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क्या ओबामा ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर बयान देकर पीएम मोदी का सिर दर्द बढ़ा दिया है? - श्रीनारद मीडिया

क्या ओबामा ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर बयान देकर पीएम मोदी का सिर दर्द बढ़ा दिया है?

क्या ओबामा ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर बयान देकर पीएम मोदी का सिर दर्द बढ़ा दिया है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका का स्टेट विजिट आज यानी 23 जून को खत्म हो जाएगा. इस दौरे को लेकर तमाम तरह के स्वर भारत में उठ रहे हैं. एक तरफ जहां वाह-वाह हो रही है, वहीं दूसरी तरफ आलोचना के सुर भी गूंज रहे हैं. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ठीक उसी वक्त सीएनएन को दिए गए इंटरव्यू में कहा कि अगर उनकी मोदी से बात होती तो वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर बात करते. इसके साथ ही प्रेस-कांफ्रेंस में भी मुस्लिमों को लेकर एक जर्नलिस्ट ने मोदी से सवाल पूछे. इसके पहले 75 डेमोक्रेट सांसदों ने चिट्ठी लिखकर बाइडेन को मोदी से मानवाधिकारों और फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन पर बात करने के लिए कहा था, जिसका भारत में विपक्षी पार्टी कांग्रेस के कई नेताओं ने जमकर प्रचार किया.

बाइडेन-मोदी की जुगलबंदी ऐतिहासिक

मोदी का दौरा ऐतिहासिक था. इतिहास में पहली बार किसी विदेशी डिग्निटरी के स्टेट विजिट के समय ह्वाइट हाउस का दरवाजा आम जनता के लिए भी खोला गया था. लगभग 7 से 8 हजार अमेरिकी-भारतीय वहां मौजूद थे. मोदी और बाइडेन की देहभाषा यानी बॉडी लैंग्वेज से समझ आ रहा था कि दोनों नेता कितने सहज थे. काफी बढ़िया केमिस्ट्री दोनों के बीच दिखी. एक सर्वे है AAPI, जिसके मुताबिक 4 मिलियन के इंडियन-अमेरिकन में से 74 प्रतिशत ने बाइडेन को वोट दिया था. यह बात बाइडेन को भी पता है और दूसरी बात मोदी का अपना व्यक्तित्व, अपना ऑरा है. वह जो कहते हैं, वे करते हैं और उनमें एक अच्छा तालमेल है. अमेरिका में जब कोविड-काल में हाइड्रोक्लोरोक्वीन के लिए हाहाकार मचा था, चीन के रास्ते सब कुछ आना बंद था, तो मोदी खड़े हुए और भारत ने उसकी निर्बाध आपूर्ति की थी.

अमेरिकी इसीलिए भारत में एक अच्छा साझीदार देखते हैं. आप यह बात समझिए कि बाइडेन का कार्यकाल लगभग खत्म हो रहा है, और केवल दो राष्ट्राध्यक्षों को यह मौका मिला है.कि वे अमेरिका की स्टेट-विजिट पर आएं. इससे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल को ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने स्टेट विजिट पर आमंत्रित किया था. मोदी स्टेट विजिट पर आने वाले तीसरे मेहमान बने. मोदी ने इससे पहले 2016 में भी अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया था और वह दो बार अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को संबोधित करनेवाले पहले नेता हैं.

ओबामा का बयान मोदी के लिए नहीं मुश्किल

कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना. जियो-पॉलिटिक्स में “गिव एंड टेक” की पॉलिसी होती है. संबंध एक दिन में नहीं बनते हैं और न ही यह मार्केट में जाकर कोई सामान खरीदने जैसा है. इस यात्रा में बाइडेन ने भारत को ‘नेचुरल अलाई’ और ‘स्ट्रांग पार्टनर’ कहा, उसकी उतनी चर्चा नहीं हो रही है, लेकिन ओबामा के एक बयान की हो रही है. ठीक है, ओबामा पूर्व राष्ट्रपति हैं और उनके बयान की एक वकत है, लेकिन उन्होंने ऐसा क्या कह दिया है? उन्होंने कहा, “हिंदू बहुसंख्यक भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा काबिले-ज़िक्र है.

अगर मेरी मोदी से बात होती तो मेरा तर्क होता कि अगर आप (नस्लीय) अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा नहीं करते हैं तो मुमकिन है कि भविष्य में भारत में विभाजन बढ़े.” इसमें कोई ऐसी चिंताजनक बात तो नहीं है. इससे पहले आप याद कीजिए तो 2015 में भी ओबामा ने भारत के बारे में कहा था कि वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ता रहेगा, जब तक वह धार्मिक और नस्लीय आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा. तो, ओबामा की राय एक बेहद सामान्य राय है. किसी भी स्टेट्समैन की जिस तरह की राय होती है, वैसी ही राय है और भारत के प्रधानमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस में बता दिया है कि भारत के डीएनए में प्रजातंत्र है और किसी को इसको लेकर न तो चिंता करने की जरूरत है, न ही इसको “लेक्चर” समझना चाहिए.

वैसे भी, आप एक बात जानिए कि पश्चिमी मीडिया जो है, वह कॉनकॉक्टेड स्टोरीज बनाता है. जैसे, वॉल स्ट्रीट जर्नल की पत्रकार सिद्दीकी के सवाल का बहुत जिक्र भारत में हो रहा है, जो उन्होंने पीएम मोदी से मुस्लिमों के अधिकार पर पूछे थे. मोदी ने उसका कितना सधा हुआ जवाब दिया था, उसकी भी चर्चा करनी बनती है. मोदी ने कहा, “यूएस और इंडिया के दोनों के डीएनए में लोकतंत्र है. डेमोक्रेसी हमारी स्पिरिट है. लोकतंत्र हमारी रगों में है. लोकतंत्र को हम जीते हैं. इसीलिए, हम सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास की बात करते हैं.” इससे पहले जब ह्वाइट हाउस से पूछा गया था कि वह मोदी को स्टेट विजिट पर क्यों बुला रहे हैं,

तो बाकी देशों के साथ ह्वाइट हाउस ने अपने जवाब में यह भी कहा था  कि भारत में “वाइब्रेंट डेमोक्रेसी” है. आपको यह भी बताना चाहिए कि जब 75 डेमोक्रेट सांसदों ने बाइडेन को पत्र लिखा और जिस पत्र का जिक्र भारत में विपक्षी दल के कई नेता करते हैं, तो पेंटागन ने उसका साफ जवाब दिया था और ह्वाइट हाउस ने भी साफ किया कि वह मोदी को कोई “लेक्चर” नहीं देंगे.

सबसे बड़ी बात यह याद रखनी चाहिए कि इस “लेटर मूवमेंट” को शुरू करनेवाले सीनेटेर क्रिस वैन कॉलेन और रिप्रजेंटेटिव प्रमिला जयपाल का इतिहास क्या है? सीनेटर क्रिस तो पैदा ही पाकिस्तान में हुए और पाकिस्तान-लॉबी के करीब भी हैं, प्रमिला जयपाल केवल कहने को ही भारतवंशी हैं. ये दोनों ही इससे पहले भी एनआरसी, किसान-आंदोलन और कश्मीर के मुद्दे को उठा चुके हैं.

विघ्नसंतोषी जो भी कहें, दौरा बेहद सफल

जब आप आगे बढ़ते हैं तो कुछ इस तरह के लोग आ ही जाते हैं, जिनको विघ्न-संतोषी कहा जाता है. पहली बार यह हुआ है कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने दूसरी बार अमेरिकी संसद को संबोधित किया है.  बाइडेन और मोदी साथ कैसे आ रहे हैं. पहले वो लोग पाकिस्तान को सपोर्ट कर रहे थे, अब भारत करीब आ रहा है. एक या दो प्रोटेस्टर थे, तो उनकी चर्चा आप कर रहे हैं, हम लोग कर रहे हैं,

लेकिन 7 से 8 हजार भारतवंशी अमेरिकी थे, उसकी बात नहीं कर रहे. अमेरिकी संसद में मोदी-मोदी के नारे लग रहे थे, उसकी बात नहीं हो रही है. बहुतेरी डील्स हुई हैं. जो एमक्यू नाइन रिपल ड्रोन सबसे सॉफिस्टिकेटेड ड्रोन है, उसकी 3 बिलियन डॉलर की डील लगभग डन है और यह तो हवा-हवाई नहीं है. इसके साथ ही जो डील हो रही है, हथियारों की, उसमें केवल हथियार देने की बात नहीं है. भारत-अमेरिका दोनों मिलकर उसे बनाएंगे, तकनीक मिलेगी भारत को औऱ जब अमेरिकी राष्ट्रपति कहते हैं कि भारत नेचुरल सहयोगी है, तो वह हवा में तो नहीं ही कहते हैं.

आलोचक तो यह भी कहते हैं कि भारत को चीन के मसले पर कुछ संतोषजनक नहीं मिला. तो, चीन के साथ अमेरिका का 500-600 बिलियन डॉलर में इनवेस्टमेंट है, वह एक दिन में खत्म नहीं होगी और क्यों खत्म होगी? देखना यह चाहिए कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत को एक ताकत के तौर पर उभारा जा रहा है. ऐसा तो है नहीं कि आपने आज चाहा और आज चीन को पटखनी दे दी. वह तो एक लंबे समय में होगा. हमें खुद को मजबूत करना है. एक बार जब हम चीन से अधिक मजबूत बन जाएंगे, तो फिर परवाह नहीं होगी, जैसे पाकिस्तान की नहीं होती.

मोदी एक बड़े देश के चुने प्रधानमंत्री हैं. आलोचक तो यह भी कहते हैं कि उन्होंने वॉल स्ट्रीट जर्नल की पत्रकार को करारा जवाब नहीं दिया. तो, किस तरह से वो करारा जवाब देते, चिल्लाने लगते? यहां मोदी की जय-जयकार हो रही है, यहां तो जश्न मनाना चाहिए. मोदी अब मंडेला और विंस्टन चर्चिल की कतार में शामिल हो गए हैं, अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को दो बार संबोधित कर. उनके नाम के नारे लग रहे थे, अब एक भारतवासी के तौर पर भला और क्या चाहिए?

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