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विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे विज्ञानी सत्येंद्र नाथ बोस,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे विज्ञानी सत्येंद्र नाथ बोस,कैसे?

विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे विज्ञानी सत्येंद्र नाथ बोस,कैसे?

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सत्येंद्र नाथ बोस के आइंस्टीन भी थे प्रशंसक.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कुछ वर्ष पहले जब ‘हिग्स बोसोन’ यानी ‘गाड पार्टिकल’ की खोज की गई थी, तो भारतीय विज्ञानी सत्येंद्र नाथ बोस की खूब चर्चा हुई थी। ‘हिग्स बोसोन’ में ‘हिग्स’ ब्रिटिश विज्ञानी पीटर हिग्स के नाम पर है, जबकि ‘बोसोन’ भारतीय विज्ञानी सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर है। सत्येंद्र नाथ बोस भौतिक विज्ञानी के साथ गणितज्ञ भी थे।

क्वांटम फिजिक्स के क्षेत्र में कार्यों के लिए दुनिया उन्हें जानती है। वे बोस-आइंस्टीन स्टेटिस्टिक और बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट सिद्धांत के लिए भी जाने जाते हैं। भौतिक विज्ञान में दो प्रकार के सब-एटामिक पार्टिकल्स माने जाते हैं- बोसोन और फर्मियान। इनमें बोसोन सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर ही है। भौतिकी के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए विज्ञानी पाल डिरक ने ‘बोसोन पार्टिकल’ का नाम उन पर रखा था। बोस की खोज ने क्वांटम फिजिक्स को नई दिशा प्रदान की।

विलक्षण प्रतिभा के धनी: बोस पढ़ाई के मामले में बचपन से ही अव्वल थे। उनका जन्म एक जनवरी, 1894 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। बोस के बारे में कहा जाता है कि वे अपनी सभी परीक्षाओं में सर्वाधिक अंकों से उत्तीर्ण होते रहे। स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने कलकत्ता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कालेज में दाखिला लिया। वर्ष 1915 में एमएससी परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर उसी कालेज से फिजिक्स के प्राध्यापक के तौर पर जुड़ गए। 1921 में वे नई स्थापित ढाका यूनिवर्सिटी में भौतिकी विभाग में रीडर के तौर पर कार्य करने लगे।

भौतिकी में योगदान: जब ढाका यूनिवर्सिटी में विकिरण और पराबैंगनी के सिद्धांत पर वे छात्रों को पढ़ा रहे थे, तो उन्होंने बताया कि समकालीन सिद्धांत पर्याप्त नहीं है, क्योंकि परिणाम सिद्धांत के हिसाब से नहीं आते हैं। उन्होंने बताया कि मैक्सवेल-बोल्ट्जमैन डिस्ट्रीब्यूशन सही नहीं है। फिर उन्होंने शोधपत्र ‘प्लैंक ला एंड लाइट क्वांटम हाइपोथेसिस’ एक ब्रिटिश पत्रिका को भेजा।

हालांकि उनका पेपर अस्वीकृत हो गया, पर उन्होंने हार नहीं मानी। फिर उन्होंने अल्बर्ट आइंस्टीन को वह पेपर भेजने का फैसला किया। आइंस्टीन उनके इस पेपर से बहुत प्रभावित हुए और जर्मन भाषा में अनुवाद कराने के बाद उसे जर्मन साइंस जर्नल में छपने के लिए भेज दिया। इससे मिली पहचान के आधार पर सत्येंद्र नाथ बोस को यूरोप के साइंस लैब में काम करने का मौका मिला और वे दुनिया की नजर में आ गए।

इस शोधपत्र ने क्वांटम फिजिक्स में ‘बोस-आइंस्टीन स्टेटिस्टिक’ की बुनियाद रखी। इसके बाद उन्होंने यूरोपीय प्रयोगशाला में दो वर्ष तक कार्य किया। इस दौरान उन्हें लुई डी ब्रोगली, मैरी क्यूरी और आइंस्टीन के साथ कार्य करने का अवसर मिला।

वापस लौटे ढाका : बोस 1926 में वापस ढाका लौट आए। ढाका यूनिवर्सिटी में अध्यापन के दौरान उन्होंने कई विषयों पर लेख लिखे। 1945 में कलकत्ता विश्वविद्यालय लौट आए। फिर 1956 में यहां से सेवानिवृत्त होकर शांतिनिकेतन चले गए। हालांकि शांतिनिकेतन में ज्यादा दिन नहीं रुक पाए और 1958 में उन्हें वापस कलकत्ता लौटना पड़ा।

उसी वर्ष उन्हें रायल सोसायटी का फेलो चुना गया और वे राष्ट्रीय प्रोफेसर भी नियुक्त किए गए। सैद्धांतिक भौतिकी के अलावा, उन्होंने परमाणु भौतिकी, जैव प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में भी कार्य किए। वे बांग्ला, संस्कृत व अंग्रेजी के अलावा फ्रेंच, जर्मन जैसी भाषाओं के भी जानकार थे। विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने बंगीय विज्ञान परिषद की स्थापना भी की थी। चार फरवरी, 1974 को कलकत्ता में उनका निधन हो गया था।

नोबेल से रह गए वंचित : भारत सरकार ने वर्ष 1954 में बोस को देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। उनका नाम नोबेल पुरस्कार के लिए 1956 में के. बनर्जी, 1959 में डीएस कोठारी, 1962 में एसएन बागची और 1962 में एके दत्ता द्वारा नामांकित कराया गया, लेकिन नोबेल समिति के विशेषज्ञ आस्कर क्लेन ने अपने मूल्यांकन में कहा कि उनका कार्य नोबेल पुरस्कार के योग्य नहीं है।

दिलचस्प तथ्य यह जानना है कि बोस को भले ही नोबेल न मिला हो, पर उनकी थ्योरी बोसोन, बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी और बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट्स की अवधारणाओं पर शोध के लिए अब तक सात नोबेल पुरस्कार प्रदान किए जा चुके हैं।

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