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बंदरों से निकला वायरस कैसे दुनिया में फैला रहा दहशत? - श्रीनारद मीडिया

बंदरों से निकला वायरस कैसे दुनिया में फैला रहा दहशत?

बंदरों से निकला वायरस कैसे दुनिया में फैला रहा दहशत?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महामारी दुनिया का पीछा नहीं छोड़ने का नाम नहीं छोड़ रही है। ढाई बरस का दौर लॉकडाउन, बैन आदि इत्यादि झेलने के बाद वैक्सीन की छावं तले कोरोना का कहर कम हुआ है। टीका आने के बाद से कोरोना की रफ्तार पर विराम लगा है। किम जोंग वाले नॉर्थ कोरिया और जिनपिंग के चीन जैसे अपवादों से इतर बाकी दुनिया कोविड से पहले के युग में लौट रही है।

सामान्य हो रहे जन-जीवन के बीच एक नई बीमारी ने दस्तक दी है, जिसका नाम मंकीपॉक्स है। हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि हमारे पूर्वज बंदर थे और समय के साथ धीरे-धीरे हमने खुद को विकसित किया। डार्विन की ‘थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन से इतर बंदर से निकला वायरस इंसानों को इन दिनों खूब परेशान कर रहा है। आलम ये है कि महज 15 दिनों के भीतर इसने 15 देशों में अपने पाव पसार लिए हैं।  विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चेतावनी दी है कि किसी भी देश में इस बीमारी का एक मामला भी आउटब्रेक माना जाएगा। भारत भी मंकीपॉक्स को तेजी से फैलता देख अलर्ट हो गया है।

पहली बार कब सामने आया मामला?

आपने चिकन पॉक्स सुना होग, स्मॉल पॉक्स सुना होगा पर क्या आपने मंकी पॉक्स के बारे में सुना है। ये कोई नई बीमारी नहीं है बल्कि एक वायरल इंफेक्शन है। जिसके केस आमतौर पर अफ्रीका के मध्य और पश्चिमी देशों में पाए जाते हैं। ये साल 1958 की बात है डेनमार्क की राजधानी कोपेनहैगन के रिसर्च सेंटर में बड़ी संख्या में बंदरों को रखा गया था। उनके बीच स्मॉल पॉक्स जैसे दिखने वाले दो मामले सामने आए। इसके बाद ऐसे ही केस चिड़ियाघर में रखे गए जानवरों में भी देखे गए। क्योंकि ये वायरल पहली बार बंदरों में देखा गया था इसलिए इसे मंकीपॉक्स का नाम दिया गया।

इंसानों में मंकीपॉक्स का पहला मामला 1970 में अफ्रीकी देश डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में सामने आया। जहां 1968 में स्मॉल पॉक्स को समाप्त कर दिया गया था। तब से, अधिकांश मामले ग्रामीण, वर्षावन क्षेत्रों से सामने आए हैं। कांगो बेसिन, विशेष रूप से कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में और मानव मामले पूरे मध्य और पश्चिम अफ्रीका से तेजी से सामने आए हैं। ये चौंकाने वाला था क्योंकि सभी संक्रमण इंसान से इंसान में नहीं फैले थे। सभी संक्रमित किसी न किसी जानवर के संपर्क में आए थे।

जांच के बाद उनमें मंकी पॉक्स का पता चला। 1971 में कॉन्गो को स्माल पॉक्स से मुक्त कर दिया गया। लेकिन मंकी पॉक्स का प्रकोप बरकरार रहा। इसके बाद लाइबेरिया, आइवरी कॉस्ट, शियरा लियोन, नाइजेरिया, बेनिन, कैब्रून, सेंट्रल अफ्रीकन. साउथ सूडान जैसे देशों में मिले। मध्य और पश्चिमी अफ्रीका में मंकी पॉक्स ज्यादा खतरनाक नहीं था और वहां मृत्यु दर 1 प्रतिशत से कम थी।

अफ्रीका से बाहर मंकी पॉक्स

हालांकि अफ्रीका के बाहर मंकीपॉक्स के मामले पहली बार मई 2003 में सामने आए। साल 2003 में अमेरिका में इसके 47 ममाले सामने आए थे।  तब इसकी वजह घाना से आयात किए गए पालतू कुत्तों को वजह बताया गया था। भारत व अन्‍य एशियाई देशों में इस वायरस के मामलों की पुष्टि नहीं है। उस वक्त लोगों को  बड़ी तादाद में स्माल पॉक्स की वैक्सीन लगाई गई और बड़े पैमाने पर टेस्टिंग और ट्रैकिंग हुई।

मंकी पॉक्स के प्रकोप को वक्त रहते थाम लिया गया। 2003 के बाद जुलाई और नवंबर 2021 में मंकी पॉक्स का मामला मिला। हालांकि ये स्थानीय मामला नहीं बल्कि दोनों ही बार संक्रमित व्यक्ति नाइजिरिया से लौटा था। अभी तक दुनियाभर में मंकी पॉक्स वाय़रस का विस्फोट 8 बार हुआ है। लेकिन हर बार इसे आसानी से काबू पा लिया गया है।

फिर से क्यों चर्चा में?

अब सवाल ये आता है कि ये इंफेक्शन दोबारा से खबरों में क्यों छाया हुआ है। दरअसल, ब्रिटेन, अमेरिका, इटली, स्वीडन, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, बेल्जियम, नीदरलैंड्स, इजराइल, ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड में मंकीपॉक्स के केस सामने आए हैं। केवल 2 हफ्तों में ही मामलों की संख्या 100 के पार जा चुकी है। हालांकि, इस बीमारी से अब तक एक भी मौत नहीं हुई है।

बीमारी के लक्षण 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मंकीपॉक्स आमतौर पर बुखार, दाने और गांठ के जरिये उभरता है और इससे कई प्रकार की चिकित्सा जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। रोग के लक्षण आमतौर पर दो से चार सप्ताह तक दिखते हैं, जो अपने आप दूर होते चले जाते हैं। मामले गंभीर भी हो सकते हैं। हाल के समय में, मृत्यु दर का अनुपात लगभग 3-6 प्रतिशत रहा है, लेकिन यह 10 प्रतिशत तक हो सकता है।

मंकीपॉक्स कैसे फैलता है? 

मंकीपॉक्स किसी संक्रमित व्यक्ति या जानवर के निकट संपर्क के माध्यम से या वायरस से दूषित सामग्री के माध्यम से मनुष्यों में फैलता है। ऐसा माना जाता है कि यह चूहों, चूहियों और गिलहरियों जैसे जानवरों से फैलता है। यह रोग घावों, शरीर के तरल पदार्थ, श्वसन बूंदों और दूषित सामग्री जैसे बिस्तर के माध्यम से फैलता है। यह वायरस पॉक्स की तुलना में कम संक्रामक है और कम गंभीर बीमारी का कारण बनता है। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि इनमें से कुछ संक्रमण यौन संपर्क के माध्यम से संचरित हो सकते हैं। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि वह समलैंगिक या उभयलिंगी लोगों से संबंधित कई मामलों की भी जांच कर रहा है।

क्या लक्षण हो सकते हैं?

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, मंकीवायरस संक्रमण होने के बाद लक्षण दिखने में 6 से 13 दिन लग सकते हैं। संक्रमितों को बुखार, तेज सिरदर्द, पीठ और मांसपेशियों में दर्द के साथ गंभीर कमजोरी महसूस हो सकती है। लिम्फ नोड्स की सूजन इसका सबसे आम लक्षण माना जाता है। बीमार शख्‍स के चेहरे और हाथ-पांव पर बड़े-बड़े दाने हो सकते हैं। अगर संक्रमण गंभीर हो तो ये दाने आंखों के कॉर्निया को भी प्रभावित कर सकते हैं।

भारत की क्या तैयारी? 

वैसे तो भारत में मंकीपॉक्स का कोई मामला सामने नहीं आया है। लेकिन निगरानी बढ़ा दी गई है। कोरोना संकट के बाद भारत सरकार मंकीपॉक्स को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती। इसीलिए केंद्र सरकार ने अभी से सभी राज्यों को विदेश से आने वाले यात्रियों की विशेष निगरानी के निर्देश दे दिए हैं। जिसके बाद हवाई अड्डों पर निगरानी शुरू कर दी गई है।

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