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NDPS एक्ट जिसमें है मृत्युदंड तक का प्रावधान. - श्रीनारद मीडिया

NDPS एक्ट जिसमें है मृत्युदंड तक का प्रावधान.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत देश में नशीले पदार्थों के उपयोग, निर्माण, खरीद और बिक्री के खिलाफ कानून है। इसे संक्षेप में एनडीपीएस एक्ट कहते हैं। हिंदी में इसका नाम स्वापक औषधि और मन:प्रभावी अधिनियम, 1985 है।  इस अधिनियम के तहत दो प्रकार के नशीले पदार्थ हैं – नारकोटिक और साइकोट्रोपिक। नारकोटिक्स का अर्थ नींद से है और साइकोट्रोपिक का अर्थ उन पदार्थों से है जो दिमाग पर असर डालते हैं। एनडीपीएस एक्ट में अभी तक तीन बार 1988, 2001 और 2014 में बदलाव भी हुए हैं।

संसद ने साल 1985 में इसे पास किया था. यह कानून किसी एक व्यक्ति को मादक दवाओं के निर्माण, उत्पादन, खेती, स्वामित्व, खरीद, भण्डारण, परिवहन या उपभोग करने के लिए प्रतिबंधित करता है। कुछ का उत्पादन चिकित्सा आवश्यकताओं या अन्य कार्यों के लिए उत्पादन आवश्यक होता है, लेकिन उन पर कड़ी निगरानी रखनी होती है। अन्यथा लोग नशे के आदी हो सकते हैं। इसके नियंत्रण के लिए एनडीपीएस एक्ट बनाया गया है।

क्या कहती हैं धाराएं

एनडीपीएस एक्ट की धारा 20 में ड्रग्स का उत्पादन करने, बनाने, रखने, बेचने, खरीदने, दूसरी जगह भेजने, एक राज्य से दूसरे राज्य में आयात या निर्यात करने और इस्तेमाल करने पर सजा का प्रावधान है।

कम मात्रा- धारा 20 में क्लॉज दो के (ए) में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति के पास प्रतिबंधित ड्रग्स की कम मात्रा पाई जाती है तो उसे 6 महीने तक की जेल या 10 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है।  इस तरह का अपराध जमानती होता है। यानी आसानी से जमानत मिल जाती है. हालांकि बार-बार पकड़े जाने पर जमानत मिलना मुश्किल हो जाता है।

कमर्शियल क्वांटिटी- धारा 20 में क्लॉज दो के (बी) में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति के पास कम मात्रा से अधिक प्रतिबंधित नशीला पदार्थ पाया जाता है तो ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की जेल हो सकती है और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इस एक्ट के तहत पुलिस भी कार्रवाई कर सकती है। इस तरह के अपराध गैर जमानती होते हैं।

बीच की मात्रा- कम और कमर्शियल की बीच की मात्रा होने पर 10 साल तक की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माने का प्रावधान है। या दोनों हो सकते हैं। ऐसे मामलों में जमानत मिलना या न मिलना पकड़े गए नशीले पदार्थ और पुलिस की धाराओं पर निर्भर करता है। इसके अलावा केंद्र और राज्यों में अलग से नारकोटिक्स विभाग भी होते हैं। नशीले पदार्थों से जुड़े मामलों में कार्रवाई करने वाली सर्वोच्च जांच संस्था नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो है। इसकी स्थापना 17 मार्च, 1986 को हुई थी।

नशे के टाइप के हिसाब से मात्रा तय होती है

ड्रग्स                कम मात्रा     कमर्शियल मात्रा

चरस/हशीश- 100 ग्राम                  1 किलो

कोकिन- 2 ग्राम                         100 ग्राम

गांजा- 1 किलो                           20 किलो

हेरोइन- 5 ग्राम                         250 ग्राम

मार्फिन – 5 ग्राम                          250 ग्राम

अफीम- 25 ग्राम                         2.5 किलो

कोडिन- 10 ग्राम                      1 किलो

एमडीएमए- 0.5 ग्राम                   10 ग्राम

एनडीपीएस अधिनियम के तहत सजा

कम मात्रा में दवा का सेवन करने पर एक साल की कैद या 10 हजार रुपये तक जुर्माना या दोनों हो सकता है। व्यक्ति को आसानी से जमानत मिल जाती है लेकिन कई बार पकड़े जाने पर जमानत मिलना मुश्किल हो जाता है। एनडीपीएस एक्ट के तहत व्यावसायिक मात्रा यानी खरीद-बिक्री के उद्देश्य से नशीला पदार्थ रखने पर 10 से 20 साल की कैद और एक से दो लाख रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। ऐसे में जमानत नहीं होती है। कम मात्रा और व्यावसायिक मात्रा के बीच में किसी के पास ड्रग्स रखने पर 10 साल तक की कैद या एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों दिया जा सकता है। ऐसे मामलों में जमानत मिलना या न मिलना पकड़े गए नशीले पदार्थों और पुलिस की धाराओं पर निर्भर करता है।

एनडीपीएस की धारा 27 और 27 ए

एनडीपीएस एक्ट की धारा 27 किसी भी नशीली दवा के सेवन से संबंधित है और इसे प्रतिबंधित किया गया है। 27 ए में इस प्रकार के अवैध व्यापार को प्रतिबंधित किया गया है और इसका वित्त पोषण करने वाले अपराधियों को कड़े दंड का प्रावधान किया गया है। इसमें 20 साल तक की सज़ा का प्रावधान है।

एनसीबी हिरासत में दिया बयान कोर्ट में मान्य?

2020 से पहले एडीपीएस की धारा 67 के तहत एनसीबी की हिरासत में दिया गया बयान अदालत में मान्य हुआ करता था। बाद में इसमें कुछ बदलाव देखने को मिला। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत एक मामले में आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोपों को यह देखते हुए खारिज किया कि मामला धारा 67 के तहत अधिकारियों को दिए गए अन्य आरोपियों के बयानों पर आधारित था, जो सबूत में अस्वीकार्य हैं। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि पिछले साल तोफान सिंह बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि एनडीपीएस अधिकारियों के सामने दिए गए इकबालिया बयान सबूत के तौर पर अस्वीकार्य हैं।

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