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चक्रवात क्या जलवायु परिवर्तन का संकेत है? - श्रीनारद मीडिया

चक्रवात क्या जलवायु परिवर्तन का संकेत है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बीते 14 मई से अरब सागर में उठे ताउते तूफान ने केरल, कर्नाटक के बाद बीते दिवस महाराष्ट्र और अब दीव में भारी तबाही मचायी है. 185 किलोमीटर की गति से चल रही हवाओं से सैकड़ो पेड़ उखड़ गये और सैकड़ो घर क्षतिग्रस्त हो गये. 184 से 186 मिलीमीटर बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया. यातायात प्रभावित हुआ, हवाई उड़ाने ठप्प रहीं. सी लिंक को भी यातायात के लिए बंद करना पड़ा. नगरीय रेल सेवा भी बाधित हुई.

अनेक कोविड सेंटर तबाह हो गये. मुंबई, ठाणे, रायगढ़, सिंधुदुर्ग समेत समूचे कोंकण क्षेत्र में भारी बारिश और तेज हवाओं से जनजीवन के साथ संचार सेवायें बाधित हो गयीं. कई नावें डूब गयीं. नाविकों का अभी तक कोई पता नहीं लग सका है. अब यह तूफान गुजरात तक जा पहुंचा है जहां एहतियातन करीब डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है. एनडीआरएफ और सेना की टीम हर स्थिति का सामना करने को तैयार हैं.

दरअसल बीते वर्ष मई में आये अम्फान तूफान, जून में आये निसर्ग तूफान और नवंबर में आये निवार तूफान, से भी अधिक भयावह तौकते तूफान है. मौसम विज्ञानियों के अनुसार पश्चिमी विक्षोभ और तेज हवाओं का इसे भयावह बनाने में अहम योगदान है, जिसने सात राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है. ऐसे तूफानों का प्रमुख कारण समुद्र के गर्भ में मौसम की गर्मी से हवा के गर्म होने के चलते कम वायु दाब के क्षेत्र का निर्माण होना है.

ऐसा होने पर गर्म हवा तेजी से ऊपर उठती है जो ऊपर की नमी से मिलकर संघनन से बादल बनाती है. इस वजह से बनी खाली जगह को भरने के लिए नम हवा तेजी से नीचे जाकर ऊपर उठकर आती है. जब हवा तेजी से उस क्षेत्र के चारों तरफ घूमती है, उस दशा में बने घने बादल बिजली के साथ मूसलाधार बारिश करते हैं. जलवायु परिवर्तन ने ऐसी स्थिति को और बढ़ाने में मदद की है.

जलवायु परिवर्तन और इससे पारिस्थितिकी में आये बदलाव के चलते जो अप्रत्याशित घटनाएं सामने आ रही हैं, उसे देखते हुए प्रबल संभावना है कि इस सदी के अंत तक धरती का स्वरूप काफी हद तक बदल जायेगा. इस विनाश के लिए जल, जंगल और जमीन का अति दोहन जिम्मेवार है. बढ़ते तापमान ने इसमें अहम भूमिका निबाही है. वैश्विक तापमान में यदि इसी तरह वृद्धि जारी रही, तो भविष्य में दुनिया में भयानक तूफान आयेंगे.

सूखा और बाढ़ जैसी घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि होगी. जहां तक तूफानों का सवाल है, तो समुद्र के तापमान में वृद्धि होने से स्वाभाविक तौर पर भयंकर तूफान उठते हैं, क्योंकि वह गर्म समुद्र की ऊर्जा को साथ ले लेते हैं. इससे भारी वर्षा होती है. तापमान में वृद्धि यदि इसी गति से जारी रही, तो धरती का एक चौथाई हिस्सा रेगिस्तान में तब्दील हो जायेगा और दुनिया का बीस-तीस फीसदी हिस्सा सूखे का शिकार होगा.

इससे दुनिया के 150 करोड़ लोग सीधे प्रभावित होंगे. इसका सीधा असर खाद्यान्न, प्राकृतिक संसाधन और पेयजल पर पड़ेगा. इसके चलते अधिसंख्य आबादी वाले इलाके खाद्यान्न की समस्या के चलते खाली हो जायेंगे और बहुसंख्य आबादी ठंडे प्रदेशों की ओर कूच करने को बाध्य होगी. जिस तेजी से जमीन अपने गुण खोती चली जा रही है उसे देखते हुए अनुपजाऊ जमीन ढाई गुना से भी अधिक बढ़ जायेगी.

इससे बरसों से सूखे का सामना कर रहे देश के 630 जिलों में से 233 को ज्यादा परेशानी का सामना करना पडे़गा. जिससे बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए खेती के अलावा दूसरे संसाधनों पर निर्भरता बढ़ जायेगी. दुनियाभर की भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति होगी. इससे खाद्यान्न तो प्रभावित होगा ही, अर्थव्यवस्था पर भी भारी प्रतिकूल प्रभाव पडे़गा.

ऐसी स्थिति में जल संकट बढे़गा, बीमारियां बढ़ेंगी, खाद्यान्न उत्पादन में कमी आयेगी, ध्रुवों की बर्फ पिघलेगी जिससे दुनिया के कई देश पानी में डूब जायेंगे. समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ेगा और समुद्र किनारे बसे नगर-महानगर जलमग्न होंगे व करीब 20 लाख से ज्यादा की तादाद में प्रजातियां सदा के लिए खत्म हो जायेंगी. जीवन के आधार रहे खाद्य पदार्थों के पोषक तत्व कम हो जायेंगे.

ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि और उससे उपजी जलवायु परिवर्तन की समस्या का ही परिणाम है कि आर्कटिक महासागर की बर्फ हर दशक में 13 फीसदी की दर से पिघल रही है, जो अब केवल 3.4 मीटर की ही परत बची है. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण मौसम के रौद्र रूप ने पूरी दुनिया को तबाही के कगार पर ला खड़ा किया है. तकरीबन डेढ़ लाख से ज्यादा लोग दुनिया में समय से पहले बाढ़, तूफान और प्रदूषण के चलते मौत के मुंह में चले जाते हैं.

बीमारियों से होने वाली मौतों का आंकड़ा भी हर वर्ष तेजी से बढ़ रहा है. कारण, जलवायु परिवर्तन से मनुष्य को उसके अनुरूप ढालने की क्षमता को हम काफी पीछे छोड़ चुके हैं. महासागरों का तापमान उच्चतम स्तर पर है. 150 वर्ष पहले की तुलना में समुद्र अब एक चौथाई अम्लीय है. इससे समुद्री पारिस्थितिकी, जिस पर अरबों लोग निर्भर हैं, पर भीषण खतरा पैदा हो गया है.

वर्तमान की यह स्थिति प्रकृति और मानव के विलगाव की ही परिणति है. जब तक जल, जंगल, जमीन के अति दोहन पर अंकुश नहीं लगेगा, तब तक जलवायु परिवर्तन से उपजी चुनौतियां बढ़ती ही चली जायेंगी और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष अधूरा ही रहेगा.

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