बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन को लेकर बवाल
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार में वोटर लिस्ट विशेष पुनरीक्षण को लेकर राजनीतिक घमासान मचा हुआ है। 9 जुलाई को विपक्षी पार्टियों ने इसे लेकर पटना में जोरदार प्रदर्शन भी किया। हालांकि, अब मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू हो गई है।
10 जुलाई को सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के वकील ने कोर्ट से कहा कि अभी तक सभी याचिकाओं की कॉपी नहीं मिली है, इसलिए पक्ष स्पष्ट रूप से रख पाना मुश्किल हो रहा है।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने क्या कहा?
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि वोटर लिस्ट रिवीजन का प्रावधान कानून में मौजूद है और यह प्रक्रिया संक्षिप्त रूप में या फिर पूरी लिस्ट को नए सिरे से तैयार करके भी हो सकती है।
उन्होंने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा, “अब इन्होंने एक नया शब्द गढ़ लिया है ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’। आयोग यह कह रहा है कि 2003 में भी ऐसा किया गया था, लेकिन तब मतदाताओं की संख्या काफी कम थी। अब बिहार में 7 करोड़ से ज्यादा वोटर हैं और पूरी प्रक्रिया को बहुत तेजी से अंजाम दिया जा रहा है।”
उनका कहना था कि चुनाव आयोग को यह अधिकार तो है, लेकिन प्रक्रिया कानून सम्मत, पारदर्शी और व्यावहारिक होनी चाहिए, खासकर तब जब करोड़ों मतदाता सूची में शामिल हों। शंकरनारायण ने कहा, “अब जब 7 करोड़ लोग मतदाता सूची में हैं, तो इतनी बड़ी प्रक्रिया को तेजी स और जल्दबाजी में अंजाम दिया जा रहा है, जो चिंता का विषय है।”
याचिकाकर्ताओं के वकील के सवाल
याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में यह भी सवाल उठाया कि चुनाव आयोग की ओर से वोटर लिस्ट में नाम शामिल करने के लिए 11 दस्तावेज स्वीकार किए जा रहे हैं, लेकिन आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे अहम पहचान पत्रों को मान्यता नहीं दी जा रही है।
उन्होंने कहा, “जब देशभर में पहचान के सबसे विश्वसनीय दस्तावेज के तौर पर आधार और वोटर आईडी को माना जाता है, तो उन्हें इस प्रक्रिया से बाहर रखना तर्कसंगत नहीं है। इससे पूरा सिस्टम मनमाना और भेदभावपूर्ण नजर आता है।”
कपिल सिब्बल ने भी दागे सवाल
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी सवाल पूछे हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के पास इसमें कोई शक्ति नहीं है। वे कौन होते हैं यह कहने वाले कि हम नागरिक हैं या नहीं।
उन्होंने कहा, “ये वे लोग हैं जो नागरिक के रूप में पंजीकृत नहीं है और कुछ ऐसे भी हैं जो पंजीकृत हैं और जिन्हें केवल धारा 3 के तहत ही हटाया जा सकता है। इसलिए यह पूरी प्रक्रिया चौंकाने वाली है।”
कपिल सिब्बल ने कहा कि वे कहते हैं कि अगर आप फॉर्म नहीं भरते हैं तो आप वोट नहीं दे सकते। इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? जिम्मेदारी उन पर है, मुझपर नहीं। उनके पास यह कहने के लिए सबूत तो होना चाहिए कि मैं नागरिक नहीं हूं।
सिब्बल के सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या यह देखना उनका अधिकार नहीं है कि योग्य वोट दें और अयोग्य वोट न दें। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि तो आप कह रहे हैं कि बड़ी संख्या में मतदाता मताधिकार से वंचित हो जाएंगे।
अभिषेक मनु सिंघवी के सवाल
सुप्रीम कोर्ट में एक और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी बात रखी और कहा कि यह नागरिकता का मामला है। उन्होंने कहा, “एक मतदाता के मताधिकार से वंचित होने से लोकतंत्र और बुनियादी ढांचे पर असर पड़ता है। इसलिए हम कर रहे हैं कि अब तक हुए सभी 10 चुनाव गलत चुनावी आंकड़ों पर आधारित थे।”
चुनाव आयोग पर SC की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में मान्यता न देने को लेकर चुनाव आयोग के फैसले पर सवाल उठाया है। आयोग के वकील ने जवाब देते हुए कहा कि सिर्फ आधार कार्ड से नागरिकता साबित नहीं होता।
इस पर कोर्ट ने कहा कि अगर वोटर लिस्ट में किसी शख्स का नाम सिर्फ देश की नागरिकता साबित होने के आधार पर शामिल करेंगे तो फिर ये बड़ी कसौटी होगी। यह गृह मंत्रालय का काम है, आप उसमें मत जाइए। उसकी अपनी एक न्यायिक प्रक्रिया है, फिर आपकी इस कवायद का कोई औचित्य नहीं रहेगा।
विपक्षी दलों के प्रमुख सवाल
चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि आरपी एक्ट में भी नागरिकता का प्रावधान है। इस पर कोर्ट ने कहा कि आपको अगर यह करना है तो फिर इतनी देरी क्यों की। यह चुनाव से ठीक पहले नहीं होना चाहिए।
विपक्षी दलों और ADR की ओर से दायर की गई याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था। इन याचिकाओं में 5 बड़े सवाल उठाए गए हैं। आइए जानते हैं, क्या-क्या हैं सवाल…
पांच बड़े सवाल
पहला सवाल:- संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन
- विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि चुनाव आयोग का यह फैसला जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल 1960 के नियम 21A के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का भी उल्लंघन है।
दूसरा सवाल:- नागरिकता, जन्म और निवास पर मनमानी
- एक्टिविस्ट अरशद अजमल और रूपेश कुमार की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि यह प्रक्रिया नागरिकता, जन्म और निवास से संबंधित असंगत दस्तावेजीकरण लागू करने की मनमानी है।ॉ
तीसरा सवाल:- लोकतांत्रिक सिद्धांत कमजोर करने वाला फैसला
- सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में चुनाव आयोग के वोटर वेरिफिकेशन के फैसले को लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करने वाला बताया गया है।
चौथा सवाल:- गरीबों पर असमान बोझ
- सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया गरीब, प्रवासी के साथ ही महिलाओं और हाशिए पर पड़े अन्य समूहों पर असमान बोझ डालने वाली है।
पांचवां सवाल:- गलत समय पर शुरू की गई प्रक्रिया
- राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की ओर से दायर की गई याचिका में आरोप लगाया गया है कि ये प्रक्रिया गलत टाइम पर शुरू की गई है। मनोज झा ने कहा कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में गलत समय पर शुरू की गई है, जिसकी वजह से करोड़ों वोटर मताधिकार से वंचित हो जाएंगे।
चुनाव आयोग का बयान
विपक्षी दलों द्वारा लगाए गए आरोपों को लेकर चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि जिन लोगों के नाम 1 जनवरी, 2003 को जारी की गई वोटर लिस्ट में हैं, उन्हें कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी।
चुनाव आयोग ने बताया कि वे सभी लोग संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत प्राथमिक तौर पर भारत के नागरिक माने जाएंगे। जिन लोगों के माता-पिता के नाम तब की मतदाता सूची में दर्ज है, उनको केवल अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान से संबंधित दस्तावेज देने होंगे।
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