एक देश-एक चुनाव बिल संविधान की किसी विशेषता को प्रभावित नहीं करता

एक देश-एक चुनाव बिल संविधान की किसी विशेषता को प्रभावित नहीं करता

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अटार्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमणी ने मंगलवार को एक संसदीय समिति को बताया कि एक देश-एक चुनाव के विधेयक संविधान की किसी भी विशेषता को प्रभावित नहीं करते और कानून की दृष्टि से सही हैं।

प्रस्तावित कानूनों में किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं

सूत्रों ने बताया, संसद की संयुक्त समिति के समक्ष पेश हुए कुछ विधि विशेषज्ञों ने संविधान संशोधन विधेयक के कुछ पहलुओं पर कुछ सदस्यों की चिंताओं को साझा किया, लेकिन वेंकटरमणी ने कहा कि प्रस्तावित कानूनों में किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं है।

विपक्षी दलों ने विधेयकों की आलोचना करते हुए उन्हें संविधान का उल्लंघन करने वाला बताया है। हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और वर्तमान में दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपीलीय न्यायाधिकरण के अध्यक्ष डीएन पटेल ने अपने प्रस्तुतीकरण में ”एक देश-एक चुनाव” प्रस्ताव के सकारात्मक पहलुओं के साथ-साथ चुनौतियों पर भी चर्चा की।

यह अवधारणा राष्ट्र के लिए अच्छी है

उन्होंने कहा कि यह अवधारणा राष्ट्र के लिए अच्छी है, लेकिन किसी भी प्रस्तावित कानून में हमेशा सुधार किया जा सकता है। पटेल ने नीतिगत निरंतरता, दीर्घकालिक नीतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बेहतर शासन, राजनीतिक दलों के प्रदर्शन का बेहतर आकलन करने की स्थिति में लोगों का जानकारी के साथ मतदान और लागत में कमी को सकारात्मक पहलू बताया।हालांकि उन्होंने चुनौतियों में राज्य की स्वायत्तता पर संभावित प्रभाव के साथ संघवाद की चिंताओं व क्षेत्रीय मुद्दों पर राष्ट्रीय मुद्दों के हावी होने के जोखिम को शामिल किया। उन्होंने कहा कि राज्यों के चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ कराने के लिए कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह विचार मौजूदा विधेयकों का हिस्सा नहीं है।

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने किया सवाल

जब पटेल ने एक साथ चुनाव के वैश्विक चलन का उल्लेख किया तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने सवाल किया कि क्या स्वीडन और बेल्जियम जैसे देशों की तुलना भारत से की जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लाभों के बारे में सभी दावे ज्यादातर अनुमान हैं, क्योंकि कोई अध्ययन नहीं किया गया है।
लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनावों को साथ-साथ कराने पर विचार करने के लिए बनाई गई संयुक्त संसदीय समिति के कार्यकाल को विस्तार दे दिया गया है। अब संबंधित विधेयक पर समिति अपना प्रतिवेदन मानसून सत्र के अंतिम सप्ताह तक सौंप सकती है।लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भाजपा सांसद एवं पूर्व विधि राज्यमंत्री पीपी चौधरी के नेतृत्व में 39 सदस्यीय समिति का गठन किया है। इसके तहत देशभर में वर्ष 2029 तक एक साथ चुनाव कराने का रास्ता तैयार करने का सरकार का लक्ष्य है। सरकार का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से समय और संसाधन दोनों की बचत होगी।लोकसभा में मंगलवार को प्रश्नकाल के बाद संबंधित प्रस्ताव को पीपी चौधरी ने रखा, जिसे ध्वनिमत से पास कर दिया गया।

समिति को एक देश-एक चुनाव से जुड़े दो विधेयकों ‘संविधान (129वां संशोधन)’ एवं ‘संघ-राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन)’ पर विचार करना है। इनमें पहला संविधान संशोधन विधेयक है तथा दूसरा संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक है।

रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने तैयार किया है रिपोर्ट

इनका मकसद चुनावी प्रक्रिया में समय और संसाधनों की बर्बादी से बचाव करना है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर समिति ने इन दोनों प्रस्तावों को तैयार किया है। को¨वद समिति ने भी अपने प्रतिविदेन में एक राष्ट्र-एक चुनाव के सिद्धांत का समर्थन किया है।

विधेयक के पारित होने पर चुनावी प्रक्रिया में बड़े बदलाव हो सकते हैं। आजादी के बाद 1951 से 1967 तक लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ ही कराए जाते थे, लेकिन उसके बाद इसमें विचलन हो गया, जो अभी तक चला आ रहा है।

 

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