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लोक चेतना को नाटक के लेखन और मंचन की मूल प्रेरणा माना गया है-प्रो. रामचंद्र सिंह - श्रीनारद मीडिया

लोक चेतना को नाटक के लेखन और मंचन की मूल प्रेरणा माना गया है–प्रो. रामचंद्र सिंह

लोक चेतना को नाटक के लेखन और मंचन की मूल प्रेरणा माना गया है–प्रो. रामचंद्र सिंह

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चन्द्र टरै सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार, पै दृढ श्री हरिश्चन्द्र का टरै न सत्य विचार।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान नगर से सटे उत्तर दिशा में स्थित सदर प्रखंड के अमलोरी सरसर गांव में रामलीला समारोह का मंचन पिछले कई दिनों से हो रहा था। शनिवार को नाटक मंचन का विषय सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र रहा। कार्यक्रम का उद्घाटन सीवान के वरीय अधिवक्ता उत्तम सिंह एवं वीरेंद्र सिंह ने फीता काटकर किया, तत्पश्चात भगवान विष्णु की आरती गाई गई।

सत्यवादी हरिश्चंद्र नाटक का परिचय प्रस्तुत करते हुए गांव के प्रबुद्ध सज्जन ने बताया कि यह सतयुग की घटना है। जब सूर्यवंशी (इक्ष्वाकुवंशी, अर्कवंशी, रघुवंशी)  के राजा हरिश्चंद्र ने अपना सब कुछ स्वप्न में दान कर दिया, अपने को बेच दिया, पत्नी को नौकरानी बनने पर मजबूर होना पड़ा, श्मशान घाट पर काम करना पड़ा, ईश्वर उनकी धैर्य की परीक्षा लेना चाहते चाहते थे और अंततः सत्य की जीत हुई, राजा हरिश्चंद्र को पुनः सब कुछ प्राप्त हो गया।सुदूर गांव में आज भी नाटक का मंचन हो रहा है यह आपने आप में विशेष है।


ध्यातव्य हो कि सेवानिवृत्त प्रो. रामचंद्र सिंह ने कहा कि कई वर्षों से इस प्रकार के नाटक का मंचन होता आ रहा है, पिछले कुछ वर्षों से रामलीला मंचन के उपरांत कई ऐतिहासिक नाटकों का भी मंचन होता आ रहा है। इस बार सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र एवं बाजीराव पेशवा का मंचन सुनिश्चित किया गया है,क्योकि लोक चेतना को नाटक के लेखन और मंचन की मूल प्रेरणा माना गया है.

चन्द्र टरै सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार, पै दृढ श्री हरिश्चन्द्र का टरै न सत्य विचार।

यक्ष प्रश्न यह है कि सतयुग की घटना सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र का आज भी मंचन क्यों हो रहा है? इसका तात्पर्य यह है कि आज भी समाज में कहीं ना कहीं सत्य की पूजा होती है और ‘सत्यमेव जयते’ है।


नारद जी के सूचना उपरांत देवी देवताओं को भू-लोक पर इतने प्रतापी राजा को लेकर शंका तीव्र हो गई कि कहीं वह अपने प्रताप से इन्द्र की गद्दी न प्राप्त कर लें? क्या राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी हैं ? इसकी परीक्षा देवलोक लेना चाहते थे।दान के बाद दक्षिणा देने की परंपरा है यही कारण था कि सब कुछ दान करने के बाद दक्षिणा के रूप में मुनिराज ने हरिश्चंद्र को एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ दान करने को कहा। इसके लिए राजा हरिश्चंद्र को अपनी पत्नी और अपने आप तक को बेचना पड़ा।

इस नाटक के मंचन की मुख्य विशेषता यह है कि एक साथ तीन-तीन पीढ़ियां काम कर रही है जो वर्ष-दर-वर्ष अपने निरंतरता को बनाए रखे हुए है।

हरिश्चंद्र काशी नगरी क्यों आये?


राजा हरिश्चंद्र शिव भक्त होने के कारण अयोध्या से काशी नगरी आए। उनका मानना था कि काशी नगरी शंकर जी कि त्रिशूल पर स्थित है,अतः हमें वहां चलना चाहिए। यहां दान देने हेतु स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त होंगी।

इस नाटक में राजा हरिश्चंद्र की भूमिका डाॅ रविशंकर सिंह ने किया,वहीं संजय दुबे, नकुल सिंह, तरुण, अनूप सिंह, बैकुंठ सिंह ने नाटक के मंचन में भाग लेकर इसे जीवन्ता प्रदान की। देर रात तक चले नाटक में गांव के सैकड़ों बच्चे,महिलाएँ व पुरूष उपस्थित रहे।
अब सभी को हमेशा की तरह अगले वर्ष होने वाले मंचन की प्रतीक्षा रहेंगी।

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