गुरु का हर किसी के जीवन मे बड़ा महत्व होता हैं.मेरे जीवन में मेरे पहले शिक्षक मेरे पिता हैं : प्रवीण किशोर

गुरु का हर किसी के जीवन मे बड़ा महत्व होता हैं.मेरे जीवन में मेरे पहले शिक्षक मेरे पिता हैं : प्रवीण किशोर

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श्रीनारद मीडिया, प्रसेनजीत चौरसिया, सीवान (बिहार)

सीवान जिले के रघुनाथपुर के हरनाथपुर गांव निवासी प्रवीण किशोर कहते हैं कि आज शिक्षक_दिवस पर अपने शिक्षक पिता विनोद कुमार साहू तथा सभी गुरुजनो को धन्यवाद करता हूं। जिन्होंने मुझे अपने छत्रछाया में रखकर शिक्षा का पाठ पढ़ा कर इस मुकाम तक पहुंचाएं।सभी को सादर प्रणाम।

शिक्षक दिवस (Teachers’ Day) गुरु की महत्ता बताने का आज प्रमुख दिवस है। प्रतिवर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारत भर में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। ‘गुरु’ का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व होता है। समाज में भी उनका अपना एक विशिष्ट स्थान होता है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे। वे एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे। उन्हें अध्यापन से गहरा प्रेम था। एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे। इस दिन समस्त देश में भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है।

इस दिन प्रत्येक छात्र को अपने गुरु को मान-सम्मान देने और उनकी आज्ञा मानने का प्रण लेंना चाहिए।
शिक्षक का समाज में आदरणीय व सम्माननीय स्थान होते हैं। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस और उनकी स्मृति के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला ‘शिक्षक दिवस’ एक पर्व की तरह है, जो शिक्षक समुदाय के मान-सम्मान को बढ़ाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन को ‘गुरु दिवस’ के रूप में स्वीकार किया गया है। विश्व के विभिन्न देश अलग-अलग तारीख़ों में ‘शिक्षक दिवस’ को मानते हैं। बहुत सारे कवियों, गद्यकारों ने कितने ही पन्ने गुरु की महिमा में रंग डाले हैं।
महत्त्व- गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।

कबीरदास द्वारा लिखी गई उक्त पंक्तियाँ जीवन में गुरु के महत्त्व को वर्णित करने के लिए काफ़ी हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक की परंपरा चली आ रही है। गुरुओं की महिमा का वृत्तांत ग्रंथों में भी मिलता है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन ख़ूबसूरत दुनिया में लाते हैं। उनका ऋण हम किसी भी रूप में उतार नहीं सकते, लेकिन जिस समाज में रहना है, उसके योग्य हमें केवल शिक्षक ही बनाते हैं। यद्यपि परिवार को बच्चे के प्रारंभिक विद्यालय का दर्जा दिया जाता है, लेकिन जीने का असली सलीका उसे शिक्षक ही सिखाता है। समाज के शिल्पकार कहे जाने वाले शिक्षकों का महत्त्व यहीं समाप्त नहीं होता, क्योंकि वह ना सिर्फ़ विद्यार्थी को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि उसके सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है।

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