विजय जी के पास पड़ा है जो कुंडली मार कर बैठे है।उन्होंने आज मुझे बताया कि अभी तक जाँच सह छापेमारी टीम का गठन नही हो पाया है क्योकि इसमें माप तौल निरीक्षक की भी जरूरत है जिसकी डिमांड सहायक आपूर्ति पदाधिकारी ने नही की है।विजय जी ने बताया कि हर महीने तेल कंपनियों के प्रतिनिधि के साथ आपूर्ति पदाधिकारि के साथ बैठक होती है जिसमे आपके मामले की चर्चा की जाएगी।चर्चा कब होगी, छापेमारी और जाँच कब होगी भगवान ही जाने।

केस नंबर 2

सीवान नगर थाने के तत्कालीन दो दरोगा और दो जमादार के खिलाफ जुलाई 2019 में मेरे द्वारा सिवान SP के पास लिखित शिकायत की गई,लेकिन शिकायत के बाद मेरा आवेदन ही SP कार्यालय से गायब हो गया।उसके बाद मैंने DIG सारण IG मुज़्ज़फरपुर और राज्य मानवाधिकार आयोग बिहार पटना को लिखित शिकायत की लेकिन कोई कारवाई नही हुई।उसके बाद मैंने 9 अगस्त 2019 को बिहार पुलिस मुख्यालय जा कर राज्य के DGP महोदय से मिलकर सारे तथ्यों से उन्हें अवगत कराया।DGP महोदय द्वारा मेरे आवेदन को DIG सारण को अग्रसारित करते हुए उनसे मिलने की सलाह दी गई।कई महीनों तक DIG सारण के यहाँ दौड़ने के बाद मालूम हुआ कि मेरा आवेदन ही पुलिस मुख्यालय से उनके कार्यालय नही पहुँचा है।

खैर DIG महोदय ने मेरी परेशानी को समझते हुए सीवान के तत्कालीन SP को मोबाइल पर आवश्यक निर्देश देते हुए दोषी पुलिस कर्मियों पर तुरंत एक्शन लेने को कहा और मुझे सिवान SP से मिलने को कहा।DIG साहब के कहने पर मैं सीवान SP से मिला तो उन्होंने मुझे फिर आवेदन देने को कहा और मेरे आवेदन को SDPO सीवान सदर को जांच हेतु अग्रसारित किया।जब कई महीनों तक SDPO साहब ने जाँच नही किया तो सूचना के अधिकार के तहत मैंने SP से लेकर DGP तक अपने आवेदन पर की गई कारवाई के बारे में जानना चाहा तो वहाँ से भी कोई सूचना उपलब्ध नही कराया गया।फिर मैंने फरवरी 2020 में माननीय मुख्यमंत्री बिहार को सम्बोधित एक आवेदन दिया लेकिन उसपर भी कोई कारवाई नही हुई।

मैंने पुनः मुख्यमंत्री सचिवालय से सूचना के अधिकार के तहत आवेदन पर की गई कारवाई के बारे में जानकारी मांगी तो वहाँ से बताया गया कि आपके आवेदन को बिहार पुलिस मुख्यालय DGP के पास भेजा गया है आप वहाँ से संपर्क करें।फिर थक हार कर DIG सारण के पास पुनः गया और फिर से सारी बाते बताई तो तत्कालीन DIG विजय कुमार वर्मा ने सीवान SP को पत्र भेजा।DIG सारण के कड़े रुख को देखते हुए SP सीवान ने फिर SDPO सीवान से जाँच कर तुरंत रिपोर्ट देने को कहा।आनन फानन में सीवान SDPO ने बिना घटना के चश्मदीद गवाहों का बयान लिए और न ही इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों का परीक्षण किए और बिना मेरे बयान को दर्ज किए एकपक्षीय जाँच रिपोर्ट भेज कर दोषी पुलिस कर्मियों को क्लीन चिट दे दी गई।

अंत में मैंने निराश हो कर 2021 में पटना हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर किया वो भी 13 महीनो से अभी तक सुनवाई हेतु अपनी बारी आने का इंतजार कर रहा है।
यही है न्याय प्रणाली और यही है बिहार की सुशासन सरकार।आप खुद निर्णय कीजिये कि एक आम आदमी को न्याय कैसे और कहाँ मिलेगा।

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