Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
क्या लोकतंत्र को दलबदल ने कमज़ोर किया है? - श्रीनारद मीडिया

क्या लोकतंत्र को दलबदल ने कमज़ोर किया है?

क्या लोकतंत्र को दलबदल ने कमज़ोर किया है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दलबदल बीते वर्षों में भारतीय राजनीति का स्थायी मर्ज बन गया है शुचिता, समर्पण और पारदर्शिता जैसे शब्द तो राजनीति पर बोझ प्रतीत होने लगे हैं। नेता अवसर की तलाश में बैठे हैं। किसी तरह बस स्वार्थ सिद्ध होना चाहिए। विचार तो अब सस्ते रेडीमेड कपड़ों जैसे हो गए हैं। पहनिए और और फेंक दीजिए। राजनीति में दलबदल ऐसा दलदल है, जिसने लोकतंत्र को रसातल में ले जाने का ही काम किया है।

राजनीतिक दल यूं ही नहीं बन जाते। उनके बनने के पीछे एक सामरिक इतिहास होता है, परिस्थितियों से उपजा अनुभव होता है और सबसे बढ़कर नीतियों की परख होती है। तब राजनीतिक दलों के लिए जमीन तैयार होती है। दलबदल और दलबदलुओं ने इसी जमीन को कमजोर किया है। निष्ठाएं जब हित साधने का जरिया बनने लगती हैं, तब राजनीति को ऐसे ही संकट से जूझना पड़ता है, जैसे वर्तमान में हो रहा है। जब दलों पर कार्यकर्ताओं की जगह अवसरवादी हावी होने लगें तो बेहतर की उम्मीद बेमानी हो जाती है।

इस बात से इन्कार नहीं कि समय के साथ राजनीतिक परंपराओं का भी अवमूल्यन हुआ है, लेकिन इसके लिए सिर्फ राजनीतिक दलों को ही जिम्मेदार मान लेना सही नहीं होगा। सच कहें तो इसके लिए हम सब बराबर के भागीदार हैं। राजनीतिक दलों ने एक भ्रम पैदा किया हुआ है कि ‘जनता सब जानती है’, जबकि वास्तविकता यह है कि जनता सिर्फ इस्तेमाल होती है। नेता रातोंरात पाला बदल लेते हैं और जनता को लगता है कि उसके प्रश्नों ने उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया।

ऐसे राजनेताओं के लिए सत्ता का लोभ ही उनका एकमात्र लक्ष्य हो जाता है। यहीं से राजनीति में व्यक्तिवाद, परिवारवाद और जातिवाद का जन्म होता है। यहीं से सरकारी धन का दुरुपयोग और योजनाओं में बंदरबांट कर राजनेता अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाता है, उसे मजबूत करता है। साथ ही अपना वर्चस्व इस दल या उस दल को दिखाकर राजनीतिक दलों के लिए अपरिहार्य बन जाता है। यह स्वस्थ एवं जागरूक प्रजातंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता।

कुल मिलाकर ऐसे नेता, जिनकी प्रतिबद्धता अपने क्षेत्र और दल के प्रति नहीं, जो मौका देखकर पाला बदलते हैं, प्रजातंत्र का विद्रूप हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति समाज को बदलने का जरिया है। वह समाज से निकलती है, मगर यथास्थिति उसका गंतव्य नहीं। राजनीति में निरंतरता का होना बेहद जरूरी है और ऐसा गतिशीलता के बिना संभव नहीं। अन्यथा तय मानिए कि वर्तमान स्थितियां बदलने वाली नहीं हैं। गलत का क्षणिक विरोध होगा और फिर सब इसका हिस्सा बन जाएंगे।

विचारधारा के होते क्षरण ने दलबदल और अवसरवाद को और ज्यादा बढ़ाया है। आज नेताओं के लिए दल विशेष का कोई महत्व नहीं है। बहुत से नेताओं के लिए बस सत्ता लोभ ही सब कुछ है। जनता को ऐसे नेताओं को पहचानने की जरूरत है। अवसरवादिता स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हितकर नहीं है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!