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क्या भारत-कनाडा संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है? - श्रीनारद मीडिया

क्या भारत-कनाडा संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है?

क्या भारत-कनाडा संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कनाडा में एक खालिस्तानी नेता की हत्या में भारत की संलिप्तता के आरोपों के बाद भारत-कनाडा संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

भारत-कनाडा संबंधों में हाल की घटनाएँ क्या हैं?

  • निज्जर की हत्या: ब्रिटिश कोलंबिया में खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि इसमें भारतीय अधिकारी शामिल थे, जिसे भारत ने स्पष्ट रूप से “निराधार” बताकर अस्वीकार किया है।
  • राजनयिक परिणाम: राजनयिक संबंधों में गिरावट आने के साथ दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित कर दिया है और वाणिज्य दूतावास सेवाएँ स्थगित कर दी हैं।
  • फाइव आईज़ एलायंस से समर्थन: कनाडा ने गंभीर आरोपों को लेकर भारत के साथ बढ़ते कूटनीतिक तनाव के बीच अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल करने के लिये फाइव आईज़ खुफिया गठबंधन की मदद ली है।

फाइव आईज़ एलायंस क्या है?

  • परिचय:
    • फाइव आईज़ एक खुफिया गठबंधन है जिसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका जैसे देश शामिल हैं।
    • ये देश बहुपक्षीय UK-USA समझौते के पक्षकार हैं, जो सिग्नल इंटेलिजेंस में संयुक्त सहयोग के लिये एक संधि है।
  • विशेषताएँ:
    • ये साझेदार देश सहयोग के एक भाग के रूप में विश्व के सबसे सुदृढ़ बहुपक्षीय समझौतों में से एक के अंतर्गत व्यापक स्तर की खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान करते हैं।
    • अपनी स्थापना के बाद से इस एजेंसी ने बाद में अपने मुख्य समूह को ‘नाइन आइज़’ और 14 आइज़ गठबंधनों तक विस्तारित किया तथा सुरक्षा साझेदारों के रूप में और अधिक देशों को इसमें शामिल किया।
      • ‘नाइन आइज़’ समूह में नीदरलैंड, डेनमार्क, फ्राँस और नॉर्वे शामिल हैं जबकि 14 आइज़ समूह में बेल्जियम, इटली, जर्मनी, स्पेन और स्वीडन शामिल हैं।

भारत-कनाडा संबंध के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?

  • राजनीतिक संबंध:
    • भारत और कनाडा ने वर्ष 1947 में राजनयिक संबंध स्थापित किये। दोनों राष्ट्र लोकतांत्रिक मूल्योंमानवाधिकारोंविधि के शासन और बहुलवाद को महत्त्व देते हैं।
    • दोनों देश राष्ट्रमंडलG20 और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जलवायु परिवर्तन, सुरक्षा और सतत् विकास जैसे वैश्विक मुद्दों पर सहयोग करते हैं।
  • आर्थिक सहयोग:
    • भारत और कनाडा के बीच वस्तुओं का कुल द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023 में 9.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था जिसमें कनाडा भारत में 18वाँ सबसे बड़ा विदेशी निवेशक रहा, जिसने अप्रैल 2000 से मार्च 2023 तक लगभग 3.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
    • व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के लिये चल रही वार्ता का उद्देश्य वस्तुओं, सेवाओं, निवेश और व्यापार सुविधा में व्यापार को शामिल करके आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना है।
  • प्रवासी संबंध:
    • कनाडा में भारतीय मूल के 1.6 मिलियन से अधिक लोग रहते हैं जिनमें लगभग 700,000 अनिवासी भारतीय (NRIs) शामिल हैं, जो इसे विश्व स्तर पर सबसे बड़े भारतीय प्रवासियों वाले देश में से एक बनाता है।
    • प्रवासी समुदाय सांस्कृतिक आदान-प्रदान, आर्थिक गतिविधियों और द्विपक्षीय संबंधों में काफी योगदान देते हैं जिससे दोनों देशों के बीच मज़बूत सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को बढ़ावा मिलता है।
  • शिक्षा और अंतरिक्ष नवाचार:
    • स्वास्थ्य देखभाल, कृषि, जैव प्रौद्योगिकी और अपशिष्ट प्रबंधन में संयुक्त अनुसंधान पहल को  IC-IMPACTS जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से आगे बढ़ाया जा रहा है, जिससे नवाचार को बढ़ावा मिल रहा है।
    • अंतरिक्ष सहयोग में ISRO और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी के बीच समझौते शामिल हैं, जिसमें ISRO द्वारा कनाडाई उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण भी शामिल है।
    • दोनों के बीच शैक्षिक आदान-प्रदान महत्त्वपूर्ण हैं। कनाडा की अंतर्राष्ट्रीय छात्र आबादी में भारतीय छात्रों की संख्या लगभग 40% है, जिससे सांस्कृतिक विविधता बढ़ रही है।
    • वर्ष 2010 में हस्ताक्षरित परमाणु सहयोग समझौता (जो वर्ष 2013 से प्रभावी हुआ) यूरेनियम आपूर्ति को सक्षम बनाता है तथा निगरानी के लिये एक संयुक्त समिति की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • सामरिक महत्व:
    • भारत, कनाडा की हिंद-प्रशांत रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो कनाडाई अर्थव्यवस्था के विविधीकरण में सहायक होने के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता को बढ़ावा देता है।
    • दोनों के बीच समुद्री सुरक्षाआतंकवाद-रोकथाम और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने पर सहयोग है।

भारत-कनाडा संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • राजनयिक प्रतिरक्षा का मुद्दा: 
    • कनाडा ने वियना कन्वेंशन का हवाला देते हुए भारत में बढ़ते तनाव के बीच अपने राजनयिक कर्मचारियों और नागरिकों की सुरक्षा की आवश्यकता पर बल दिया है।
    • इन चिंताओं के प्रति भारत की प्रतिक्रिया तथा कूटनीतिक मानदंडों का पालन, द्विपक्षीय संबंधों के भविष्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • खालिस्तान मुद्दा:
    • भारत खालिस्तानी अलगाववादी समूहों के प्रति कनाडा की सहिष्णुता को अपनी क्षेत्रीय अखंडता के लिये प्रत्यक्ष खतरा मानता है।
    • खालिस्तान के एक प्रमुख समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में कथित भारतीय संलिप्तता की कनाडा द्वारा की जा रही जाँच से इस तनाव को और बढ़ावा मिला है। यह मुद्दा दोनों देशों के बीच कूटनीतिक एवं राजनीतिक विश्वास को कमज़ोर कर रहा है।
  • आर्थिक एवं व्यापारिक बाधाएँ:
    • इससे बढ़ती राजनीतिक दूरी के बीच व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) को अंतिम रूप देने के प्रयास बाधित हुए हैं।
    • दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार शिथिल हो गया है तथा राजनयिक संकट के कारण भारत में कनाडाई निवेश के समक्ष अनिश्चितता बनी हुई है।
  •  वीज़ा और आव्रजन मुद्दे:
    • भारत में कनाडाई राजनयिक कर्मचारियों की संख्या में कमी के कारण, वीज़ा के लिये आवेदन करने वाले भारतीयों को काफ़ी विलंब का सामना करना पड़ रहा है। इसका प्रभाव नए आवेदकों (विशेष रूप से कनाडाई संस्थानों में प्रवेश लेने के इच्छुक छात्रों) पर पड़ रहा है।
  •  भू-राजनीतिक निहितार्थ:
    • यदि आरोप सही साबित हुए तो भारत-कनाडा के बीच कूटनीतिक गतिरोध से G20 में भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँच सकता है।
    • कनाडा की G7 सदस्यता और फाइव आईज़ गठबंधन के साथ संबंध अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और जापान सहित भारत के रणनीतिक साझेदारों हेतु स्थिति को जटिल बनाते हैं।
    • कनाडा की हिंद-प्रशांत रणनीति (जो कभी भारत को शामिल करने पर केंद्रित थी) इन राजनीतिक तनावों के कारण शिथिल हो गई है, जिससे इस क्षेत्र में सुरक्षा एवं आर्थिक मुद्दों पर सहयोग सीमित हो रहा है।
  • खालिस्तान मुद्दे पर चर्चा:
    • भारतीय प्रवासियों और खालिस्तान अलगाववाद से जुड़ी चिंताओं को हल करने के लिये दोनों सरकारों के बीच सक्रिय बातचीत आवश्यक है। इन संवेदनशील मुद्दों को हल करने में एक-दूसरे की संप्रभुता एवं विधिक ढाँचों का सम्मान करना भी आवश्यक है।
  • आर्थिक संबंधों को मज़बूत करना:
    • प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा और बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) को महत्त्व देना चाहिये।
    • पारस्परिक रूप से लाभकारी अवसर प्राप्त करने के लिये व्यापार और निवेश ढाँचे को मज़बूत बनाना चाहिये।
  • भू-राजनीतिक हितों में संतुलन:
    • दोनों देशों को संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और रूस जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक संतुलित करने की आवश्यकता है।
    • इन गतिशीलताओं को नियंत्रित करने तथा संघर्षों के बिना रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने के लिये सतर्क दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • बहुपक्षीय मंचों का लाभ उठाना:

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