भारत का राजकोषीय घाटा लक्ष्य चर्चा में क्यों?

भारत का राजकोषीय घाटा लक्ष्य चर्चा में क्यों?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

केंद्रीय बजट 2023-24 में सरकार ने सापेक्ष राजकोषीय विवेक को अपनाने की घोषणा की और वित्त वर्ष 2024 में राजकोषीय घाटे में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 5.9% तक की गिरावट का अनुमान लगाया, जो वित्त वर्ष 2023 में 6.4% था।

  • सरकार ने राजकोषीय समेकन के व्यापक पथ का अनुसरण जारी रखने और वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को 4.5% से नीचे लाने की योजना बनाई है।

बजट में घाटे की प्रवृत्तियाँ:

  • राजस्व घाटा वित्त वर्ष 2022-23 के 4.1 प्रतिशत (संशोधित अनुमान) की तुलना में वित्त वर्ष 2023-24 में 2.9 प्रतिशत रहने की उम्मीद है।
  • यदि ब्याज भुगतान को राजकोषीय घाटे से घटाया जाता है जिसे प्राथमिक घाटा कहा जाता है, तो यह वर्ष 2022-23 (संशोधित अनुमान) में सकल घरेलू उत्पाद का 3% था।
  • केंद्रीय बजट 2023-24 में प्राथमिक घाटा, जो पिछले ब्याज भुगतान देनदारियों से रहित चालू राजकोषीय रुख को दर्शाता है, GDP का 2.3% अनुमानित है।
  •  घाटा वित्त वर्ष 2022-23 के 4.1 प्रतिशत (संशोधित अनुमान) की तुलना में वित्त वर्ष 2023-24 में 2.9 प्रतिशत रहने की उम्मीद है।
  • यदि ब्याज भुगतान को राजकोषीय घाटे से घटाया जाता है जिसे प्राथमिक घाटा कहा जाता है, तो यह वर्ष 2022-23 (संशोधित अनुमान) में सकल घरेलू उत्पाद का 3% था।
  • केंद्रीय बजट 2023-24 में प्राथमिक घाटा, जो पिछले ब्याज भुगतान देनदारियों से रहित चालू राजकोषीय रुख को दर्शाता है, GDP का 2.3% अनुमानित है।

Trends-in-Deficit

राजकोषीय समेकन की दिशा में सरकार के प्रमुख कदम:

  • कम सब्सिडी: 
    • सरकार ने भोजन, उर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडी हेतु आवंटित राशि को कम कर दिया है।
      • वर्ष 2022-23 (संशोधित अनुमान) में खाद्य सब्सिडी 2,87,194 करोड़ रुपए थी जिसे वित्त वर्ष  2023-24 में घटाकर 1,97,350 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
      • इसी प्रकार वित्त वर्ष 2022-23 में उर्वरक सब्सिडी 2,25,220 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) थी जिसे वित्त वर्ष 2023-24 में घटाकर 1,75,100 करोड़ रुपए  कर दिया गया है।
      • वित्त वर्ष 2022-23 में पेट्रोलियम सब्सिडी 9,171 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) थी जिसे वित्त वर्ष 2023-24 (बजट अनुमान) में घटाकर 2,257 करोड़ रुपए किया गया है।
    • विगत वर्ष की तुलना में सब्सिडी में कमी उतनी तीव्र नहीं है, लेकिन यह अब भी वर्ष 2025-26 तक 4.5% के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य तक पहुँचने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
  • पूंजीगत व्यय: 
    • वर्ष 2023-24 के बजट में पूंजीगत व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 3.3% तक बढ़ाने की योजना बनाई गई है और सरकार ने विकास को बढ़ावा देने के लिये राज्यों को 50 वर्षों के लिये 1.3 लाख करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त ऋण प्रदान किया है।
  • ऋण प्रबंधन: 
    • अधिकांश राजकोषीय घाटे को आंतरिक बाज़ार ऋण के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है और एक छोटा हिस्सा बचत, भविष्य निधि तथा बाहरी ऋण के बदले प्रतिभूतियों से आता है।
      • वर्ष 2023 के केंद्रीय बजट में भारत का बाहरी ऋण कुल राजकोषीय घाटे का केवल 1% है, यह अनुमानतः 22,118 करोड़ रुपए है।
    • राज्य अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के 3.5% के राजकोषीय घाटे को बनाए रखने के लिये स्वतंत्र हैं, जिसमें 0.5% बिजली क्षेत्र के सुधारों के लिये है।

 उभरती अर्थव्यवस्था के लिये राजकोषीय समेकन का महत्त्व:

  • राजकोषीय समेकन से तात्पर्य राजकोषीय घाटे को कम करने के तरीकों और साधनों से है। एक सरकार आमतौर पर घाटे को कम करने के लिये कर्ज़ लेती है। इसके बाद उसे कर्ज चुकाने के लिये अपनी कमाई का एक हिस्सा आवंटित करना होता है।
  • कर्ज़ बढ़ने के साथ ब्याज का बोझ बढ़ता है। वित्त वर्ष 2022 के बजट में 34.83 लाख करोड़ रुपए से अधिक के कुल सरकारी व्यय में से 8.09 लाख करोड़ रुपए (लगभग 20%) से अधिक ब्याज के भुगतान में खर्च हो गया।

राजकोषीय घाटा:

  • परिचय: 
    • राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और उसके कुल राजस्व (उधार को छोड़कर) के बीच का अंतर है।
      • यह एक संकेतक है जो दर्शाता है कि सरकार को अपने कार्यों को वित्तपोषित करने के लिये किस सीमा तक उधार लेना चाहिये और इसे देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
    • ऋण स्तर में वृद्धि, मुद्रा का मूल्यह्रास और मुद्रास्फीति कर्ज़ के बोझ में वृद्धि का कारण बन सकता है।
      • जबकि कम राजकोषीय घाटा राजकोषीय प्रबंधन और सुचारू अर्थव्यवस्था के सकारात्मक संकेत हैं।
  • राजकोषीय घाटे के सकारात्मक पहलू:
    • सरकारी खर्च में वृद्धि: राजकोषीय घाटा सरकार को सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढाँचे और अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर खर्च बढ़ाने में सक्षम बनाता है जो आर्थिक विकास के लिये काफी सहायक हो सकते हैं।
    • सार्वजनिक वित्त निवेश: सरकार राजकोषीय घाटे के माध्यम से बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं जैसे दीर्घकालिक निवेशों को वित्तपोषित कर सकती है।
    • रोज़गार सृजन: सरकारी व्यय में वृद्धि से रोज़गार सृजन हो सकता है, जो बेरोजगारी को कम करने और जीवन स्तर को ऊँचा करने में मदद कर सकता है।
  • राजकोषीय घाटे के नकारात्मक पहलू:
    • बढे हुए कर्ज़ का बोझ: लगातार उच्च राजकोषीय घाटा सरकारी ऋण में वृद्धि को दर्शाता है, जो भविष्य की पीढ़ियों पर कर्ज़ चुकाने का दबाव डालता है।
    • मुद्रास्फीति का दबाव: बड़े राजकोषीय घाटे से धन की आपूर्ति में वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे आम जनता की क्रय शक्ति कम हो जाती है।
    • निजी निवेश में कमी: सरकार को राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिये भारी उधार लेना पड़ सकता है, जिससे ब्याज दरों में वृद्धि हो सकती है और निजी क्षेत्र के लिये ऋण प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है, इस प्रकार निजी निवेश बाहर हो सकता है।
    • भुगतान संतुलन की समस्या: यदि कोई देश बड़े राजकोषीय घाटे की स्थिति से गुज़र रहा है, तो उसे विदेशी स्रोतों से उधार लेना पड़ सकता है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ सकती है और भुगतान संतुलन पर दबाव पड़ सकता है।

भारत में अन्य प्रकार के घाटे:

  • राजस्व घाटा: यह राजस्व प्राप्तियों पर सरकार के राजस्व व्यय की अधिकता को संदर्भित करता है।
    • राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ
  • प्राथमिक घाटा: प्राथमिक घाटा ब्याज भुगतान को छोड़कर राजकोषीय घाटे के समान होता है। यह सरकार की व्यय आवश्यकताओं और इसकी प्राप्तियों के मध्य अंतर को इंगित करता है तथा  पिछले वर्षों के दौरान लिये गए ऋणों पर ब्याज भुगतान हेतु किये गए व्यय को ध्यान में नहीं रखता है।
    • प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
  • प्रभावी राजस्व घाटा: यह पूंजीगत परिसंपत्तियों के निर्माण के लिये राजस्व घाटे और अनुदान के मध्य का अंतर है।
    • सार्वजनिक व्यय संबंधी रंगराजन समिति द्वारा प्रभावी राजस्व घाटे की अवधारणा का सुझाव दिया गया है।

निष्कर्ष:

पूंजीगत व्यय के माध्यम से अर्थव्यवस्था को उबारना भारत की प्राथमिकता है। बुनियादी ढाँचे में सरकारी निवेश में वृद्धि के साथ निजी निवेश भी बढ़ेगा, आर्थिक (GDP) विकास को बढ़ावा मिलेगा, परिणामस्वरूप राजकोषीय घाटे के GDP अनुपात में कमी आएगी।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!