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विकास पुरुष से 'विश्वास पुरुष' तक का सफर, 13 महीने में बदला जम्मू-कश्मीर,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

विकास पुरुष से ‘विश्वास पुरुष’ तक का सफर, 13 महीने में बदला जम्मू-कश्मीर,कैसे?

विकास पुरुष से ‘विश्वास पुरुष’ तक का सफर, 13 महीने में बदला जम्मू-कश्मीर,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सक्रिय राजनीतिक जीवन में अनेक लोग ‘विकास पुरुष’ के रूप में प्रख्यात होते हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल के रूप में मनोज सिन्हा ने विकास पुरुष के साथ-साथ ‘विश्वास पुरुष’ की छवि कायम की है। यह बहुत औचक नहीं है। यह उनके जीवन और स्वभाव का हिस्सा है। उप राज्यपाल के सिर्फ 13 महीने के कार्यकाल में उन्होंने जम्मू-कश्मीर के हर क्षेत्र में विश्वास और विकास की नींव बहुत गहरी ढाल दी।

जम्मू-कश्मीर के सारे राजनीतिक दल विकास के लिए बातचीत को तैयार हुए और दिल्ली तक आए। इसकी पृष्ठभूमि भी अहैतुक नहीं है। हालात को सद्भाव में बदलने की जो पुरजोर कोशिश मनोज सिन्हा ने की, उसका ही नतीजा है कि दिल्ली तक जम्मू-कश्मीर के वह नेता भी आए, जिनकी प्रतिक्रिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातचीत वाले न्योता पर शुरुआत में सकारात्मक नहीं थी।

भेद कर पाना बहुत मुश्किल

दरअसल, मनोज सिन्हा का सामाजिक सरोकार बहुत बड़ा रहा है। जानने वाले जानते हैं कि यह भेद कर पाना बहुत मुश्किल है कि वह अपनी पहचान वालों में किसे ज्यादा चाहते हैं। चूंकि सबको यह ही भान होता है कि वह उन्हेंं मन से मानते हैं। राजनीतिक जीवन में प्रवेश बहुत आसान नहीं था। बड़ा था तो उनका वह संकल्प जो काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ही लिया गया था-लडूंगा तो पार्लियामेंट का ही चुनाव। सबसे बड़ा है उनका धैर्य। छात्रसंघ चुनाव हो या संसदीय मतदान- दोनों में ही जीत और हार का क्रम उनके जीवन में चलता रहा। पर कभी निराश नहीं हुए। हारे फिर जीते।

कोई तामझाम नहीं

गाजीपुर के हरि नारायण हरीश अर्से से मनोज सिन्हा से जुड़े हैं। बताते हैं कि जम्मू विश्वविद्यालय के जनरल जोरावर सिंह सभागार में जम्मू-कश्मीर संस्कृति अकादमी की ओर से कार्यक्रम था। वह भी आमंत्रित थे। बतौर उप राज्यपाल जब आए तो नीचे ही बैठ गए। कोई तामझाम नहीं। सबसे बड़ी बात जो दिखी वह यह कि डोगरी भाषी छात्र-छात्राएं हिंदी कविता का सस्वर पाठ कर रही थीं।

इन सबके पीछे उप राज्यपाल का मार्गदर्शन था। अभी कुछ दिन पहले जब जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा गाजीपुर आए थे, तब बनारस और गाजीपुर के लोगों से खूब बातचीत हुई थी और यह साझा किया था कि कैसे वहां तीन वर्ष में दूध उत्पादन एक लाख लीटर से बढ़ाकर पांच लाख लीटर करने का लक्ष्य पूरा हो रहा है। वहां 50 किलोमीटर में मेट्रो रेल की तैयारी द्रुत गति से हो रही है।

मनोज सिन्हा ‘लाट साहब’ नहीं
उन्होंने वाराणसी के लोगों से फार्मूला साझा किया था- मैं छोटे लक्ष्य के साथ बड़ा लक्ष्य चुनता हूं। दो माह में क्या कर सकता हूं? छह माह में क्या हो सकता है और साल-दो साल में क्या हो सकता है? फिर इसी अनुरूप कार्ययोजना बनाकर काम करता हूं। गाजीपुर के हरिनारायण हरीश चूंकि कश्मीर हो आए हैं, इसलिए बताते हैं कि मनोज सिन्हा ‘लाट साहब’ नहीं हैं। वह तो हमेशा सेवाभावी बने रहते हैं। जम्मू-कश्मीर के सभी सरकारी इमारतों पर झंडा फहराने का फैसला हो या घाटी समेत पूरे राज्य में टीकाकरण का रिकार्ड बना हो, सबमें बतौर उप राज्यपाल उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति ही फलदायी हुई है।

बनावटी भाव कभी उनके जीवन में नहीं आया

उनके करीबी डाक्टर अवधेश नारायण बताते हैं कि कोई बनावटी भाव कभी उनके जीवन में नहीं आया। छात्र जीवन से ही दुर्गा माता और हनुमानजी के उपासक रहे। टीका और टीक दोनों उनके संस्कार में शामिल रहा और हमेशा शाकाहारी खानपान को प्रश्रय दिया। वाग्यम और वाग्मिता दोनों का एक ही पुरुष में होना मुश्किल होता है, लेकिन मनोज सिन्हा में यह कूट-कूट कर भरा है।

यानी भाषा पर संयम भी और जहां जरूरत हो वहां वाकपटुता भी। भारतीय राजनीति में कर्मयोगी राजनेता की कोई माला बनेगी तो मेरू के रूप में मनोज सिन्हा दर्ज हो सकते हैं। पढ़ी गई इंजीनियरिंग कोई पुल या महल भले नहीं बना रही हो, लेकिन देश और समाज के निर्माण का नक्शा जरूर तय कर रही है। कश्मीर घूम आए लोग बताते हैं कि उनकी तारीफ इसलिए भी होती है कि वहां आतंकी हमले के शिकार हुए किसी भी आदमी के परिवार तक खुद सांत्वना देने वे जाते हैं। इससे लोगों का बड़ा विश्वास उनके प्रति जम रहा है।

मैं मूल्यांकन नहीं करता

एक बार बतौर उप राज्यपाल एक सवाल मनोज सिन्हा से पूछा गया कि वह जम्मू-कश्मीर में अपने कामकाज का मूल्यांकन किस रूप में करना चाहेंगे? उनका जवाब था कि जम्मू-कश्मीर जमीन का एक टुकड़ा मात्र नहीं है। भारत का जीता-जागता राष्ट्र पुरुष है। यह बताया कि अपने कामकाज का मैं मूल्यांकन नहीं करता हूं। सब जनता पर छोड़ देता हूं। बस इस बात की निगरानी करता हूं कि काम में कोई कसर न रहे।

वापस कर दिया था पार्टी फंड

करीबी रहे विजय शंकर राय बताते हैं कि गाजीपुर में चुनाव लडऩे के लिए जो चंदा मिला था, उसमें से ढाई लाख रुपये मनोज सिन्हा ने पार्टी को यह कहकर वापस कर दिए थे कि यह खर्च नहीं हो सका। उनमें कभी अहंकार नहीं रहा। वह तो सूखी रोटी भी बहुत चाव से खाते हैं। सबसे ज्यादा उन्हेंं दही पसंद है।

जो आश्वासन दिया, वह काम हुआ

अध्यक्ष, कश्मीर चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज, शेख आशिक ने बताया कि हमने उन्हेंं कश्मीर के कारोबारी जगत से लेकर आम लोगों से जुड़े विभिन्न मुद्दों से अवगत कराया है। उन्होंने हमें जो आश्वासन दिए, लगभग सभी पूरे हुए हैं। वह काम करने में यकीन रखते हैं।

ईमानदारी से उनके मिशन पर काम करें नौकरशाह

डीडीसी फोरम के संयोजक और राजनीतिक कार्यकर्ता, तरनजीत सिंह टोनी ने कहा कि नौकरशाह उनके मिशन को लागू करने लिए पूरी ईमानदारी से काम करे तो जम्मू-कश्मीर के अगले दो तीन सालों में देश के सबसे विकसित और खुशहाल प्रदेश में होगा।

 

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