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साहित्य का मूल कार्य संवेदना को जागृत करना होता है- प्रो. सतीश कुमार राय - श्रीनारद मीडिया

साहित्य का मूल कार्य संवेदना को जागृत करना होता है- प्रो. सतीश कुमार राय

साहित्य का मूल कार्य संवेदना को जागृत करना होता है- प्रो. सतीश कुमार राय

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बिहार विश्वविद्यालय अपने ओजपूर्ण व्याख्यनों के लिए प्रसिद्ध है-डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी के हिंदी विभाग द्वारा गांधी भवन परिसर के नारायणी कक्ष में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर से पधारे हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. सतीश कुमार राय का विशेष व्याख्यान “उत्तर बिहार का हिंदी साहित्य”बुधवार को आयोजित हुआ।

कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने मुख्य अतिथि व अपने गुरु प्रो. सतीश कुमार राय को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया वहीं सहायक आचार्य डॉ. गरिमा तिवारी ने पुष्प-गुच्छ प्रदान कर सम्मान प्रगट किया।

अपने सारगर्भित उद्बोधन में प्रो. सतीश कुमार राय ने कहा कि एक सफल शिक्षक वह होता है जो अपने शिष्यों को अपने से आगे निकलना देखना चाहता है. मेरी अध्ययन-अध्यापन की यात्रा चार दशकों की है। मैं इससे बहुत कुछ सीखा हूं और आज भी सीख रहा हूं। जो आज जो कुछ भी हूं अपने गुरुओं का निर्माण हूं। मैं आज भी एक छात्र बनकर सीख ही रहा हूं। साहित्य के क्षेत्र में बिहार की अलग पहचान है यह साधना- सिद्धि का केंद्र रहा है। यहाँ का सिद्ध साहित्य परिवर्तन का साहित्य है। सरहपा अपने समय के आडंबर पर प्रहार किए थे, इसी क्षेत्र में वाल्मीकि ऋषि का आश्रम है यह भारतीय कविता का उद्गम क्षेत्र है। बिहार ने हिंदी साहित्य में निर्वहन किया है। इसी क्षेत्र के पंडित चंद्रशेखर मिश्र का उल्लेख रामचंद्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक में किया है। भारतेन्दु युग के सहित्य चंपारण की अहम भूमिका रही है।


गंगा-जमुनी संस्कृति के विकास में चंपारण का विशेष योगदान है। छायावाद का जन्म तो उत्तर प्रदेश में हुआ लेकिन उत्तर छायावाद का विकास बिहार में हुआ। रामधारी सिंह दिनकर, गोपाल सिंह नेपाली, आरसी प्रसाद जैसे सरीखे बिहार के साहित्यकारों ने साहित्य को एक नई ऊंचाई प्रदान की है जिससे राष्ट्रीय चेतना के विकास में योगदान परलक्षित होता है। चीन युद्ध के समय रामधारी सिंह दिनकर व गोपाल सिंह नेपाली की लिखी गई कविताएं अपने आप में अनूठी रही। आलोचना के विकास में नलिन विलोचन शर्मा ने अद्भुत कार्य किया है। आंचलिकता के बीज देहाती दुनिया, अविरल आंसू में मिलते हैं लेकिन इस आंचलिकता को रेणु और बाबा नागार्जुन ने आगे बढ़ाया है। बाबा नागार्जुन ने अपने गद्य-पद्य को हिंदी,बंगला और संस्कृत में भी लिखा है ये सब बिहार की थाती हैं।

लोक से अनुमोदित हुए बिना साहित्य का कोई अस्तित्व नहीं होता। 1873 में बिहार का पहला समाचार पत्र ‘बिहार बंधु’ निकलता था, जिसमें उपन्यास धारावाहिक के रूप में छपा करते थे। ‘चंपारण हितकारी’ 1884 में चंपारण का पहला समाचार पत्र निकला। सत्यनाथ झा बेतिया के रहने वाले इसके संपादक थे। पंकज सिंह ने पांचवा सप्तक निकालने की बात की थी, जिसमें चंपारण के दो प्रमुख कवि रनिकेश मिश्र और हरेंद्र हिमकर थे लेकिन यह सप्तक नहीं निकला।


जानकी वल्लभ शास्त्री मुजफ्फरपुर आए और यहीं के होकर रह गए। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रामधारी सिंह दिनकर ने ‘रश्मिरथी’ की रचना मुजफ्फरपुर में ही रहकर की थी। आज कविता के क्षेत्र में अनामिका, मदन कश्यप, निलय उपाध्याय, कथा साहित्य के क्षेत्र में अनामिका, वंदना, निलाक्षी सिंह, कविता, गीताश्री,उषा किरण खान का विशेष योगदान है,वहीं उषा किरण खान की उपन्यास ‘भामती’ अपने आप में अनूठी रचना है। हरिमोहन ठाकुर व्यंग्य के क्षेत्र में बड़ा नाम है। इसलिए कहा जा सकता है कि बिहार का साहित्य जागृत साहित्य है। उत्तर प्रदेश के बाद कबीर मठ बिहार में सबसे अधिक रहे हैं।

रामवृक्ष बेनीपुरी ने प्रेमचंद जी के बारे में लिखा था कि “प्रेमचंद जी आधुनिक भारत के वेदव्यास हैं” यह कितनी बड़ी बात है, क्योंकि भारत को समझना है तो प्रेमचंद को पढना होगा। रचनाकार आत्म-संघर्ष करता है, साहित्य हमारे सपनों का ही पर्याय है, साहित्य का काम है मनुष्य के रूप में व्यवहार करना। साहित्य किसी समाज को जीवन देता है। साहित्य जीवन की गहराइयों का साक्षात्कार है। साहित्य किसी देश,समाज को जीवन देता है वह हमारे जिजीविषा का भी विकास करता है। लेकिन हम व्यक्तिवादी होते जा रहे हैं हम संघ से व्यक्तिवाद की ओर अग्रसर हो रहे हैं, मनुष्यता घटती जा रही है, साहित्य व्यक्तिवाद से संघ की ओर ले जाता है और कहता है ‘हम पहले मनुष्य बने’।


अपने गुरुवर व मुख्य अतिथि प्रो. सतीश कुमार राय का स्वागत करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव भावुक हो गये। उन्होंने कहा कि बिहार विश्वविद्यालय अपने ओजपूर्ण व्याख्यनों के लिए प्रसिद्ध है। सर ने मुझे हिंदी का दर्शन कराया है, मैं सर के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करता हूं, मैं सर का स्वागत करता हूं, अभिनंदन करता हूं और मैं आभारी हूं कि आप यहां आए। विभागाध्यक्ष ने सर से साथ अपने कई स्मरणों को याद किया।

कार्यक्रम की शुरुआत हिंदी साहित्य सभा के अध्यक्ष व शोधार्थी मनीष कुमार भारती ने किया जबकि मुख्य अतिथि का परिचय शोधार्थी सुप्रिया तिवारी ने प्रस्तुत किया वहीं धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. गोविंद कुमार वर्मा ने किया।
इस मौके पर अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. विमलेश कुमार सिंह,हिंदी विभाग की सहायक आचार्य डॉ. गरिमा तिवारी, डॉ. आशा मीणा, डॉ अणिमा, डॉ. विनय कुमार सिंह सहित कई छात्र व शोधार्थी उपस्थित रहे।

 

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