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तीसरी लहर में सुरक्षित कैसे रह पाएंगे 30 करोड़ बच्चे? - श्रीनारद मीडिया

तीसरी लहर में सुरक्षित कैसे रह पाएंगे 30 करोड़ बच्चे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देश में कोरोना की तीसरी लहर के दौरान देश के करीब 30 करोड़ बच्चों को संक्रमण से सुरक्षित रख पाना मुश्किल सा दिखाई दे रहा है. इसका कारण यह है कि स्वदेशी टीका निर्माता कंपनी भारत बायोटेक की कोवैक्सीन का बच्चों पर आगामी 15 जुलाई तक क्लिनिकल ट्रायल नहीं किया जा सकता. इसे लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है और अदालत ने 15 जुलाई तक केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है. हालांकि, अदालत ने वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल रोकने से इनकार कर दिया है.

देश के वैज्ञानिकों ने पहले से सरकार को कोरोना की तीसरी लहर को लेकर आगाह कर दिया है. केंद्र सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन सहित तमाम जानकार कह चुके हैं कि भारत में कोरोना की तीसरी लहर का आना तय है. इनमें देश के वरिष्ठ वायरोलॉजिस्‍ट डॉ वी रवि भी शामिल हैं. रवि यह भी कह चुके हैं कि तीसरी लहर में बच्‍चों के चपेट में आने की ज्‍यादा आशंका है. इसलिए पहले से तैयारी कर लेना जरूरी है.

कमजोर इम्यूनिटी वाले बच्चे हो सकते हैं संक्रमण के शिकार

प्रमुख वायरोलॉजिस्ट डॉ रवि आगाह करते हुए कहा है कि पहले से कई एशियाई देश कोरोना की तीसरी लहर से जूझ रहे हैं. कई पश्चिमी देशों में चौथी लहर भी आ चुकी है. ऐसे में भारत इससे अछूता रहेगा, यह मान लेना सही नहीं है. तीसरी लहर में बच्‍चों के चपेट में आने की आशंका के पीछे डॉ रवि ने कहा है कि कुपोषण के शिकार या कमजोर इम्यूनिटी वाले बच्चों को संक्रमित होने का खतरा अधिक है.

नवंबर-दिसंबर तक आ सकती है तीसरी लहर

उन्होंने कहा कि संक्रमण से सुरक्षा के लिए बड़ों को टीका लगाया जा रहा है, लेकिन वैक्सीन नहीं है. हालांकि, बच्चों की वैक्सीन का ट्रायल शुरू करने की अनुमति 12 मई को ही दे दी गई है, लेकिन इस पूरा करने में कम से कम 3 से 4 महीने लगेंगे. उधर, देश के प्रमुख वायरोलॉजिस्ट्स का अनुमान है कि एक लहर को शांत पड़ने के बाद दूसरी लहर आने में 3 से 5 महीने का वक्त लगता है. ऐसे में, नवंबर-दिसंबर के आसपास तीसरी लहर आ सकती है.

देश में 2-18 आयुवर्ग के 30 करोड़ हैं बच्चे

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, देश में अभी 2-18 साल आयुवर्ग के करीब 30 करोड़ बच्चे हैं. इनमें से अगर एक फीसदी भी संक्रमण का शिकार हुआ, तो करीब 3 लाख बच्चे संक्रमित हो जाएंगे. इसलिए बच्चों को वायरस के संक्रमण से बचाए रखने के लिए सरकार ने अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है, जिसे पूरा होने में 5 से 6 महीने का वक्त लगेगा.

केंद्र को 15 जुलाई तक जवाब दाखिल करने का निर्देश

उधर, हैदराबाद की टीका निर्माता कंपनी भारत बायोटेक के कोवैक्सीन का बच्चों पर क्लिनिकल ट्रायल शुरू करने के लिए भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) की ओर से अनुमति दे दी गई है, लेकिन कंपनी के ट्रायल को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी गई. इस याचिका पर अदालत ने केंद्र सरकार से 15 जुलाई तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.

ट्रायल पर रोक से अदालत का इनकार

हालांकि, अदालत ने कोरोना रोधी टीके कोवैक्सीन के दो से 18 वर्ष के बच्चों पर क्लिनिकल ट्रायल के लिए 12 मई को दी गई अनुमति पर कोई भी अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया है. क्लिनिकल ट्रायल 525 स्वस्थ वॉलिंटियर्स पर किया जाएगा. इन्हें भी टीके 28 दिन के अंतर में दो खुराक में लगाए जाएंगे.

याचिका में क्या जाहिर की गई आशंका?

दिल्ली हाईकोर्ट में क्लिनिकल ट्रायल पर रोक लगाए जाने को लेकर संजीव कुमार की ओर से याचिका दायर की गई है, जिसमें यह आशंका जाहिर की गई है कि ट्रायल में हिस्सा लेने वाले बच्चों को टीका लगने से उनके स्वास्थ्य या मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. उन्होंने यह भी दावा किया है कि ट्रायल में हिस्सा लेने वाले बच्चों को वॉलिंटियर नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे ट्रायल से उन पर पड़ने वाले परिणाम को समझने के सक्षम नहीं है. याचिका में कहा गया कि स्वस्थ बच्चों पर यह परीक्षण करना हत्या के बराबर है. याचिका में इस तरह के ट्रायल में शामिल लोगों या इसे संचालित करने के लिए अधिकृत लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग की गई है.

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