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साढ़े आठ साल से अधिक समय लगा राजस्थान के गठन में,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

साढ़े आठ साल से अधिक समय लगा राजस्थान के गठन में,क्यों?

साढ़े आठ साल से अधिक समय लगा राजस्थान के गठन में,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राजपूताना से राजस्थान के गठन का इतिहास देखेंगे तो पता चलेगा कि इसका गठन सात चरणों में हुआ है लेकिन सही मायने में इसके गठन में आठ चरण लगे थे। आठवें चरण में राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन माउंट आबू भी राजस्थान में शामिल किया गया। हालांकि इसे पूरक चरण माना जाता है। इस तरह मौजूदा राजस्थान के एकीकरण में आठ वर्ष सात महीने और चौदह दिन लगे। इतिहास में राजस्थान के गठन की तिथि तीस मार्च 1949 अंकित है और इसी के आधार पर राज्य का स्थापना दिवस मनाया जाता है।

हालांकि, राजस्थान प्रांत के गठन को लेकर ब्रिटिश शासक भी संदेह में थे। इसके बावजूद वल्लभभाई पटेल की दूरदर्शिता और उनकी सोच ने राजपूताना से राजस्थान के गठन की राह प्रशस्त की। आजादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गयी थी। उस समय राजस्थान में 19 देशी रियासतें, 3 ठिकाने और अजमेर-मेरवाड़ा के नाम पर एक केंद्र शासित प्रदेश भी शामिल था। अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत को छोड़कर बाकी देशी रियासतों में देशी राजा-महाराजाओं का ही राज था।

सत्ता की होड़ के चलते राजस्थान के गठन की बात बेहद ही दूभर लग रही थी। उनकी मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, इसलिए उनकी रियासत को ‘स्वतंत्र राज्य’ का दर्जा दे दिया जाए। एक दशक की ऊहापोह के बीच 18 मार्च 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में एक नवंबर 1956 को पूरी हुई।

इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरुप का निर्माण हो सका। इस तरह राजस्थान के एकीकरण में आठ वर्ष सात महीने और चौदह दिन लगे।

उदयपुर सहित चार रियासतें होते स्वतंत्र राज्य

देश के पहले गृहमंत्री वल्लभभाई और सचिव वीपी मेनन की चतुराई और सूझबूझ से राजस्थान का गठन हो पाया। यदि वह जोर नहीं देते तो राजस्थान के उदयपुर यानी मेवाड़, जोधपुर यानी मारवाड़, बीकानेर यानी बीकाणा और जयपुर यानी ढूंढात प्रांत स्वतंत्र राज्य होते। स्वतंत्र राज्यों के गठन को लेकर जो शर्ते तय की गई थी, उन्हें ये चारों रियासतें पूरा करती थी। जिसमें दस लाख से अधिक आबादी तथा वार्षिक आय एक करोड़ रुपए से अधिक होनी चाहिए थी।

इस तरह गठित हुआ राजस्थान

राजस्थान के गठन में सबसे पहले तत्कालीन रियासतें अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली को शामिल किया गया और उसे ‘मत्स्य यूनियन’ नाम दिया गया। यह राजस्थान के निर्माण की दिशा में पहला कदम था। 18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ का उद़घाटन हुआ और धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह को इसका राजप्रमुख मनाया गया। जिसकी राजधानी अलवर थी।

राजस्थान के एकीकरण का दूसरा चरण 25 मार्च 1948 को पूरा हुआ, जिसमें स्वतंत्र देशी रियासतें कोटा, बूंदी, झालावाड, टौंक, डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ, किशनगढ और शाहपुरा को शामिल किया गया। इनमें कोटा सबसे बड़ी रियासत थी, इस कारण इसके तत्कालीन महाराजा महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख बनाया गया। जबकि तीसरे चरण में 18 अप्रेल 1948 को उदयपुर रियासत को शामिल किया गया और इसे ‘संयुक्त राजस्थान संघ’ नाम दिया गया। जिसमें राजप्रमुख उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह थे। जबकि कोटा के महाराव भीमसिंह को वरिष्ठ उप राजप्रमुख बनाया गया।

चौथे चरण के तहत तीस मार्च 1949 को वृहत्तर राजस्थान संघ का निर्माण हुआ, जिसमें बीकानेर रियासत को शामिल किया गया। इस तिथि को ही राजस्थान की स्थापना दिवस के रूप में माना जाता है। इसके बाद मई 1949 में मत्स्य संध को भी ग्रेटर राजस्थान में शामिल कर लिया गया। देश में जब संविधान लागू हुआ यानी 26 जनवरी 1950 को सिरोही रियासत भी ग्रेटर राजस्थान में शामिल हो गई।

किन्तु सिरोही रियासत के एक हिस्से माउंट आबू और देलवाड़ा को बंबई प्रांत में शामिल कर दिया गया। किन्तु राजस्थान के लोग माउंट आबू और देलवाड़ा को किसी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे। जिसके लिए आंदोलन चलाया गया और भारत सरकार ने माउंट आबू और देलवाड़ा का राजस्थान में विलय कर दिया। प्रदेश में एक नवंबर 1956 तक राजप्रमुख का पद रहा और बाद में इसे समाप्त कर राज्यपाल का पद सृजित किया गया।

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