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डब्ल्यूएचओ के सहयोग से एक दिवसीय कालाजार प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन - श्रीनारद मीडिया

डब्ल्यूएचओ के सहयोग से एक दिवसीय कालाजार प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन

डब्ल्यूएचओ के सहयोग से एक दिवसीय कालाजार प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन

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कालाजार बीमारी के उपचार में व्यक्तिगत एवं सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण: सिविल सर्जन
ज़िले में फ़िलहाल 50 मरीज़ों की नियमित रूप से चल रही है दवा: डॉ जेपी सिंह
कालाजार को जड़ से मिटाने के लिए हम सभी को निष्ठावान बनकर कार्य करने की आवश्यकता: डब्ल्यूएचओ

श्रीनारद मीडिया, कटिहार, (बिहार):


कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम की सफलता में सामुदायिक स्तर पर कार्य करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों की भूमिका बहुत कारगर है। सामाजिक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाकर कालाजार सहित वेक्टर बॉर्न अन्य डिजीज के प्रति ग्रामीणों के बीच जागरूकता लाना जरूरी है। इसके लिए सदर अस्पताल के सभागार में डब्ल्यूएचओ के सहयोग से एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला सह समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया । कार्यशाला का उद्घाटन सिविल सर्जन डॉ जितेंद्र नाथ सिंह, एसीएमओ डॉ कनक रंजन, डीएमओ डॉ जेपी सिंह, डीपीएम डॉ किशलय कुमार, डीएमएंडई अखिलेश कुमार सिंह, डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ दिलीप कुमार एवं डॉ सुभान अली ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर डीसीएम अश्विनी मिश्रा एवं आरबीएसके के डीसी डॉ विवेक आर्या के अलावा ज़िले के सभी एमओआईसी, बीसीएम, केटीएस, जीएनएम एवं एएनएम सहित कई अन्य स्वास्थ्य कर्मी उपस्थित थे।

 

कालाजार बीमारी के उपचार में व्यक्तिगत एवं सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण: सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ जितेंद्र नाथ सिंह ने कहा कि कालाजार (काला-अजार) एक प्रकार से सामुदायिक स्तर की समस्या है और इसके उपचार में व्यक्तिगत और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य यही है कि समुदाय के बीच कार्य करने वाले स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी एवं स्वास्थ्य कर्मी सामुदायिक स्तर पर ग्रामीणों को कालाजार बीमारी के लक्षण, उससे बचने के उपाय के साथ ही सावधानी बरतने के लिए जागरूकता अभियान चलाएंगे। बरसात के दिनों में कुछ सावधानी बरतकर कालाजार जैसी बीमारी से बचाव किया जा सकता है। क्षेत्र में छिड़काव के लिए जाने वाली टीम का सहयोग कर प्रत्येक घर में छिड़काव कराने के लिए प्रेरित करें।

 

ज़िले में फ़िलहाल 50 मरीज़ों की नियमित रूप से चल रही है दवा: डॉ जेपी सिंह
प्रभारी जिला वेक्टर जनित रोग पदाधिकारी डॉ जय प्रकाश सिंह ने बताया कि जिले में वर्ष 2022 के जनवरी से दिसंबर तक तीनों प्रकार के कालाजार मरीजों की संख्या- 50 है। इसमें कालाजार में विसरल लिशमैनियासिस (वीएल) के 44, पोस्ट कालाजार डर्मल लिशमैनियासिस (पीकेडीएल) के 14, एचआईवी-वीएल के 2 मरीज़ों की शिनाख़्त हुई है। जबकि वर्ष 2021 में विसरल लिशमैनियासिस (वीएल) के 44, पोस्ट कालाजार डर्मल लिशमैनियासिस (पीकेडीएल) के 17, एचआईवी-वीएल के 3 मरीजों की पहचान की गई थी, जिसमें 2 मरीज़ों की मौत भी हुई थी। पूरे विश्व में लगभग 20 से अधिक कई प्रकार के लीशमैनिया परजीवी हैं जिसको फ़ैलाने में 90 प्रकार की सैंडफ्लाई कालाजार बीमारी का कारण बनते हैं। लोगों को यह बीमारी सैंडफ्लाइज़ के काटने से ही होती है जो खुद परजीवी से संक्रमित किसी दूसरे व्यक्ति का खून पीने वाले परजीवी हो जाते हैं।

 

कालाजार को जड़ से मिटाने के लिए हम सभी को निष्ठावान बनकर कार्य करने की आवश्यकता: डब्ल्यूएचओ
डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ दिलीप कुमार ने कहा कि कालाजार रोग की जांच एवं उपचार को लेकर जिला स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। कालाजार उन्मूलन के तहत शत-प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा राज्य स्तर पर विशेष रूप से सघन कार्य योजना- 2022 बनाया गया है। इसके तहत स्थानीय ज़िले के चिकित्सा पदाधिकारियों, जीएनएम एवं एएनएम को प्रशिक्षित किया जा रहा है। कालाजार को जड़ से मिटाने के लिए हम सभी को निष्ठावान बनकर कार्य करने के आवश्यकता है। ज़िले के कुछ ही प्रखंडों में कालाजार के मरीज शेष बचे हुए हैं, इसका भी सफाया हो जाएगा। उन्होंने बताया कि स्वास्थय कर्मियों द्वारा लोगों को मच्छरदानी का नियमित उपयोग करने एवं अपने घर के आसपास गड्ढों या नालों में बरसात या चापाकल के पानी को निकासी करने के लिए जागरूक करें ताकि कालाजार के मच्छरों की संख्या नहीं बढ़े।

 

कालाजार के मुख्य लक्षण:
-दो या दो सप्ताह से अधिक दिनों तक बुख़ार लगना।
-भूख न लगना।
-वजन कम होना।
-पैर, पेट, चेहरे और हाथ की त्वचा का रंग हल्का हो जाना।
-इस बीमारी में भूख न लगना, पीलापन और वजन घटने के कारण कमज़ोरी आती हैं।
-खून की कमी।
-अक्सर तिल्ली और क़भी-क़भी लीवर बढ़ जाने के कारण पेट फूल जाता हैं।
-अगर समय रहते इसका इलाज़ नहीं किया गया तो मरीज की जान जा सकती है। कालाजार को अक्सर लोग मलेरिया, टायफाइड या तपेदिक समझने की भूल कर बैठते हैं।

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