भारत कोई धर्मशाला नहीं है जहाँ सभी शरणार्थियों को रखा जाए-सुप्रीम कोर्ट
श्रीनारद मीडिया सेन्ट्रल डेस्क
श्रीलंका वापस क्यों नहीं जाना चाहता याचिकाकर्ता?
2018 में एक ट्रायल कोर्ट ने उसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया और उसे 10 साल जेल की सज़ा सुनाई। 2022 में, मद्रास उच्च न्यायालय ने उसकी सज़ा को घटाकर सात साल कर दिया। हालांकि, सजा पूरा होते ही उसने श्रीलंका वापस जाने से मना कर दिया।
क्या भारत को दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करनी है: कोर्ट
याचिकाकर्ता के इस तर्क पर न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, “क्या भारत को दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करनी है? हम 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है कि हम हर जगह से विदेशी नागरिकों का स्वागत कर सकें।”
अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 सिर्फ भारतीयों पर लागू होता है: अदालत
अदालत ने पूछा, “यहां बसने का आपका क्या अधिकार है?” जब याचिकाकर्ता के वकील ने जोर देकर कहा कि वह एक शरणार्थी है और श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है, तो अदालत ने उसे दूसरे देश में चले जाने के लिए कहा।
याचिकाकर्ता को UAPA मामले और विदेशी अधिनियम मामले में दोषी ठहराया गया है. वह भारत में शरणार्थी शिविर में इस आधार पर रहना चाहता था कि अगर उसे श्रीलंका वापस भेजा गया तो उसे मार दिया जाएगा. बेंच ने इस तर्क पर भी विचार करने से इनकार कर दिया कि अगर शख्स को उसके देश वापस भेजा गया तो उसकी ‘जिंदगी को खतरा’ होगा. बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा, “किसी अन्य देश चले जाओ.” याचिका के मुताबिक, श्रीलंका के शख्स को भारत में हत्या के एक मामले में 7 साल की जेल की सजा पूरी करने के बाद निर्वासित किया जाएगा.
क्या है पूरा मामला?
साल 2018 में एक ट्रायल कोर्ट ने उसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया और उसे 10 साल जेल की सज़ा सुनाई. 2022 में मद्रास हाई कोर्ट ने उसकी सज़ा को घटाकर सात साल कर दिया, लेकिन उसे अपनी सज़ा पूरी होते ही देश छोड़ने और निर्वासन से पहले शरणार्थी शिविर में रहने को कहा.
- यह भी पढ़े………
- अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस 3 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 1 पीएचसी का स्वास्थ्य मंत्री ने किया उद्घाटन
- बीएलओ को दिया गया एक दिवसीय उन्मुखीकरण प्रशिक्षण