Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
मेरी माँ सुख,शांति व समृद्धि की प्रतीक रही- डॉ अशोक प्रियंवद - श्रीनारद मीडिया

मेरी माँ सुख,शांति व समृद्धि की प्रतीक रही- डॉ अशोक प्रियंवद

मेरी माँ सुख,शांति व समृद्धि की प्रतीक रही- डॉ अशोक प्रियंवद

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

शक्ति, धैर्य व दृढ़ संकल्प की प्रतिमूर्ति थी माता राजेश्वरी

राजेश पाण्डेय

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

“नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥”

(अर्थात मां की तरह ना कोई छाया दे सकता है ना ही कोई आश्रय ही दे सकता है। मां इस पूरे ब्रह्मांड में जीवनदायिनी है उसके जैसा कोई दूसरा नहीं है।)

मानव धरती पर आता है कुछ दिन कर्म करता है फिर अनंत में चला जाता है। लेकिन कुछ उसके कर्म यादों के धरोहर बन जाते हैं तो कुछ समाज के लिए सौगात। जी हां, ऐसा ही कुछ था माता राजेश्वरी के साथ। जिनके मार्गदर्शन में पूरे परिवार को सांसारिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति मिली। इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा और पूरा कुटुंब मातृशक्ति से शिक्षित होकर आत्मनिर्भर हो गया। ऋषियों ने गृहस्थ जीवन को मानवता के विकास की उर्वरा शक्ति बताया है।यह गृहिणी के आदर्श मूल्यों पर आधारित है।

ध्यातव्य हो कि सीवान जिले में भगवानपुर प्रखंड के पंडित के रामपुर ग्राम निवासी जनक देव पाण्डेय (सेवा निवृत्त खादी ग्रामोद्योग कर्मी) की पत्नी शिक्षिका राजेश्वरी पाण्डेय का निधन 85 वर्ष की आयु में 06 अक्टूबर 2022 को नगर स्थित अपने निजी आवास मालवीय नगर,महादेवा, सीवान में हो गया। आपके बड़े सुपुत्र डॉ अशोक प्रियंवद ( व्याख्याता, हिंदी विभाग, जेड.ए. इस्लामिया महाविद्यालय सीवान) के द्वारा इस सूचना को प्रेषित किया गया। अंत्येष्टि संस्कार 07 अक्टूबर को अहले सुबह सारण जिला स्थित ताजपुर के निकट सरजू नदी के तट डुमाईगढ घाट पर किया गया। वही श्राद्ध संस्कार 17 अक्टूबर 2022 को मालवीय नगर, महादेवा, सीवान स्थित आवास से संपन्न हुआ।

माता राजेश्वरी ने अपने दांपत्य जीवन के 66 वर्षों में पूरे परिवार व समाज को स्नेह, आशीष एवं मातृत्व भाव से परिपूर्ण कर दिया। परिवार एवं समाज के प्रति स्त्री का समर्पण पितृ शक्ति को कठिन से कठिन परिस्थितियों से सुरक्षित बाहर निकालने में सक्षम होता है। यह अटूट विश्वास का चक्र जीवन की वास्तविकता है। माता राजेश्वरी दूसरों के लिए प्रेम भाव और अवसर पड़ने पर त्याग के लिए तत्पर रहना सिखा जाती है।

परिवार के लिए श्रमदान एवं समाज के लिए शिक्षा दान आपके जीवन का मूल मंत्र रहा। जीवन के उतार-चढ़ाव में आप समस्याओं में डूबी रही लेकिन सत्य के पतवार से अपने जीवन की नैया को खेने का काम किया, जो आज परिवार की समृद्धि के रूप में देखा जा सकता है। राजेश्वरी पाण्डेय का जीवन एक साधना, एक तप था, जिसने पूरे परिवार को अच्छे गुण सिखाए। यही कारण था कि उनके सामने ही तीसरी पीढ़ी के बच्चे आत्मनिर्भर हो गए। शास्त्रों में भी कहा गया है आत्मा की सर्वोच्च मुक्ति उसे सभी बंधुओं से मुक्त करती है, यही वास्तविक मुक्ती है जो उन्हें प्राप्त हुआ है।आपका परिवार के प्रति योगदान उस महल की नींव के पत्थरों की तरह है जो अजर-अमर है।

इस भौतिक जीवन में व्यक्ति का आकलन क्या खोया? क्या पाया? को लेकर होती है। सच तो यह है कि धरती पर मात्र जीव की स्थिति बदलती है शिशु से किशोर,किशोर से युवा, युवा से प्रौढ,प्रौढ से वृद्ध और वृद्ध से विदाई। लेकिन वेद का अकाट्य वाक्य ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवता’ आपके परिवार में चरितार्थ होता रहा है।

आप अपने पीछे एक समृद्ध परिवार छोड़ गई है, जिसमें तीन-तीन बेटे-बहुएं, तीन-तीन बेटियां-दमाद,आठ पोते-पोतियां है। यह कितना सुखद है जब आपके सामने ही आपके बड़े पोते को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ऐसा विरले ही होता है जो व्यक्ति अपने तीसरी पीढ़ी को अपनी आंखों के सामने देख पाता है। लगभग 85 वर्ष का आपका जीवन बड़ा होने के साथ-साथ पूरे परिवार के लिए वट वृक्ष के रूप में सर्वदा छाया देता रहा। सचमुच आपका जीवन अनुकरणीय है।

कहते हैं मानसिक पटल पर जैसा चिंतन,विचार एवं संकल्प होता है,हमारा बाहरी जीवन भी उसी के अनुरूप ढल जाता है। माता राजेश्वरी ने गांव से लेकर नगर तक अपने पति जनक देव पाण्डेय के साथ यात्रा तय की और अपने कर्मो पर अपनी स्थिति की छाप स्पष्ट छोडी। कल्पना शक्ति, धर्य और दृढ़ संकल्प आपके जीवन का मंत्र रहा। इससे परिवार में एक ऐसे चरित्र का निर्माण हुआ जो संकल्पों से परिपूर्ण अपने आप में पूर्ण जीवन का सफल पक्ष बना रहा।

और अंतत:
“अचोद्यमानानि यथा, पुष्पाणि फलानि च|
स्वं कालं नातिवर्तन्ते, तथा कर्म पुरा कृतम्”

(अर्थात फल-फूल बिना किसी भी प्रेरणा के स्वत: समय पर प्रकट हो जाते हैं और समय का अतिक्रमण नहीं करते, उसी प्रकार पहले किए गए कर्म भी यथा समय ही अपने फल देते हैं।)

Leave a Reply

error: Content is protected !!