स्वतंत्रता संग्राम के अविस्मरणीय सेनानी सुभाष चंद्र बोस ।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ब्रिटिश साम्राज्यवाद के शिकंजे से देश की मुक्ति के नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बहुविध प्रयत्नों को 16 जनवरी, 1941 से पहले के प्रयत्नों को पहले और उसके बाद के प्रयत्नों को दूसरे हिस्से में रखा जा सकता है. सोलह जनवरी वह तारीख है, जब अपनी नजरबंदी के दौरान वेेश बदलकर गोरी सत्ता को छकाते हुए वे देश की सीमा के पार गये और सशस्त्र मुक्ति संघर्ष के लिए आजाद हिंद सेना गठित की. सर्वोच्च कमांडर की हैसियत से 21 अक्टूबर, 1943 को उन्होंने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी, तो दुनिया ने उसे चमत्कृत होकर देखा था. ‘

जय हिंद’, ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ जैसे जोशीले नारों के साथ आजाद हिंद सेना कई भारतीय क्षेत्रों को मुक्त कराते हुए अप्रैल, 1944 में कोहिमा आयी, उसे विकट मुकाबले का सामना करना पड़ा. नेताजी ने हौसला नहीं खोया और मुक्ति युद्ध के नये प्रयत्नों में लग गये. छह जुलाई, 1944 को रंगून रेडियो से एक प्रसारण में उन्होंने निर्णायक युद्ध में विजय के लिए महात्मा गांधी का आशीर्वाद मांगा. यह और बात है कि नियति ने उनकी जुगत को मंजिल तक नहीं पहुंचने दिया.

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