कैसे तय किया गया था कौन सा होगा भारत का राष्ट्रगान व राष्ट्रगीत?

कैसे तय किया गया था कौन सा होगा भारत का राष्ट्रगान व राष्ट्रगीत?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बंगाल की जमीन पर जन्मे ‘वंदेमातरम’ की आजादी के बाद क्या भूमिका होगी, ये दिल्ली में तय हुआ। 25 अगस्त 1948 को संविधान सभा में, पंडित नेहरू ने एक भाषण दिया, मुद्दा था राष्ट्रगान। भाषण का सार ये था कि ‘स्वतंत्रता के बाद हमें लगा कि डिफेंस फोर्सेज के बैंड्स को, हमारे दूतावासों को या विदेशी अतिथियों के सामने अब ‘गाड सेव द किंग’ क्यों गाना चाहिए? क्योंकि संविधान बना नहीं था। कई तर्क उन्होंने दिए कि कैसे राष्ट्रगान के लिए ‘जन गण मन’ ज्यादा बेहतर है। इसके लिए उन्होंने एक घटना बताई कि कैसे ‘पिछले साल यूएनओ के न्यूयार्क के एक कार्यक्रम में आर्केस्ट्रा के लिए भारतीय प्रतिनिधियों से ‘नेशनल एंथम’ मांगा गया तो उन्होंने ‘जन गण मन’ का एक रिकार्ड दे दिया, उसको वहां की आर्केस्ट्रा ने बजाया।

काफी मनमोहक था, उसको रिकार्ड करके हमारे प्रतिनिधि मंडल को दे दिया गया। उस रिकाडिंग को हमने डिफेंस फोर्सेज को दे दिया, आल इंडिया रेडियो ने भी कई धुनें तैयार कीं, हमारे पास और किसी गीत की म्यूजिक धुन उस वक्त नहीं थी, जो हम देश से बाहर भेज सकते थे’।

नेहरू ने आगे बताया कि कैसे उन्होंने सभी प्रदेशों के गर्वनर्स को वह रिकाडिंग भेजकर पूछा कि राष्ट्रगान के लिए ‘जन गण मन’ पसंद है या कोई और गीत वो सुझा सकते हैं। नेहरू के मुताबिक केवल एक राज्य की तरफ से ‘वंदेमातरम’ की सिफारिश आई, वो था बंगाल, जहां के कई आंदोलनों की जान था वंदेमातरम जबकि जन गण मन की भेजी धुन को संयुक्त प्रांत के गर्वनर को छोड़कर सभी ने स्वीकार कर लिया। फिर केंद्रीय कैबिनेट ने भी फैसला होने तक जन गण मन गान की ही मंजूरी दे दी।

नेहरू ने ये भी कहा कि वंदेमातरम राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ा है, उसमें पैशन है, लेकिन चरम पर नहीं। नेहरू ने ये भी कहा कि ‘शब्दों से ज्यादा धुन अहम है, जन गण मन की धुन विदेश में भी पसंद की जा चुकी है, धुन भी ऐसी हो जिसमें भारतीय संगीत प्रतिभा के साथ पश्चिम का भी कुछ असर हो ताकि आर्केस्ट्रा, बैंड्स आदि पर भी बज सके। लेकिन वंदेमातरम के शब्दों में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के चलते विदेश की आर्केस्ट्रा के लिए उसे बजाना आसान नहीं है।

जन गण मन में कुछ ‘लाइफ व मूवमेंट’ है, लेकिन वंदेमातरम में वो ‘मूवमेंट’ नहीं है। राष्ट्रगान की वास्तविक महत्ता देश से ज्यादा विदेश में है और अनुभव बताता है कि जन गण मन को विदेश में काफी प्रशंसा मिली है।’ जन गण मन के पक्ष में बोलने के बाद नेहरू ने कहा कि आखिरी फैसला संविधान सभा को ही लेना है, लोगों को इशारा काफी था।

यूं तो संविधान सभा 26 नवंबर 1949 से पहले ही तमाम सारी बहस और संशोधन कर चुकी थी, 26 को तो बस स्वीकार किया जाना था। फिर भी उडीसा (अब ओडिशा) से संविधान सभा के सदस्य बिश्वनाथ उठकर खड़े हो गए, पूछने लगे ‘सर, आप ये बताएंगे कि क्या आप वंदेमातरम को राष्ट्रगीत बनाने का एनाउंसमेंट करने वाले हैं, फिर राष्ट्रगान क्या होगा? संविधान सभा के अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद ने फौरन उन्हें टोका, ‘नहीं मैं आज ऐसा कोई घोषणा नहीं करने जा रहा हूं। इस पर हम जनवरी में चर्चा करेंगे’।

नवंबर से जनवरी तक कांग्रेस केंद्रीय नेताओं ने राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत पर सहमति बना ली थी, अंदरखाने ये तय हो गया था कि अब कोई विवाद या बहस संविधान सभा में नहीं होगी, ये भी तय हो गया था कि डा. राजेन्द्र प्रसाद को ही राष्ट्रपति चुना जाएगा।

24 जनवरी को डा. राजेन्द्र प्रसाद ने जन गण मन और वंदेमातरम पर स्थिति साफ कर दी, उन्होंने कहा, ‘एक वक्त सोचा गया था कि राष्ट्रगान मामले पर सभा में बहस हो, कोई प्रस्ताव पारित हो। लेकिन बाद में ये महसूस किया गया कि बेहतर है कि मैं ये बयान जारी कर दूं। इसके मुताबिक, जन गण मन की संगीत और शब्दों के साथ जो कंपोजीशन है, वह राष्ट्रगान के तौर पर जानी जाएगी, किसी उचित अवसर पर शब्दों में सरकार द्वारा कुछ संशोधन किए जाएंगे और वंदेमातरम, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, उसको भी जन गण मन के समकक्ष रखा जाएगा और उतना ही सम्मान मिलेगा।

Leave a Reply

error: Content is protected !!