विवाह संस्कार के समय कितने फेरे लेने चाहिए, चार या सात फेरे?

विवाह संस्कार के समय कितने फेरे लेने चाहिए, चार या सात फेरे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया‚ सेंट्रल डेस्कः

अग्नि सूर्य की प्रतिनिधि है। सूर्य जगत की आत्मा तथा विष्णु का रूप हैं। अत: अग्नि के समक्ष फेरे लेने का अर्थ है- परमात्मा के समक्ष फेरे लेना। अग्नि ही वह माध्यम है, जिसके द्वारा यज्ञीय आहुतियां प्रदान कर देवताओं को पुष्ट किया जाता है। इस प्रकार अग्नि के रूप में समस्त देवताओं को साक्षी मान कर पवित्र बंधन में बंधने का विधान धर्मशास्त्रों में किया गया है।

वैदिक नियमानुसार विवाह के समय चार फेरों का विधान है। इनमें से पहले तीन फेरों में वधू आगे चलती है, जबकि चौथे फेरे में वर आगे होता है। ये फेरे चार पुरुषार्थो- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक हैं। इस प्रकार तीन फेरों में वधू (पत्नी) की प्रधानता है, जबकि चौथे फेरे द्वारा मोक्ष मार्ग पर चलते वधू (पत्नी) को वर (पति) का अनुसरण करना पड़ता है।
कहीं-कहीं लोकाचार एवं कुलाचार के अनुसार सात फेरे भी होते हैं, परंतु शास्त्राचार के मुताबिक चार फेरे ही होते हैं।

सात तो वचन होते हैं, जिन्हें सप्तपदी कहते हैं। अग्नि के सम्मुख पति सात वचन देता है और जीवन भर पालन करने की प्रतिज्ञा लेता है। विवाह संस्कार में शास्त्राचार, कुलाचार और लोकाचार, तीनों प्रकार के आचार होते हैं। शास्त्राचार के मुताबिक चार ही फेरे होते हैं।

यह भी पढ़े अल्पसंख्यको के सर्वांगीण विकास के लिए नीतीश कुमार समर्पित : मोहम्मद जमाल

स्वतंत्रता आंदोलन के सतत प्रहरी व सहकारिता आंदोलन के प्रणेता थे राम देव बाबू—-मंगल  पांडेय

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!