परफेक्शन की तलाश में खो गए गुरुदत्त,कैसे?

परफेक्शन की तलाश में खो गए गुरुदत्त,कैसे?

सब कुछ होने के बावजूद क्यों ताउम्र बेचैन रहे गुरुदत्त!

जन्म शताब्दी पर विशेष

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

गुरु दत्त हिंदी सिनेमा के उन महान कलाकारों में गिने जाते हैं, जिन्होंने अपनी फिल्मों से लोगों के दिलों को छू लिया. उनकी कहानियां जितनी सुंदर थी, उतनी ही गहरी भी थी. लेकिन दुख की बात है कि अपनी मौत के बाद उन्होंने लोगों को यह भी सिखा दिया कि मानसिक स्वास्थ्य की बातें छुपानी नहीं चाहिए. गुरु दत्त का असली नाम वासंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. फिल्मों में वो जितने सफल थे, निजी जिंदगी में उतने ही परेशान रहते थे. उन्होंने अपने पूरे करियर में सिर्फ आठ फिल्मों का निर्देशन किया.

उनकी पहली फिल्म बाजी साल 1951 में आई थी, जो काफी हिट हुई थी. इसके बाद उन्होंने कई शानदार फिल्में बनाई, जिनमें कागज के फूल सबसे खास है. लेकिन जब ये फिल्म रिलीज हुई तो फ्लॉप हो गई. इसके बाद गुरु दत्त इतने दुखी हुए कि उन्होंने दोबारा कभी डायरेक्शन नहीं किया. आज उसी कागज के फूल को उनकी सबसे बड़ी कृति माना जाता है.

“जिंदगी नरक हो गई है”

इस घटना के बाद दोनों अलग हो गए। ‘गुरुदत्त द अनसेटिसफाइड स्टोरी’ किताब के अनुसार, एक बार गीता दत्त ने वहीदा पर अपनी भड़ास निकालते हुए कहा था ‘जब से वो हमारी जिंदगी में आई है, तब से जिंदगी नरक हो गई है।’ गीता दत्त अपने पति के इस नाजायज प्यार को बर्दास्त नहीं कर पाईं और नाराज होकर अपने तीनों बच्चों के साथ मां के पास चली गईं। कहा जाता है कि आखिरी वक्त गुरुदत्त अपनी जिंदगी में बेहद तन्हा हो गए थे। उन्होंने शराब को अपना साथी चुन लिया था।

वहीदा के प्यार में सब भूल गए डायरेक्टर

कहा जाता है कि वहीदा रहमान के गुरुदत्त के जीवन में आने के बाद उनके गीता से झगड़े काफी बढ़ गए थे। वहीदा के प्यार में वो ऐसे दीवाने हो गए थे कि वहीदा की तस्वीर उनकी निगाहों से नहीं उतरती थीं। गुरुदत्त वहीदा के प्यार में पत्नी और परिवार को भूलते जा रहे थे।

गुरु दत्त की खासियत थी कि वो अपनी फिल्मों में लाइट और शैडो का कमाल दिखाते थे. उनकी फिल्मों में किरदारों की भावनाएं बहुत साफ नजर आती थी. उनकी आखिरी फिल्म का गाना वक्त ने किया क्या हसीन सितम आज भी लोगों की जुबान पर है, जिसे उनकी पत्नी गीता दत्त ने अपनी आवाज दी थी.

गुरु दत्त की फिल्मों और उनकी असल जिंदगी में कई चीजें एक जैसी थी. 1951 से 1955 के बीच उनकी फिल्में रोमांटिक और म्यूजिकल थी. इसी दौरान वो गीता रॉय से प्यार कर बैठे और 1953 में दोनों ने शादी कर ली. लेकिन 1956 के बाद उनके करियर और निजी जिंदगी दोनों में बदलाव आया. उनकी फिल्मों में समाज की सच्चाई दिखने लगी. प्यासा और कागज के फूल जैसी फिल्मों में उन्होंने समाज के हालात को दिखाया.

1956 में प्यासा बनाते वक्त उन्होंने पहली बार अपनी जान देने की कोशिश की थी. लेकिन परिवार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. धीरे-धीरे उनकी हालत और बिगड़ती गई और 10 अक्टूबर 1964 को वो सिर्फ 39 साल की उम्र में दुनिया छोड़कर चले गए. गुरु दत्त आज भी अपनी फिल्मों और अपने हुनर के लिए याद किए जाते हैं.

सब कुछ होने के बावजूद क्यों ताउम्र बेचैन रहे गुरुदत्त!

भारतीय सिनेमा में मिसाल बन चुके गुरुदत्त एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने अपने जीवन को सिनेमा का पर्दा समझा और उसमें ही अपना सब कुछ झोंक दिया। उनके अंदर एक अजीब सी बेचैनी थी। पर्दे पर कुछ अद्भुत और अद्वितीय रचने की बेचैनी। गुरुदत्त अपने आप में सिनेमा का महाविद्यालय थे। उनकी तीन क्लासिक फिल्में ‘साहिब बीवी और गुलाम’, ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ को टेक्स्ट बुक का दर्जा प्राप्त है।

गुरुदत्त ने साल 1946 में प्रभात स्टूडियो की एक फिल्म ‘हम एक हैं’ से बतौर कोरियोग्राफर अपना फिल्मी करियर शुरू किया। इसके बाद अभिनेता को फिल्म में एक्टिंग करने का मौका भी मिला था। अभिनेता का करियर आगे बढ़ ही रहा था कि साल 1951 में देवानंद की फिल्म ‘बाजी’ की सक्सेस के बाद गुरु दत्त की मुलाकात गीता दत्त से हुई। इस फिल्म के दौरान दोनों करीब आए और साल 1953 में उन्होंने शादी कर ली।

गुरुदत्त अपनी शादी शुदा जिंदगी से काफी खुश थे और करियर में आगे बढ़ रहे हैं। इसी दौरान उनकी मुलाकात वहीदा रहमान से हुई। ऐसा कहा जाता है कि वहीदा रहमान और गुरुदत्त एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे, लेकिन गुरु दत्त पहले से ही शादीशुदा थे। वहीदा रहमान को लेकर गुरुदत्त और गीता दत्त में आए दिन झगड़े होते रहते थे। साल 1957 में दोनों की शादीशुदा जिंदगी में दरार आ गई और दोनों अलग-अलग रहने लगे।

इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक हिट फिल्में देने वाले गुरुदत्त उस वक्त दिवालिया हो गए, जब उनकी फिल्म ‘कागज के फूल’ फ्लॉप हो गई। एक तरफ निजी जिंदगी की परेशानियां। वहीं, दूसरी ओर प्रोफेशनल लाइफ में नुकसान की वजह से गुरुदत्त बिल्कुल टूट चुके थे। उन्होंने दो बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी। 39 साल की उम्र में गुरु दत्त अपने बेडरूम में मृत पाए गए।

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