रंगोली, दीप, पूजन-अर्चन ही दीपावली का मूल स्वरुप

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समय के साथ आई विकृतियों ने दीपावली त्योहार की पवित्रता पर डाला नकारात्मक असर

पटाखे आदि विकृतियों ने दीपावली को प्रदूषण से जोड़ा

बाजारवाद और उपभोक्तावादी संस्कृति का भी असर दीपावली पर

✍️ डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

सनातनी परंपराओं में प्रत्येक त्यौहार के मूल में प्रकृति के संरक्षण का संदेश समाहित रहता है। दीपावली का त्योहार मूल रूप से रंगोली, दीप प्रज्जवलन, भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के पूजन अर्चन के साथ ही जुड़ा रहा है। समय के साथ विकृति आई और पटाखे, जुएं जैसे तथ्य भी दीपावली के साथ जुड़े।

आज पटाखों से जनित प्रदूषण के आधार पर इस त्यौहार की गरिमा पर वैचारिक आघात कुछ खास विचारधारा द्वारा किया जाता रहता है जबकि शुद्ध रूप से दीपावली त्यौहार भरपूर आस्था, उमंग, उल्लास और संकल्प का त्योहार है। इस तथ्य को स्वयं समझे जाने और आगे आनेवाली पीढ़ी को समझाने की नितांत आवश्यकता है। बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा दीपावली के त्योहार एक उपभोक्तावादी आयाम से जोड़ा जा रहा है। उसे भी समझने की आवश्यकता है।

दीपावली, कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाने वाला एक प्रमुख सनातनी परंपरा का त्योहार है। यह त्योहार कला,आस्था और स्वाद से ही जुड़ा हुआ है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने घरों को दीपों, रंगोली, और फूलों से सजाते हैं और अपनी सृजनात्मकता को आधार देते हैं।

घरों में साफ सफाई के माध्यम से स्वच्छता का प्रसार करते हैं, जो आरोग्य के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस अवसर पर नए कपड़े पहने जाते हैं और मिठाई-उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है। इस दिन समृद्धि की दाता माता लक्ष्मी और विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा की जाती है। दीपावली, परिवारों को एक साथ लाती है और खुशियां फैलाती है। समाज में समरसता और सकारात्मकता का संचार करती है। यह त्योहार व्यापारियों के लिए भी महत्वपूर्ण दिन होता है। क्योंकि वे अपने व्यापार की समृद्धि की कामना करते हैं।

दीपावली के त्योहार पर स्वच्छता को विशेष महत्व दिया जाता है। त्योहार के काफी पहले से घरों की साफ सफाई होने लगती है। माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए घरों को फूलों और रंगोली से सजाया जाता है। दीपावली पर रंगोली से घर को सजाने की परंपरा का विशिष्ट महत्व होता है। हमारे वेदों में भी रंगोली का उल्लेख इस बात का परिचायक है कि रंगोली एक प्राचीन और पवित्र कला है, जो हमारी संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

रंगोली का निर्माण घर की पवित्रता और शुद्धता का पर्याय होता है। रंगोली देवताओं के स्वागत और सम्मान का प्रतीक भी होता है। रंगोली को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता रहा है। रंगोली निर्माण को आध्यात्मिक विकास का साधन भी माना जाता रहा है जो हमें आत्म साक्षात्कार और आत्मज्ञान की ओर ले जाता रहा है। रंगोली निर्माण को एकता, सामाजिकता का भी प्रतीक माना जाता है जो परिवार और समाज के बीच एकता को बढ़ावा देता है। रंगोली निर्माण की परंपरा हमारे सांस्कृतिक परंपरा को अनवरत भी बनाए रखती है। इसलिए हर सनातनी को दीपावली पर अपने घर आंगन में रंगोली अवश्य ही बनाना चाहिए।

दीप जलाना दीपावली का मुख्य आयाम है। दीप के महत्व को तकरीबन विश्व की हर संस्कृति में स्वीकार किया गया है। वैदिक ग्रंथों के मुताबिक दीप को प्रकाश का प्रतीक माना जाता है जो अज्ञानता और अंधकार को दूर करता है। दीप को ज्ञान का पर्याय भी माना जाता है क्योंकि यह हमें सही और गलत के बीच अंतर को समझने में मदद करता है। दीप शुभता का संदेश देता है जो हमें सकारात्मकता और आशा की ओर ले जाता है। दीप ध्यान और एकाग्रता का भी प्रतीक है जो हमें अपने लक्ष्यों की ओर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। दीप आत्मा का प्रतीक भी है जो हमें अपने अंदर के प्रकाश को पहचानने की शक्ति भी देता है। दीप सामाजिक एकता और समरसता तथा आत्म ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का भी अवलंबन होता है। इन्हीं सब कारणों से दीपावली में दीप प्रज्जवलन का विशेष महत्व होता है और घर घर पर सुंदर और मनोहारी दीपमालाएं सजाई जाती हैं।

 

दीपावली के अवसर पर भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है। सनातनी परंपरा में भगवान गणेश को बुद्धि और ज्ञान के देवता, विघ्नों को नाश करने वाले और सुख समृद्धि आत्मविश्वास के प्रदाता माना जाता रहा है। जबकि माता लक्ष्मी को धन, समृद्धि, सुख शांति को प्रदान करने वाली देवी माना जाता रहा है। सनातनी शास्त्रों के मुताबिक भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के संयुक्त पूजन का विशिष्ट महत्व होता है। इनके संयुक्त पूजन से जीवन में संपूर्णता की प्राप्ति होती है। समृद्धि और बुद्धि का सुंदर समन्वय ही जीवन को सार्थक बनाता है। इसी से जीवन में संतुलन भी आता है तथा भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। इसलिए दीपावली पर भगवान गणेश और माता लक्ष्मी का पूजन श्रद्धा भाव से होती रही है।

समय के साथ परंपराओं में विकृतियों का आना एक स्वाभाविक तथ्य रहा है। दीपावली के त्योहार में पटाखों का फोड़ना, जुएं का खेल और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा फैलाया जा रहा बाजारवाद और उपभोक्तावाद भी इसी तरह की विकृतियां रही हैं। पटाखों से जनित पर्यावरणीय चिंताओं को लेकर इस परम् पावन पवित्र त्योहार की गरिमा पर आघात किए जाते रहते हैं। जबकि तथ्य यह रहा है कि सनातनी परंपरा में प्रकृति और संस्कृति हमेशा से विशिष्ट आस्था के केंद्र रहे हैं। इस अवसर पर जुआं आदि खेलना भी सनातनी परंपरा के शाश्वत मूल्यों से मेल नहीं खाता है। वर्तमान समय में बहुराष्ट्रीय उपभोक्ता वस्तुओं से जुड़ी कंपनियों द्वारा इस त्योहार को व्यावसायिक लाभ के उद्देश्य से भी इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि दीपावली का त्योहार पारिवारिक स्नेह, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक समागम की त्रिवेणी बहाती है।

आवश्यकता यह है कि दीपावली त्यौहार के आस्थात्मक आयाम, श्रद्धात्मक पहलू और सांस्कृतिक सौंदर्य को महसूस करने का प्रयास किया जाए। इस त्योहार को पूर्ण उत्साह, शाश्वत पवित्रता, प्रखर उमंग और ऊर्जस्वित सांस्कृतिक उल्लास के संग मनाया जाय।

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