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न कुछ जोड़ा जाए न हीं कुछ छोड़ा जाए यह अनुवाद का मर्म है. - श्रीनारद मीडिया

न कुछ जोड़ा जाए न हीं कुछ छोड़ा जाए यह अनुवाद का मर्म है.

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अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस पर विशेष.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

किसी एक भाषा को खो देना बहुत बड़ा नुकसान होता है क्योंकि भाषा में केवल शब्दों का ही नहीं बल्कि संस्कृतियों का समावेशन होता है। किसी एक भाषा के लुप्त हो जाने से एक पूरी संस्कृति लुप्त हो जाती है। अनुवादक तथा दुभाषिए एक प्राकर के सांस्कृतिक दूत अर्थात कल्चरल एंबेसडर होते हैं। इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के अवसर पर अनुवाद को तथा अनुवाद विधा के महत्व को स्वीकारा है,

अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 24 मई, 2017 में प्रस्ताव 71/288 को पारित करके स्थापित किया था। देशों को निकट लाने, संवाद में सहायता करने तथा सहयोग के लिए अनुवाद की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, यह विश्व शांति तथा विकास में काफी योगदान देता है। बाइबिल के अनुवादक सेंट जेरोम के त्यौहार के कारण 30 सितम्बर को अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस चुना गया। सेंट जेरोम ने बाइबिल का अनुवाद किया था, उन्हें अनुवादकों का संरक्षक माना जाता है।

यूं तो भारतीय संविधान में सिर्फ 22 भाषा को मान्यता प्राप्त है, विभिन्न प्रांतों के अलग अलग क्षेत्र में ही भाषा और उनकी बोलियां बदल जाती है। एक आंकड़े के अनुसार ऐसी 121 भाषाएं देश में बोली और समझी जाती हैं। अपने मातृस्थल से कार्यस्थल पर जाने पर कई बार भाषाओं में अंतर आ जाता है। कार्यस्थल पर मातृभाषा नहीं चलती तो हमें अनुवाद की आवश्यकता होती है। हिंदी भाषी क्षेत्र में भी हिन्दी के कई प्रकार बोले जाते हैं। इनमें से एक प्रकार है खड़ी बोली। आम जन में यह रूप अत्यधिक प्रचलित है। इसमें कई देशी विदेशी शब्दों का समन्वय इस तरह हो जाता है जैसे ये शब्द हिन्दी के लिए ही बने है। आम बोलचाल में इनका इतना व्यापक प्रयोग किया जाता है कि कई बार उनके मूल हिन्दी शब्दों को हम चाह कर भी ढूंढ नहीं पाते या बड़ी कठिनाइ से प्राप्त होते हैं।

पहले अनुवाद को सिर्फ भाषायी गतिविधि समझा जाता था, लेकिन बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक से अनुवाद के क्षेत्र में एक प्रस्थान बिंदु आया है जिसमें अनुवाद को महज भाषाई गतिविधि न समझ कर सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय महत्व का कार्य समझा जाने लगा है। इसके प्रमुख कारण हैं-

  • पहला कारण यह है कि 21वीं शताब्दी अनुवाद की शताब्दी है इस युग में अनुवाद के बिना जीवन में कल्पना भी नहीं की जा सकती।
  • दूसरा कारण यह है कि अब गूगल, अमेजॉन, फ्लिपकार्ट, माइक्रोसॉफ्ट, अलीबाबा सहित विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियां सभी देशों को अपनी वस्तुओं और सेवाओं को बेचना चाहती है तथा उन्हें भाषाई अवरोधों को तोड़ते हैं व्यापार में आगे बढ़ना है। आज फ्लिपकार्ट, अमेजॉन, अलीबाबा, गो डैडी आदि प्रमुख कंपनियों की वेबसाइट का हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद होना इस बात का प्रमाण है कि अनुवाद का महत्व बढ़ रहा है।
  • तीसरा कारण यह है कि आज के वैश्वीकरण के दौर में सभी देश एक दूसरे पर काफी हद तक निर्भर हैं क्योंकि कोई भी देश अलग-थलग रहकर अपने नागरिकों को न तो अच्छी सुविधाएं प्रदान कर सकता है और न ही विकास कर सकता है। सभी साधन प्रदान के लिए किसी न किसी भाषा की आवश्यकता होती है। इसमें अनुवाद प्रमुख रूप में उभर कर सामने आता है।
  • चौथा कारण यह है कि विश्व के सभी देशों के नेताओं को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मंचों के कार्यक्रम में जाने के लिए अनुवादकों तथा दुभाषियों की आवश्यकता पड़ती है।सभी देश अपने यहां अनुवाद एवं निर्वचन को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं।

भारत में साहित्य अकादमी, नेशनल बुक ट्रस्ट, प्रकाशन विभाग, राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हिंदी ग्रंथ अकादमी, आदि भाषा अकादमियां तथा संस्थाएं लिखित अनुवाद के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका अदा कर रही हैं। इसी के साथ-साथ आई.आई.टी, सी. डैक, टीडीआईएल आदि संस्थाएं मशीन अनुवाद करने का काम कर रही है। साहित्य अकादेमी, नेशनल बुक ट्रस्ट जैसी कुछ संस्थाएं भारतीय भाषाओं से विदेशी भाषा तथा विदेशी भाषाओं से भारतीय भाषाओं में अनुवाद कार्य करने की परियोजनाएं चला रही हैं.

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