Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
कोरोना महामारी में ग्रामीण इलाकों में तारणहार बनें ग्रामीण चिकित्सक - श्रीनारद मीडिया

कोरोना महामारी में ग्रामीण इलाकों में तारणहार बनें ग्रामीण चिकित्सक

कोरोना महामारी में ग्रामीण इलाकों में तारणहार बनें ग्रामीण चिकित्सक

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

?कोरोनाकाल में सिवान के सभी बड़े डॉक्टर हो गए थे नदारद

?जान हथेली पर रखकर झोलाछाप डॉक्टर कर रहे थे इलाज

श्रीनारद मीडिया, मनीष कुमार, सीवान (बिहार):

पूरे बिहार की तरह सीवान में भी जब कोरोना का ग्राफ बढ़ने लगा तब सीवान के एक दो चिकित्सकों को छोड़कर सभी चिकित्सक या तो भूमिगत हो गए थे या फिर कोरोनावायरस से संक्रमित हो गए थे।इसी बीच में शहर के 5-6 चिकित्सक कोरोना की चपेट में आकर असमय कोरोना के शिकार हो गए । इसको देखते हुए जो अन्य चिकित्सक थे वह सभी खुद को घर में ही क्वारंटाइन कर लिए । इसके बाद जब धीरे-धीरे संक्रमण बढ़ता चला गया और गांवों में अचानक बीमारों की भरमार लगने लगी तब लोगों को झोलाछाप डॉक्टर की याद आई। और यही झोलाछाप कहे जाने वाले डॉक्टर गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था को तंदुरुस्त करने में अपनी जान की बाजी लगा दिए। जब सभी बड़े चिकित्सक बीमार व्यक्ति को हाथ लगाने से परहेज कर रहे थे,तब यह चिकित्सक चंद पैसों की खातिर जिससे कि उनके परिजनों का भरण पोषण हो सके अपने जान की बाजी लगाकर बीमार लोगों की सेवा करते रहे। आज अगर सिवान के ग्रामीण इलाकों में कोरोना संक्रमण की संख्या कम दिख रही है तो इसमें सबसे बड़ा योगदान झोलाछाप कहे जाने वाले डॉक्टरों का ही है। हालाकी सरकार ने कभी भी इनके साथ न्याय नहीं किया। परंतु यही चिकित्सक तारणहार बन कर गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने में लगे रहे हम सभी लोगों को चाहिए कि इनका आदर करते हुए इन्हें उचित सम्मान दें और सरकार भी इन लोगों को स्वास्थ्य सेवा से जोड़कर बिहार की चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था को काबू में करें।
आज बिहार के ग्रामीण इलाक़ों में कोविड संक्रमण के फैलने से स्थिति गंभीर होती जा रही है।गावों में झोला छाप डॉक्टर्स ही लोगों के काम आ रहे हैं।ये लोग गाँवों में डॉक्टरों की कमी पूरी कर रहे हैं।पिछले काफ़ी लंबे वक़्त से इन्हें ‘झोला छाप डॉक्टर’ कह कर बुलाया जाता रहा है, क्योंकि इनके पास कोई मेडिकल डिग्री नहीं होती है।लेकिन ऐसे कई मेडिकल प्रैक्टिशनर्स पूरे राज्य के तमाम गाँवों में एलोपैथिक और आयुर्वेदिक दवाओं की मिली-जुली डोज़ से लोगों का ‘इलाज’ कर रहे हैं।

साल 2020 में बिहार सरकार ने इस तरह के लगभग 20 हज़ार झोला छाप डॉक्टरों को एनआईओएस (राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान) के साथ मिलकर ट्रेनिंग दिलवाई।इसके बाद इन्हें कम्युनिटी हेल्थ सर्टिफ़िकेट कोर्स पूरा करने का प्रमाणपत्र दिलवाया गया।सरकार ने ग्रामीण चिकित्सक का दर्जा देकर इन ‘झोला छाप’ डॉक्टरों को अपग्रेड कर दिया। गाँवों में बग़ैर मेडिकल डिग्री के लोगों का इलाज करने वालों को मीडिया झोलाछाप डॉक्टर ही कहता रहा है।अब इन मेडिकल प्रैक्टिशनर्स ने बिहार सरकार से कहा है कि उनकी तैनाती सहायकों के तौर पर की जाए ताकि ग्रामीण क्षेत्र में कोविड-19 के बढ़ते प्रकोप से निपटने में वे मदद कर सकें।

बिहार डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है।साल 2019 में बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने स्वीकार किया था कि राज्य में डॉक्टरों की 57 फ़ीसदी और नर्सों की 71 फ़ीसदी कमी है।इसके बावजूद राज्य में डॉक्टरों और नर्सों की नई भर्तियाँ नहीं हुई हैं। वर्ष 2019-20 में बिहार सरकार ने अपने दो लाख करोड़ रुपए (200,501.01 करोड़ रुपए) से अधिक के बजट का महज़ पाँच फ़ीसदी स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्च किया।बिहार के ग्रामीण इलाक़ों में टेस्टिंग किट तुरंत उपलब्ध नहीं हैं।बहुत सारे लोग कोरोना टेस्ट भी नहीं कराना चाहते।
इससे भी ख़तरनाक अफ़वाह यह उड़ी हुई है कि अगर अस्पताल में भर्ती हुए तो मर जाएँगे और परिवार के लोग उनका अंतिम संस्कार भी अपनी रीति से नहीं कर पाएँगे। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मुताबिक़ भारत में इस तरह के 10 लाख मेडिकल प्रैक्टिशनर हैं।एसोसिएशन इन्हें क्वैक्स यानी झोला छाप डॉक्टर कहता है।एसोसिएशन के सेक्रेटरी जनरल डॉक्टर केके अग्रवाल अपनी वेबसाइट पर ऐसे मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के ख़िलाफ़ लोगों को सतर्क करते रहते हैं।
देश के 80 फीसदी डॉक्टर शहरी इलाकों में ही हैं। बिहार के ग्रामीण इलाकों में 43,788 लोगों पर एक डॉक्टर का औसत है।गाँव-देहात कोरोना संक्रमण की पहली लहर से मोटे तौर पर अछूते रहे थे लेकिन दूसरी लहर ने ग्रामीण इलाक़ों में तबाही मचाई हुई है। बिहार में भी कोरोना संक्रमण की स्थिति काफ़ी ख़राब है और ज़िला अस्पताल मरीज़ों से भरे पड़े हैं।जैसे-जैसे मरीज़ों की संख्या बढ़ती जा रहा है हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर चरमराता जा रहा है।देश के शहरी इलाक़ों की तुलना में ग्रामीण इलाक़ों में स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत कम ख़र्च किया जाता है।ग्रामीण इलाक़ों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की 76 फ़ीसदी कमी है।
देश के 80 फ़ीसदी डॉक्टर शहरी इलाक़ों में ही हैं. बिहार के ग्रामीण इलाक़ों में 43,788 लोगों पर एक डॉक्टर का औसत है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के मुताबिक़ हर 1000 लोगों पर एक डॉक्टर का औसत होना चाहिए।ग्रामीण इलाक़ों में मीलों की दूरी पर अस्पताल होते हैं और यहाँ तक पहुँचने के लिए यातायात सुविधाओं का बुरा हाल रहता है। चूंकि ग्रामीण इलाक़ों में टेस्टिंग कम हो रही है।इसलिए कोरोना से होने वाली मौतों का सही आँकड़ा शायद ही सामने आए।डॉक्टरों के मुताबिक़ कोरोना संक्रमण और मौतों का वास्तविक आँकड़ा सरकारी आँकड़ों से दस गुना या इससे भी अधिक हो सकता है। कई गाँवों में तो लोगों को कोरोना संक्रमण का टेस्ट कराने के लिए भी ब्लॉक लेवल पर बने प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों पर जाना पड़ता है,बहुत सारे लोगों को टेस्टिंग के बारे में ज़्यादा मालूम भी नहीं है।इसलिए भी टेस्टिंग कम हो रही है।
पिछले साल सिवान के सिविल सर्जन डॉक्टर अशेष कुमार राज्य के स्वास्थ्य विभाग से निलंबित कर दिए गए थे।दरअसल, उन्होंने जिले के चिकित्सा अधिकारियों से झोलाछाप कहे जाने वाले डॉक्टरों की एक लिस्ट तैयार करने को कहा था कि ताकि कोरोना से लड़ने में उनकी मदद ली जा सके। जब इस पर हंगामा हुआ तो डॉक्टर अशेष कुमार निलंबित कर दिए गए।इस साल मई की शुरुआत में शिवहर के ज़िलाधिकारी सज्जन राजशेखर ने 55 ग्रामीण चिकित्सकों को ट्रेनिंग दिलाने की पहल की।ये ग्रामीण चिकित्सक गाँवों में जाकर लोगों को कोरोना का टीका लगवाने के लिए प्रेरित करेंगे।ऐसे स्वास्थकर्मियों की तैनाती करने वाला शिवहर बिहार का पहला राज्य बन गया है।
ग्रामीण चिकित्सक एसोसिएशन के अध्यक्ष अंशु तिवारी ने सरकार से कहा है कि ग्रामीण चिकित्सकों को ऑक्सीमीटर मुहैया कराए जाएं।ग्रामीण चिकित्सक एसोसिएशन के अध्यक्ष अंशु तिवारी के मुताबिक़ इस वक़्त बिहार के 38 ज़िलों मे 20 हजार प्रशिक्षित ग्रामीण चिकित्सक हैं.एसोसिएशन ने 15 अप्रैल को बिहार के उप-मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख कर प्रशिक्षित सामुदायिक स्वास्थ्यकर्मियों की सेवा मुहैया कराने का प्रस्ताव रखा था ताकि कोरोना की दूसरी लहर को क़ाबू किया जा सके।इस पत्र में सुझाव दिया गया है कि इन्हें सहायक के तौर पर एंबुलेंस सेवाओं और कोरोना वैक्सीनेशन में जागरूकता फैलाने के काम में लगाया जा सकता है।
इन ग्रामीण चिकित्सकों को अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर असिस्टेंट के तौर पर तैनात किया जा सकता है। सरकार कोविड को देखते हुए इन्हें प्रशिक्षित कर ग्रामीण जनता की सेवा का मौका दे सकती है। इस माहौल में आशा वर्कर भी काम नहीं कर पा रही हैं लेकिन गाँवों में लोगों का इलाज करने वाले ये स्वास्थ्यकर्मी जान जोखिम में डाल कर काम करने को तैयार हैं।
‘झोलाछाप स्वास्थ्यकर्मी वे हैं, जिन्होंने डॉक्टरों के साथ समय बिताया है।इनके पास हमेशा कुछ दवाइयाँ होती हैं और ये शुरुआती इलाज या फ़र्स्ट-एड दे सकते हैं। अगर ग्रामीण चिकित्सकों को काम पर लगाया जाता तो कोरोना संक्रमण से स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ा बोझ हल्का हो जाता।’
झोलाछाप डॉक्टर सवाल कर रहे हैं कि अगर सरकार हमारी सेवा नहीं लेना चाहती तो ट्रेनिंग क्यों दी गई।ट्रेनिंग के बावजूद झोला छाप डॉक्टर कहे जाने वाले हम जैसे लोगों को न तो कोई फ़ंड मिलता है और न ही नौकरी। इस महामारी के दौर में लोगों की वो सेवा करना चाहते हैं।वो मानवीय आधार पर गाँव के लोगों की सेवा के लिए तैयार हैं।’सिवान ज़िले में रहने वाले डॉक्टर पी के ओझा कहते हैं कि कोरोना से हालात बेक़ाबू होते जा रहे हैं।इसका मुक़ाबला करने एक तरीक़ा तो यह है कि गाँवों में काम करने वाले इन मेडिकल प्रैक्टिशनर्स को ट्रेनिंग दी जाए और फिर कोरोना के बढ़ते मामलों के ख़िलाफ़ पहली रक्षा पंक्ति के तौर पर खड़ा किया जाए।

यह भी पढ़े

*बुनकारों की मदद के लिए ‘स्वागतम् काशी’ आगे आई*

*वाराणसी में थाने से कुछ दूरी पर चल रहा था देह व्यापार का धंधा*

Raghunathpur:खुंझवा मोड़ के समीप सड़क दुर्घटना में एक मजदूर को आई गम्भीर चोट,सीवान रेफर

Raghunathpur प्रशिक्षु डीएसपी ने राजपुर  दलित बस्ती में कूड़े में छुपाकर रखी गई देशी शराब किया बरामद (

*नाबालि‍ग बेटी से अश्‍लील हरकत करने का आरोपी गि‍रफ्तार, पत्‍नी ने दर्ज कराया मुकदमा*

Leave a Reply

error: Content is protected !!