महाकुंभ में स्नान करने वालों की गिनती कैसे होती है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

प्रयागराज में महाकुंभ मेले के पहले स्नान पर्व मकर संक्रांति पर 3.5 करोड़ से भी ज्यादा लोगों के संगम पर स्नान करने का दावा है. मुख्य पर्व 29 जनवरी को है, उस दिन इससे कई गुना ज्यादा श्रद्धालुओं के आने की संभावना है.14 जनवरी को प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ का पहला शाही स्नान (अमृत स्नान) था और प्रशासन का दावा है कि इस दिन 3.5 करोड़ से ज्यादा लोगों ने पवित्र संगम में डुबकी लगाई.

45 करोड़ श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान

मकर संक्रांति से एक दिन पहले पौष पूर्णिमा पर भी करीब डेढ़ करोड़ लोगों ने स्नान किया था. यानी सिर्फ दो दिनों में पांच करोड़ से ज्यादा लोगों के स्नान का दावा प्रशासन की ओर से किया जा रहा है. प्रयागराज में कुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू हुआ है और 26 फरवरी तक चलेगा और इस दौरान तीन प्रमुख शाही स्नान होंगे. अगला शाही स्नान (अमृत स्नान) 29 जनवरी को अमावस्या को होगा और फिर 3 फरवरी को बसंत पंचमी के मौके पर होगा. इसके अलावा माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के दिन भी कुंभ स्नान किया जाएगा.

सबसे ज्यादा भीड़ अमावस्या पर होती है और अनुमान है कि उस दिन स्नान करने वालों का आंकड़ा दस करोड़ के आस-पास होगा. माना जा रहा है कि इस बार के महाकुंभ में करीब 45 करोड़ श्रद्धालु स्नान करेंगे.

हालांकि श्रद्धालुओं की इतनी बड़ी संख्या को लेकर कई तरह के सवाल भी उठते हैं लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि इस धार्मिकआयोजन में स्नान करने वालों यानी भीड़ के आंकड़े जुटाए कैसे जाते हैं? प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि इसके लिए अब अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन भीड़ के आंकड़े पहले भी आया करते थे और स्नान पर्वों पर भीड़ के तमाम रिकॉर्ड बनते और टूटते थे. आंकड़ों पर सवाल भी हमेशा उठते रहे हैं.

महाकुंभ में मिल सकता है वर्क लाइफ बैलेंस का दर्शन

गिनती के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग

प्रयागराज के मंडलायुक्त विजय विश्वास पंत के मुताबिक, इस बार कुंभ मेले में आए श्रद्धालुओं की गिनती के लिए एआई तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने बताया, “महाकुंभ में श्रद्धालुओं की सटीक गिनती के लिए इस बार एआई से लैस कैमरे लगाए गए हैं. यह पहली बार है जब एआई के जरिए श्रद्धालुओं की सटीक संख्या जानने की कोशिश की जा रही है.

इसके अलावा श्रद्धालुओं को ट्रैक करने के लिए कुछ और भी इंतजाम किए गए हैं. मेला क्षेत्र में दो सौ जगहें ऐसी हैं जहां पर बड़ी संख्या में अस्थाई सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. इसके अलावा प्रयागराज शहर के अंदर भी 268 जगहों पर 1107 अस्थाई सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. इसके अलावा सौ से ज्यादा पार्किंग स्थलों पर भी सात सौ से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं जिनसे बाहर से आने वाले यात्रियों का अनुमान लगाया जाता है.”

श्रद्धालुओं की गिनती के लिए एआई लैस कैमरे हर मिनट में डेटा अपडेट करते हैं. ये सिस्टम सुबह तीन बजे से शाम 7 बजे तक पूरी तरह से सक्रिय रहेंगे. चूंकि मुख्य पर्वों पर स्नान काफी सुबह ही शुरू हो जाता है इसलिए इन्हें उससे पहले ही एक्टिव कर दिया जाता है.

मंडलायुक्त के मुताबिक, एआई का उपयोग करते हुए क्राउड डेंसिटी अलगोरिदम से लोगों की गिनती का भी प्रयास किया जा रहा है. एआई आधारित क्राउड मैनेजमेंट रियल टाइम अलर्ट जेनरेट करेगा, जिसके जरिए संबंधित अधिकारियों को श्रद्धालुओं की गिनती करना और उनकी ट्रैकिंग करना आसान होगा.

एक आदमी की एक बार से ज्यादा गिनती

इसके अलावा मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की गिनती नावों और ट्रेनों, बसों और निजी वाहनों से आने वाले लोगों की संख्या से भी की जाती है. इसके अलावा मेले में साधु-संतों और उनके कैंप में आने वाले लोगों की संख्या को भी भी श्रद्धालुओं की कुल संख्या में जोड़ा जाता है और मेले से जुड़ी सड़कों पर गुजरने वाली भीड़ को भी ध्यान में रखा जाता है.

हालांकि वास्तविक संख्या बता पाना अभी भी बहुत मुश्किल है क्योंकि तमाम यात्री अलग-अलग जगहों पर जाते हैं और यहां तक कि अलग-अलग घाटों पर भी जाते हैं. ऐसे में उनकी गिनती एक बार से ज्यादा ना हो, ऐसा कहना बहुत मुश्किल है.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास विभाग के अध्यक्ष रह चुके प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी ने कुंभ की ऐतिहासिकता पर चर्चित पुस्तक ‘कुंभ: ऐतिहासिक वांगमय’ लिखी है. प्रोफेसर चतुर्वेदी साल 2013 के कुंभ मेले में कुंभ मेला कमेटी के सदस्य भी रह चुके हैं.

डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, “2013 से पहले श्रद्धालुओं की गिनती के लिए मेला के डीएम और एसएसपी की रिपोर्ट को ही सच माना जाता था और उनकी रिपोर्ट इसी आधार पर तैयार होती थी कि कितनी बसें आईं, कितनी ट्रेनें आईं और उनसे कितने लोग उतरे. निजी वाहनों पर भी नजर रखी जाती थी. इसके अलावा अखाड़ों से भी उनके यहां आने वाले श्रद्धालुओं की जानकारी ली जाती थी.”

चतुर्वेदी का यह भी कहना है, “पहले बिल्कुल संगम के किनारे तक जाने देते थे, तब यह जानना बहुत आसान था कि कितने लोग निकले होंगे. लेकिन अब तो ज्यादातर लोगों को शहर के भीतर ही रोक दिया जाता है. 2013 में आईआईटी की मदद से जब डिजिटाइजेशन शुरू हुआ तब से कुछ वास्तविक आंकड़े आने लगे. हालांकि डिजिटाइजेशन के दौर में फजिंग भी बहुत होती है.”

भीड़ की गिनती का सांख्यिकीय तरीका

साल 2013 के कुंभ में पहली बार सांख्यिकीय विधि से भीड़ का अनुमान लगाया गया था. इस विधि के अनुसार, एक व्यक्ति को स्नान करने के लिए करीब 0.25 मीटर की जगह चाहिए और उसे नहाने में करीब 15 मिनट का समय लगेगा. इस गणना के मुताबिक एक घंटे में एक घाट पर अधिकतम साढ़े बारह हजार लोग स्नान कर सकते हैं. इस बार कुल 44 घाट बनाए गए हैं जिनमें 35 घाट पुराने हैं और नौ नए हैं. यदि सभी 44 घाटों पर लगातार

18 घंटे स्नान कर रहे लोगों की संख्या जोड़ी जाए तो यह संख्या प्रशासन के दावे से काफी कम बैठती है, मुश्किल से एक तिहाई.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मीडिया स्टडीज विभाग में सीनियर फैकल्टी एसके यादव वरिष्ठ फोटोग्राफर हैं और साल 1989 से लगातार हर कुंभ और अर्ध कुंभ को कवर कर रहे हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं कि भीड़ को नापने का कोई मैकेनिज्म नहीं है, आज भी सिर्फ अनुमान ही लगाया जा रहा है भले ही हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हों.

एसके यादव बताते हैं, “मकर संक्रांति के दिन मैं तो उसी जगह यानी संगम नोज पर ही था. सड़कें इस बार काफी चौड़ी की गई हैं, फिर भी मुझे ऐसा लगता है कि मकर संक्रांति के मौके पर साल 2013 और 2019 के कुंभ में जितनी भीड़ थी, इस बार उतनी नहीं थी.”

प्रशासन दे रहा है संख्या की जानकारी

एसके यादव बताते हैं कि यह प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से ही तय कर दिया जाता है कि संख्या कितनी बता दी जाए और यही किया जा रहा है. वो कहते हैं, “जितनी संख्या प्रशासन बताता है, मीडिया वही छाप देता है. लेकिन पहले ऐसा नहीं था. पहले अखबार और मीडिया हाउस अपनी तरफ से, अपने रिपोर्टरों और फोटोग्राफरों से जानकारी लेते थे और फिर अपने आधार पर भी आंकड़ों का अनुमान लगाते थे.”

यादव का कहना है कि पूरे प्रयागराज जिले की आबादी चालीस-पचास लाख है. और ये सारे लोग यदि संगम की तरफ चल पड़ें तो वहां जगह ही नहीं बचेगी. उन्होंने यह भी कहा, “मान लीजिए कि हर घंटे में एक लाख लोग ट्रेनों से बाहर भेजे जा रहे हैं तो 24 घंटे में 24 लाख लोग ही तो जाएंगे. अन्य साधनों से आने वालों को भी इतना मान लीजिए और प्रयागराज के स्थानीय लोगों को भी जोड़ लीजिए. यानी बहुत ज्यादा हुआ तो एक करोड़. इससे ज्यादा संख्या तो कहीं से भी तर्कसंगत नहीं लगती. कुल मिलाकर यह सब भारी-भरकम बजट को जस्टीफाइ करने की कोशिश है.”

जानकारों के मुताबिक, कुंभ में आने वाले यात्रियों की गणना का काम 19वीं सदी से ही शुरू हुआ था और अलग-अलग समय पर श्रद्धालुओं की गिनती के विभिन्न तरीके अपनाए गए. साल 1882 के कुंभ में अंग्रेजों ने संगम आने वाले सभी प्रमुख रास्तों पर बैरियर लगाकर गिनती की थी. इसके अलावा रेलवे टिकट की बिक्री के आंकड़ों को भी आधार बनाकर कुल स्नान करने वालों की संख्या का आकलन किया गया था और उस वक्त करीब दस लाख लोग मेले में पहुंचे थे.