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कश्मीर जी-20 वेन्यू और इंवेस्टमेंट-डेस्टिनेशन बन गया है,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

कश्मीर जी-20 वेन्यू और इंवेस्टमेंट-डेस्टिनेशन बन गया है,कैसे?

कश्मीर जी-20 वेन्यू और इंवेस्टमेंट-डेस्टिनेशन बन गया है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कश्मीर सुर्खियों में है। पर इस बार सुर्खियों की रंगत जुदा है। बातों के केंद्र में अब आतंकी हमले, प्रॉक्सी वॉर और इंटरनेट-बंदी नहीं हैं। कश्मीर के बारे में बात करने के बजाय, इस बार दुनिया कश्मीर में बैठकर बात कर रही है। जी-20 की महत्वपूर्ण बैठक श्रीनगर में हो रही है।

यह पर्यटन पर केंद्रित कार्य-समूह है, जिसमें तकरीबन 60 विदेशी डेलीगेट्स शामिल हैं। यह तीन दिवसीय इवेंट शेर-ए-कश्मीर कंवेंशन सेंटर में हो रहा है। 2019 में अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के बाद घाटी में पहली बार कोई बड़ा आयोजन हो रहा है। इन चार सालों में हुई प्रगति का यह सबूत है।

धीरे-धीरे ही सही, लेकिन कश्मीर सधे कदमों से उग्रवाद और अस्थिरता के दिनों को पीछे छोड़ रहा है। अलबत्ता पाकिस्तान के रूप में खतरा अब भी पड़ोस में मंडरा रहा है। जी-20 बैठक के आयोजन-स्थल में इसकी झलक दिखी। वहां सुरक्षा के तमाम बंदोबस्त किए गए थे। मरीन और एनएसजी कमांडो मुस्तैद थे, एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी तैनात थी और सीआरपीएफ द्वारा मॉकड्रिल की जा रही थीं।

अगर कश्मीर में सुरक्षागत हालात सुधरे हैं तो इसकी क्या जरूरत थी? लेकिन भारत कश्मीर के लोगों पर तो भरोसा कर सकता है, सीमापार से वहां अपनी हरकतों को अंजाम देने वालों पर नहीं। पाकिस्तान ने व्यवधान डालने की हरसम्भव कोशिशें कीं। जी-20 दुनिया की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का समूह है। अगर यह जी-200 होता तो शायद पाकिस्तान को भी इसमें सदस्यता मिल पाती। लेकिन अभी तो वह हाशिए से ही अपनी हरकतों को अंजाम दे सकता था।

सबसे पहले तो उसने कश्मीर पर भारत का सैन्य कब्जा होने और वहां मानवाधिकार के खतरे में आने का पुराना राग अलापा। कुछ छिटपुट पश्चिमी स्वरों ने उसकी बात को समर्थन भी दिया, लेकिन अपनी बात की पुष्टि के लिए वे डाटा नहीं प्रस्तुत कर सके। पिछले साल तकरीबन दो करोड़ पर्यटकों ने कश्मीर की यात्रा की थी।

यह अभी तक की सर्वाधिक संख्या है! क्या ये टूरिस्ट वहां पर सैन्य-कब्जा देखने गए थे? या मानवाधिकारों के हनन का मुजाहिरा करने गए थे? इसके बाद पाकिस्तान ने अपना दूसरा आजमाया हुआ दांव चला- आतंकवाद। रिपोर्टों के मुताबिक आतंकवादी कश्मीर में 26/11 शैली का हमला करने की योजना बना रहे थे।

उनके निशाने पर गुलमर्ग का स्की रिसोर्ट टाउन था। जी-20 डेलीगेट्स इस सप्ताह के अंत तक वहां पहुंचने वाले थे। प्लान था कि डेलीगेट्स के होटल पर हमला करके उन्हें बंधक बना लिया जाएगा, जिससे दुनिया में कश्मीर की खराब छवि पेश होगी।

पर खुफिया चेतावनियों के बाद स्थानीय प्रशासन ने गुलमर्ग को प्लान से बाहर कर दिया और कार्यक्रम को श्रीनगर तक ही सीमित रखा। मंसूबे नाकाम रहे। लेकिन पाकिस्तान जैसे पड़ोसी के होते हुए कश्मीर में कुछ अच्छा काम करना कितना चुनौतीपूर्ण है, इससे यह फिर जाहिर हुआ।

इसके बाद पाकिस्तान ने अपने तरकश का तीसरा तीर निकाला- इस्लामिक राजनीति। उसने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन यानी ओआईसी में जाकर कश्मीर में हो रहे आयोजन के बायकॉट की अपील की। अतीत में ओआईसी कश्मीर पर पाकिस्तान के झूठ को बढ़ावा देता रहा है, लेकिन इस बार उसका तथाकथित बायकॉट आधे मन से किया गया था।

तुर्किये और सऊदी अरब जैसे देशों ने अपने अधिकृत प्रतिनिधिमण्डल नहीं भेजे, लेकिन उनके निजी क्षेत्र ने कार्यक्रम में सहभागिता की। यह उन देशों की सरकारों की सहमति बिना नहीं हो सकता था। नाइजीरिया, बांग्लादेश, यूएई और इंडोनेशिया ने अपने अधिकृत प्रतिनिधिमण्डल भेजे। ये सभी ओआईसी के सदस्य हैं। केवल एक ही देश ऐसा था, जिसने अपने प्रतिनिधि नहीं भेजे और वह चीन था। लेकिन इससे किसी को आश्चर्य नहीं हुआ।

भारत इस इवेंट को सफल करार दे रहा है। यह बदलते कश्मीर की तस्वीर है और उसमें वहां के लोगों की आकांक्षाओं की झलक है। लाखों सैलानी कश्मीर जा रहे हैं और निवेशकों का समूह कश्मीर की ओर रुख कर रहा है। पिछले साल कश्मीर घाटी को अपना पहला विदेशी निवेश मिला और वह भी एक अरब देश से, जो कि ओआईसी का सदस्य है।

दुबई का एमार ग्रुप श्रीनगर में एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के निर्माण के लिए 6 करोड़ डॉलर का निवेश कर रहा है। यह भारत की कश्मीर नीति पर सहमति की मुहर है। 2018 में कश्मीर में 400 आतंकी वारदातें हुई थीं, जो 2021 तक घटकर 250 हो गईं। आज कश्मीर एक जी-20 इवेंट वेन्यू और इंवेस्टमेंट-डेस्टिनेशन बन गया है। इसमें संदेह नहीं कि आज वह सही डगर पर आगे बढ़ रहा है।

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