भारतीय संस्कृति के पर्याय थे महेंद्र कुमार

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स्वतंत्रता सेनानी और सीवान में कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना में योगदान देने वाले स्वर्गीय महेंद्र कुमार की जन्म शताब्दी समारोह मनाई गई

✍️गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दुनिया में बहुत लोग जन्म लेते हैं और प्रकृति के नियमानुसार एक समय दुनिया को अलविदा कर ही जाते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व की बानगी ऐसी होती है कि सदियों तक उनका पुण्य स्मरण ऊर्जस्वित करता है, प्रेरित करता रहता है। कुछ ऐसे ही थे सीवान के हमारे स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद्, स्वयंसेवक और समाज के लिए सदैव समर्पित योगदान देनेवाले स्वर्गीय महेंद्र कुमार।

कोई उन्हें सामाजिक संचेतना का संवाहक मानता है तो कोई शिक्षा का अलख जगानेवाला पुरोधा, कोई उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन का क्रांतिकारी प्रहरी मानता है तो कोई उन्हें प्रेरणा का अविरल स्रोत। परंतु उनके पुण्य स्मरण के अवसर पर सामाजिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक विमर्श जीवंत हो उठते हैं और प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक, प्रखर वक्ता श्री रामाशीष जी भी स्वर्गीय महेंद्र कुमार को भारतीय संस्कृति का पर्याय स्वीकार कर जाते हैं।

सीवान के मालवीय चौक स्थित डायट सभागार में स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय महेंद्र कुमार का जन्म शताब्दी समारोह मनाया गया। अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता नीलकमल अस्पताल के निदेशक डॉक्टर विनय कुमार सिंह ने की। जबकि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय संयोजक श्री रामाशीष जी थे।

विषय प्रवेश कराते हुए प्रोफेसर रविंद्र नाथ पाठक ने स्वर्गीय महेंद्रकुमार के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला तो प्रोफेसर अनिल कुमार प्रसाद ने अपने संबोधन में स्वर्गीय महेंद्र कुमार के व्यक्तित्व की निर्मलता पर प्रकाश डालते हुए युवाओं में बढ़ रही दिशाहीनता के मुद्दे को भी सामने लाया। विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद भाजपा कार्य समिति के सदस्य सुनील कुमार सिंह ने भी स्वर्गीय महेंद्र कुमार को प्रेरणा स्रोत बताया।

मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधन देते हुए प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय संयोजक श्री रामाशीष जी ने स्वर्गीय महेंद्र कुमार को सामाजिकता का प्रतीक, भारतीय संस्कृति का पर्याय और क्रांतिकारी बताते हुए उनके शिक्षा का अलख जगाने में योगदान के बारे में बताया। स्वाभाविक था कि एक समाज के प्रति समर्पित व्यक्तित्व, शिक्षा के प्रेमी, राष्ट्रवादी व्यक्तित्व के पुण्य स्मरण की बेला में कुछ समसामयिक मसलों पर चिंतन मनन तो होने ही थे।

श्री रामाशीष जी ने बताया कि भारत में किसी भी विचारधारा को भारतीय दृष्टिकोण से समझने पर ही हम उसे सही परिप्रेक्ष्य में समझ सकते हैं। भारतीय संस्कृति शाश्वत प्रकृति की रही है। वसुधैव कुटुंबकम् और सर्वे भवन्तु सुखिन की अवधारणा भारतीय संस्कृति की पहचान रही है। आज के युवा यदि दिशाहीनता के शिकार हो रहे हैं, दिग्भ्रमित हो रहे हैं तो जरूरी है कि उन्हें भारतीय संस्कृति के मूल्यों से जोड़ने के प्रयास किए जाए।

उन्होंने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति के मूल्य पारस स्पर्श ही नहीं दीप स्पर्श की अवधारणा से भी जुड़े रहे हैं। दीप से दीप जलता रहता है। वैसे ही यदि हमारी संस्कृति के मूल्यों का प्रसार होता रहे तो यहीं हमारी सभ्यता की सार्थकता होगी।

इस अवसर पर अध्यक्षीय भाषण देते हुए डॉक्टर विनय कुमार सिंह ने कहा कि बदलाव की शुरुआत स्वयं के स्तर पर हो तो बेहद अच्छे परिणाम आएंगे। इस अवसर पर शहर के प्रबुद्धजन भारी संख्या में मौजूद रहे। सभा का संचालन प्रख्यात शायर सुनील कुमार तंग ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर अमित कुमार श्रीवास्तव ने किया।

इसके बाद कार्यक्रम का समापन तो हो गया लेकिन स्वतंत्रता सेनानी, सीवान में विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं के संस्थापना में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले स्वर्गीय महेंद्र कुमार के व्यक्तित्व और कृतित्व के संदर्भ में भारतीय संस्कृति के शाश्वत मूल्य पर चले तकरीबन दो घंटे के चिंतन मनन ने उपस्थित हर प्रबुद्धजन को समाज के बारे में बहुत कुछ सोचने के लिए प्रेरित जरूर किया।

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