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इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का भारत पर प्रभाव - श्रीनारद मीडिया

इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का भारत पर प्रभाव

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हाल ही में गाज़ा पट्टी पर शासन करने वाले उग्रवादी समूह हमास ने जल, थल और वायु मार्ग से इज़रायल पर विनाशकारी हमला किया, जिसमें कई लोगों की जान गई है। इससे इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के बीच सदियों से चला आ रहा विवाद पुनर्जीवित हो गया है, जिसमें वैश्विक एवं क्षेत्रीय शक्तियों के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

  • हालिया कुछ समय पहले इज़राइल ने यूएई, सऊदी अरब आदि पड़ोसी देशों के साथ कई शांति समझौते किये हैं, इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष से इन समझौतों पर प्रभाव पड़ना निश्चित है।

इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष:

  • बॅल्फोर घोषणा:
    • इज़रायल-फिलिस्तीन के बीच संघर्ष की नींव वर्ष 1917 में रखी गई थी जब तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बॅल्फोर ने बॅल्फोर घोषणा के तहत फिलिस्तीन में यहूदियों के लिये “नेशनल होम” हेतु ब्रिटेन का आधिकारिक समर्थन व्यक्त किया था।
  • फिलिस्तीन का निर्माण:
    • अरब और यहूदी हिंसा को रोकने में असमर्थ ब्रिटेन ने वर्ष 1948 में फिलिस्तीन से अपनी सेनाएँ वापस बुला लीं और प्रतिस्पर्द्धी दावों का निपटान करने की ज़िम्मेदारी नवनिर्मित संयुक्त राष्ट्र पर छोड़ दी।
      • संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन में स्वतंत्र यहूदी और अरब राज्य के निर्माण के लिये एक विभाजन योजना प्रस्तुत की जिसे अधिकांश अरब देशों ने अस्वीकार कर दिया।
  • अरब इज़रायल युद्ध (1948):
    • वर्ष 1948 में इज़रायल की स्वतंत्रता की यहूदी घोषणा के बाद से पड़ोसी अरब राज्यों ने इज़रायल पर आक्रमण शुरू कर दिया। इन युद्धों के अंत में इज़रायल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना की अपेक्षा लगभग 50% अधिक क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया।
  • संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना:
    • इस योजना के अनुसार, जॉर्डन ने वेस्ट बैंक और यरूशलम के पवित्र स्थलों तथा मिस्र ने गाज़ा पट्टी पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया किंतु यह फिलिस्तीनी संकट को हल करने में विफल रहा जिसके कारण वर्ष 1964 में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन का गठन हुआ।
  • फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO):
    • फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन की स्थापना फिलिस्तीन को इज़रायल और यहूदी प्रभुत्व से मुक्त कराने तथा अरब राज्यों पर मुस्लिम राज्यों का प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य से की गई थी।
      • संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1975 में PLO को पर्यवेक्षक का दर्जा प्रदान किया तथा फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार को मान्यता दी।
  • छह दिवसीय युद्ध: वर्ष 1967 के युद्ध में इज़रायली सेना ने सीरिया से गोलान हाइट्स, जॉर्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम तथा मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप व गाज़ा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया।
  • कैंप डेविड एकॉर्ड्स (1978):
    • अमेरिका की मध्यस्थता में “मध्य-पूर्व क्षेत्र में शांति के लिये रूपरेखा” ने इज़रायल और उसके पड़ोसी राज्यों के बीच शांति वार्ता तथा “फिलिस्तीनी समस्या” के समाधान के लिये मंच प्रदान किया किंतु इसकी उपयोगिता न के बराबर रही।
  • हमास का उदय:
    • वर्ष 1987: हमास मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड की एक हिंसक शाखा थी, जो हिंसक जिहाद के माध्यम से अपने एजेंडे को पूरा करना चाहती थी।
      • हमास: अमेरिका इसे एक आतंकवादी संगठन मानता है। वर्ष 2006 में हमास ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण के विधायी चुनाव में जीत दर्ज की और वर्ष 2007 में फतह को गाज़ा से अलग कर दिया, साथ ही फिलिस्तीनी आंदोलन को भौगोलिक रूप से भी विभाजित कर दिया।
    • वर्ष 1987: वेस्ट बैंक और गाज़ा के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में तनाव चरम पर पहुँच गया जिसके परिणामस्वरूप पहला इंतिफादा (फिलिस्तीनी विद्रोह) हुआ। यह फिलिस्तीनी उग्रवादियों तथा इज़रायली सेना के बीच एक छोटे युद्ध में परिवर्तित हो गया।
  • ओस्लो समझौता:
    • वर्ष 1993: ओस्लो समझौते के तहत इज़रायल और PLO आधिकारिक तौर पर एक-दूसरे को मान्यता देने एवं हिंसात्मक गतिविधियों पर रोक लगाने पर सहमत हुए। ओस्लो समझौते द्वारा फिलिस्तीनी प्राधिकरण की भी स्थापना की गई, जिसे गाज़ा पट्टी तथा वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों में सीमित स्वायत्तता स्थापित हुई।
    • वर्ष 2005: इज़रायल ने गाज़ा क्षेत्र से यहूदियों को वापस लाना शुरू कर दिया।। हालाँकि इज़रायल ने सभी सीमा पारगमन पर कड़ी निगरानी बनाए रखी।
    • वर्ष 2012: संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन का दर्जा अब “गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य” का है।
  • पड़ोसी देशों के साथ इज़रायल का क्षेत्रीय विवाद:
    • वेस्ट बैंक: वेस्ट बैंक इज़रायल और जॉर्डन के बीच स्थित है। रामल्लाह वेस्ट बैंक के प्रमुख शहरों में से एक है, जो फिलिस्तीन की वास्तविक प्रशासनिक राजधानी है। वर्ष 1967 के युद्ध में इज़रायल ने इस पर कब्ज़ा कर लिया तथा पिछले कुछ वर्षों में वहाँ बस्तियाँ भी बसा लीं हैं।
    • गाज़ा: गाज़ा पट्टी इज़रायल और मिस्र के बीच स्थित है। इज़रायल ने वर्ष 1967 के बाद इस पर नियंत्रण कर लिया, किंतु ओस्लो शांति प्रक्रिया के दौरान अधिकांश क्षेत्र में गाज़ा शहर व दिन-प्रतिदिन के प्रशासन से नियंत्रण हटा लिया। वर्ष 2005 में इज़रायल ने एकतरफा यहूदी बस्तियों को गाज़ा क्षेत्र से हटा दिया, लेकिन इसने यहाँ पर अन्य राज्यों की पहुँच को नियंत्रित करना जारी रखा है।
    • गोलान हाइट्स: वर्ष 1967 के युद्ध के दौरान इज़रायल ने सीरिया से गोलान हाइट्स पर कब्ज़ा कर लिया और वर्ष 1981 में इस पर पूर्ण रूप से कब्ज़ा कर लिया। हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर यरुशलम और गोलान हाइट्स को इज़रायल के हिस्से के रूप में मान्यता दी है।

पिछले कुछ वर्षों में इज़रायल और भारत के संबंध:

  • इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत का रुख:
    • भारत वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना का विरोध करने वाले कुछ देशों में से एक था।
    • भारत ने वर्ष 1950 में इज़रायल को मान्यता दी थी लेकिन फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (PLO) को फिलिस्तीन के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला यह पहला गैर-अरब देश भी है। भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने वाले पहले देशों में से एक है।
    • हाल के दिनों में भारत का रुख डी-हाईफेनेशन नीति की ओर देखा जा रहा है।
    • डी-हाईफेनेशन नीति:
      • विश्व में सबसे लंबे समय तक चलने वाले इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत की नीति पहले चार दशकों के लिये स्पष्ट रूप से फिलिस्तीन समर्थक होने से लेकर बाद के तीन दशक में इज़रायल के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों के साथ संतुलन बनाने वाली रही।
      • हाल के वर्षों में भारत की स्थिति को भी इज़रायल समर्थक के रूप में देखा जा रहा है।
    • इसके अतिरिक्त भारत इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के संबंध में दो-राज्य समाधान (Two-State Solution) में विश्वास करता है तथा शांतिपूर्ण तरीके से दोनों देशों के लिये आत्मनिर्णय के अधिकार का प्रस्ताव करता है।

इज़रायल-सऊदी अरब संबंधों पर हमले का प्रभाव:

  • इज़रायल पर हमास के हमले का एक कारण सऊदी अरब तथा इज़रायल के साथ-साथ अन्य देशों को एक साथ लाने के प्रयासों को बाधित करना माना जा सकता है जो इज़रायल के साथ अपने संबंधों को मैत्रीपूर्ण बनाना चाहते हैं।
  • हमास ने यरूशलम की अल-अक्सा मस्जिद के लिये खतरों, गाज़ा पर इज़रायल की नाकाबंदी जारी रखने तथा संबद्ध क्षेत्र के देशों के साथ इज़रायल के सामान्यीकरण पर प्रकाश डाला था।
  • सऊदी अरब को इज़रायल से अलग करने से मुस्लिम ब्रदरहुड के एजेंडे तथा अरब और मध्य-पूर्व क्षेत्र पर क्षेत्रीय संप्रभुता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
  • इज़रायल के साथ क्षेत्रीय शक्तियों के संबंधों के सामान्यीकरण से फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर पुनः कब्ज़ा करने के मामले में इज़रायल की स्थिति और मज़बूत होगी।
  • संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, सऊदी अरब आदि के साथ संबंधों से आधारभूत अवसंरचना के विकास को काफी बढ़ावा मिलेगा तथा इन देशों के बीच अंतर-निर्भरता और अंतर-संबंध की स्थिति बनेगी, जो फिलिस्तीन के लिये चिंता का विषय बनेगा।

आगे की राह

  • बड़े पैमाने पर विश्व को शांतिपूर्ण समाधान के लिये एक साथ आने की ज़रूरत है किंतु इज़रायली सरकार तथा अन्य संबंधित पक्षों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और अधिक बढ़ा दिया है। एक संतुलित दृष्टिकोण अरब देशों के साथ-साथ इज़रायल के साथ भी अनुकूल संबंध बनाए रखने में मदद करेगा।
  • इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्को के बीच संबंधों में हालिया सामान्यीकरण समझौते, जिन्हें अब्राहम एकॉर्ड कहा जाता है, आपसी परस्परता को प्रदर्शित करते हैं। सभी क्षेत्रीय शक्तियों को अब्राहम एकॉर्ड की तर्ज पर दोनों देशों के बीच शांति की परिकल्पना करनी चाहिये।
  • बहुपक्षीय संगठनों में भारत की भूमिका के लिये “मध्य-पूर्व और पश्चिम एशिया में सुरक्षा एवं स्थिरता के लिये सभी संबंधित पक्षों के सहयोग से कड़े प्रयासों” की आवश्यकता है।
  • भारत वर्तमान में 2021-22 की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का एक गैर-स्थायी सदस्य है तथा 2022-24 के लिये मानवाधिकार परिषद के लिये पुनः चुना गया था। भारत को इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे को सुलझाने के लिये मध्यस्थ के रूप में कार्य करने हेतु इन बहुपक्षीय मंचों का उपयोग करना चाहिये।
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