कोने-कोने से आ रहे चैंपियंस की चमक बढ़ी.

कोने-कोने से आ रहे चैंपियंस की चमक बढ़ी.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हमारे विविधतापूर्ण देश के हर राज्‍य की खास और अलग पहचान है। यही बात खेलों के मामले में भी लागू होती है। उत्तर-पूर्वी राज्यों में अगर बाक्सिंग, वेटलिफ्टिंग के प्रति रुझान बढ़ा है, तो पंजाब एवं हरियाणा में हाकी, एथलेटिक्स, कुश्ती को लेकर विशेष रुचि देखी जा रही है। उत्तर प्रदेश का मेरठ तो क्रिकेट के बाद अब निशानेबाजी के लिए भी मशहूर हो गया है। वहीं, झारखंड में तीरंदाजी की लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ रही है। ओडिशा, असम, बेंगलुरु, मणिपुर, त्रिपुरा, नागपुर, गुजरात, तमिलनाडु भी पीछे नहीं हैं। यहां हाकी, साइक्लिंग, बाक्सिंग, वेटलिफ्टिंग, बैडमिंटन, शतरंज आदि खेलों में काफी रुझान देखा जा रहा है।

लंदन ओलिंपिक्स में जब मेरी काम ने पहली बार कांस्य पदक जीता, तो वह पूरे देश के युवाओं के लिए एक रोल माडल बन गईं। उत्तर-पूर्वी राज्यों में तो जैसे एक क्रांति-सी आ गई। सुदूर गांवों के बच्चे-बच्चियां तक उन जैसा बनने का सपना सजोने लगीं। हाल ही में टोक्यो ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली मीरा बाई चानू हों या कांस्य पदक विजेता लवलीना, दोनों की प्रेरणा मेरी काम ही रही हैं।

यही कारण है कि आज अभिभावक अपने बच्चों को खेलों में जाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। बच्चे-किशोर भी वेटलिफ्टिंग, बाक्सिंग, जिम्‍नास्टिक, हाकी, फुटबाल जैसे खेलों में कड़ी मेहनत कर आगे बढ़ रहे हैं। हाकी खिलाड़ी लालरेमसिआमी ने बचपन में ही फैसला कर लिया था कि वह खेल में ही अपना भविष्य बनाएंगी। उनके अभिभावकों ने भी उन्हें पूरा सहयोग दिया। करीब ११ वर्ष की आयु में उन्होंने मिजोरम सरकार द्वारा संचालित हाकी एकेडमी (थेंजाउल) में प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। बताती हैं लालरेमसिआमी, ‘मैं रानी दी (रानी रामपाल) को टीवी पर हाकी खेलते देखा करती थी। कभी यह सोचा नहीं था कि उनके साथ खेलने का मौका मिलेगा। लेकिन उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला।

यहां तक कि हिंदी बोलना भी। मुझे अंग्रेजी या हिंदी दोनों ही नहीं आती थी। उनके अलावा, सीनियर टीम की अन्य खिलाड़ियों को देखकर मैंने अपने खेल में हर संभव सुधार लाने की कोशिश की है। ओलिंपिक का अनुभव भी शानदार रहा है।‘ टोक्यो ओलिंपिक में हाकी टीम की सदस्य रहीं लालरेमसिआमी को राज्य सरकार ने मिजोरम स्पोर्ट्स एवं यूथ सर्विस डिपार्टमेंट में चीफ कोच के रूप में नियुक्त किया है।

jagran

मेरठ से उभरते युवा निशानेबाज: निशानेबाजी में मो. असब, रवि कुमार, मो.रिजवी जैसे दर्जनों शूटर्स ने अंतरराष्ट्रीय फलक पर देश का नाम रोशन किया है। नयी पीढ़ी में सबसे कम आयु के सौरभ चौधरी उभरती सनसनी बने, जिन्होंने चार साल के अंतरराष्ट्रीय शूटिंग अनुभव में ही वाको से टोक्यो तक का सफर तय कर लिया है। वर्ष 2017 में एशियाई चैंपियनशिप वाको में स्वर्ण पदक जीतने के बाद वर्ष 2021 में टोक्यो ओलिंपिक तक के सफर में सौरभ ने अंतरराष्ट्रीय फलक पर अब तक 14 स्वर्ण, पांच रजत और दो कांस्य पदक जीते हैं।

इनमें वर्ष 2019-20 के दौरान लगातार पांच आइएसएसए शूटिंग वर्ल्ड कप में स्वर्ण पदक जीतने का रिकार्ड भी है। मेरठ के कलीना गांव में किसान दंपत्ति जगमोहन और बृजेश के घर 12 मई, 2002 को जन्मे सौरभ चौधरी ने पहली बार वर्ष 2012 में खिलाड़ियों को शूटिंग करते देखा। पहली नजर में ही पहली पसंद और आकर्षण बन गई। सीखना शुरू किया और प्रदर्शन निखरने लगा। बड़े भाई निखिल के सहयोग और कोच अमित शेवरान के मार्गदर्शन में लगातार निखरते सौरभ के प्रदर्शन को और धार देने के लिए परिवार ने कर्ज लेकर गन दिलाई।

उसके बाद सौरभ ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। टोक्यो ओलिंपिक गेम्स में भी सौरभ से पदक की उम्मीद थी,लेकिन किसी कारण वह टाप-10 में स्थान बनाने में ही सफल रहे। आज वह युवा पीढ़ी के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं। तभी तो अभिभावकों के साथ नयी पीढ़ी के उभरते निशानेबाजों में भी शूटिंग के प्रति रुझान बढ़ रहा है। मेरठ शहर में दर्जन भर शूटिंग एकेडमी खुल चुकी हैं। विशेष तौर पर स्कूलों ने शूटिंग को स्पोर्ट्स के तौर पर अपनाया है और बच्चों के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर शूटिंग टारगेट तैयार कराए हैं। सौरभ सहित मेरठ के निशानेबाजों की उपलब्धियों का ही असर है कि अब उत्‍तर प्रदेश सरकार मेरठ के कैलाश प्रकाश स्पोर्ट्स स्टेडियम में दिल्ली के डा. कर्णी सिंह शूटिंग रेज की तर्ज पर अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं से सुसज्जित शूटिंग रेंज बनवा रही है।

jagran

हाकी में चमकीं ग्वालियर की महिला खिलाड़ी: टोक्यो ओलिंपिक में भारतीय महिला हाकी टीम ने पहली बार सेमीफाइनल का सफर तय कर महिला खिलाड़ियों के लिए भविष्य की संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। इसका परिणाम यह है कि मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थापित मप्र राज्य महिला हाकी अकादमी ने एक बार फिर इतिहास बनाने के लिए कमर कस ली है। इस बार नजर 2024 के पेरिस और 2028 के लास एंजिल्‍स ओलिंपिक गेम्स पर है।

अकादमी के मुख्य प्रशिक्षक परमजीत सिंह बरार ने बताया कि इस बार चयन ट्रायल में 12 से 16 वर्ष तक की उम्र के खिलाड़ियों पर चयन समिति की नजरें रहेंगी। इन खिलाड़ियों का खेल निखारने के लिए सात साल का समय मिल जाएगा। इसी तरह, बीते साल जहां खिलाड़ियों के लिए 59 सीटें थीं, अब यह संख्या बढ़ाकर 100 के पार किए जाने की उम्‍मीद है। अकादमी में खिलाड़ियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हास्टल भी दो होंगे।

अभी हमारे पास चार ऐसे जूनियर खिलाड़ी हैं, जिनकी लगन देखकर कहा जा सकता है कि वे 2024 पेरिस ओलिंपिक में भारतीय टीम का हिस्सा होंगे। 15 साल के इतिहास में अकादमी देश को आठ ओलिंपियन दे चुकी है जिनमें सुशीला चानू, मोनिका मलिक और रीना खोकर हाल ही में टोक्यो ओलिंपिक में खेल भी चुकी हैं। साल 2018 में खेले गए यूथ ओलिंपिक में महिला हाकी अकादमी की इशिका चौधरी और बिछू देवी ने भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया था। तब भारत ने महिला हाकी में पहली बार सिल्वर मेडल जीता था।

पटियाला में बढ़ा हाकी का क्रेज: ओलिंपिक में पुरुष और महिला हाकी टीम के शानदार प्रदर्शन के बाद देश में हाकी का क्रेज फिर से लौटना शुरू हो गया है। इसी के तहत बच्चों के साथ उनके माता-पिता भी इस खेल में रुचि ले रहे हैं। बीते कुछ समय में ही पोलोग्राउंड और पंजाब यूनिवर्सिटी में हाकी की प्रैक्टिस करने वाले खिलाडि़य़ों की संख्या पहले से 50 फीसद तक बढ़ गई है। पंजाब यूनिवर्सिटी के हाकी सेंटर में खिलाडिय़ों की संख्या 40 से बढ़कर 70 हो गई है,

जिसमें 40 बच्चे हैं। हाकी कोच मीनाक्षी रंधावा ने बताया कि हाकी के पुराने दिन लौट रहे हैं। अब युवा क्रिकेट के साथ-साथ हाकी में रुचि ले रहे हैं। वहीं जिला खेल अधिकारी शाश्वत राजदान ने बताया कि विभाग की तरफ से खेलों को प्रोत्साहित करने के मकसद से हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं।

झारखंड में गांव-गांव अर्जुन जंगलों और पहाड़ों से आच्छादित झारखंड के आदिवासी बहुल इलाकों के बच्चों का परिचय होश संभालते ही तीर-धनुष से हो जाता है। पारंपरिक हथियार के तौर पर लगभग हर जनजातीय परिवार के पास उपलब्ध इस तीर-धनुष को चलाना बच्चे कब और कैसे सीख जाते हैं, उन्हें भी इसका अंदाजा नहीं रहता।

बचपन से ही निशाना साधने में माहिर ऐसे ही अर्जुन को जब कोई द्रोणाचार्य मिल जाते हैं तो वह डोला बनर्जी, गोरा हो, दीपिका कुमारी, पलटन हांसदा व कोमोलिका बारी बनकर विश्व फलक पर छा जाते हैं। खासकर पिछले डेढ़ दशक में झारखंड के तीरंदाजों ने अपनी प्रतिभा के दम पर पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा है। विश्‍व स्‍तर पर पहचान स्थापित कर चुकीं दीपिका कुमारी ने जब तीरंदाजी शुरू की थी, तीरंदाजों को न तो आज की तरह सुविधाएं प्राप्त थीं और न ही राज्य में तीरंदाजी के पर्याप्त प्रशिक्षण केंद्र ही थे। टाटा आर्चरी अकादमी के बाद वर्तमान में जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा द्वारा सरायकेला-खारसांवा में स्थापित तीरंदाजी सेंटर के अलावा रांची के भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) केंद्र में ही तीरंदाजी का प्रशिक्षण दिया जाता था।

jagran

तीरंदाजी के क्षेत्र में दीपिका के मशहूर होने के बाद झारखंड में कई और सेंटर खुले, जिसमें रांची के सिल्ली और जोन्हा स्थित बिरसा मुंडा आर्चरी अकादमी शामिल है। राज्य सरकार द्वारा भी दुमका व रांची में सेंटर फार एक्सीलेंस खोला गया। कुछ अन्य सेंटर भी सरकार द्वारा प्रदेश में संचालित किए जा रहे हैं। टाटा आर्चरी अकादमी शुरू से ही अपने प्रशिक्षुओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं व प्रशिक्षण देता आया है।

यही वजह है कि देश के दूसरे राज्यों के तीरंदाज भी इस सेंटर से जुडऩे को बेताब रहते हैं। डोला बनर्जी, अतानु दास से लेकर दीपिका कुमारी व कोमोलिका बारी जैसे तीरंदाज इसी सेंटर से निकले हैं, जिन्होंने ओलिंपिक तक का सफर तय किया। दीपिका ने तो तीन ओलिंपिक में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। दीपिका ने पहली बार 2005 में खरसावां में तीरंदाजी सीखी फिर टाटा आर्चरी अकादमी से जुड़ गईं। 2006 में मैक्सिको के मेरिडा में आयोजित नौवीं जूनियर और तीसरी कैडेट विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप में पलटन ने स्वर्ण (कंपाउंड डिवीजन में) जीता।

jagran

वेटलिफ्टिंग में सुभाष ने कमाया नाम: छत्तीसगढ़ के रायपुर के गुढ़ियारी की घनी बस्ती में सतनामी पारा स्थित जय सतनाम व्यायाम शाला में सुबह पांच बजे से ही आवाजें गूंजने लगती हैं। यहां प्रतिदिन तीन सत्रों में 50 खिलाड़ियों को वेटलिफ्टिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है। मजदूर रामदास लहरे का घर नजदीक में ही है। उनका मझला बेटा सुभाष महज 11 साल की उम्र से अपने बड़े भाई करण के साथ रोज इस व्यायामशाला में जाता था। बड़े भाई को वेटलिफ्टिंग करते देख उसमें भी इसके प्रति जुनून पैदा हो गया।

वहीं, अपने बच्चों में वेटलिफ्टिंग के प्रति लगाव देखकर एक निजी अस्पताल में साफ-सफाई का कार्य करने वाली मां लक्ष्मीबाई लहरे ने बच्चों का हौसला बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके बाद कोच अजयदीप सारंग के कुशल मार्गदर्शन में सुभाष ने वर्ष 2017 में 14 साल की उम्र में सब-जूनियर स्कूल नेशनल चैंपियनशिप में छत्तीसगढ़ के लिए सिल्वर मेडल जीता। इसके बाद तो पदक जीतने का सिलसिला चल पड़ा। उसी वर्ष उसने जूनियर नेशनल चैंपियनशिप का गोल्ड मेडल जीता। सुभाष ने 18 साल की उम्र में वेटलिफ्टिंग में छत्तीसगढ़ को अलग पहचान दिलाई है। ‘खेलो इंडिया’ में एक कांस्य और एक सिल्वर, स्कूल गेम्स में दो कांस्य, दो सिल्वर एवं जूनियर में गोल्ड मेडल,सब-जूनियर स्कूल नेशनल में सिल्वर मेडल अपने नाम किया है।

यूनिवर्सिटी में खिलाड़ियों को उच्च स्तरीय प्रशिक्षण: लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर अशोक मित्तल ने बताया कि एलपीयू में हम खेलों के लिए विश्वस्तरीय बुनियादी सुविधाओं में निवेश करते हैं और शीर्ष स्‍तर के ट्रेनर नियुक्त करते हैं, ताकि हमारे छात्रों को सही प्रशिक्षण मिले और वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश को गौरवान्‍वित कर सकें। हम प्रतिभाशाली एथलीट्स को 100 फीसदी छात्रवृत्ति देते हैं,

जिसमें फीस में पूरी छूट, निःशुल्क लाजिंग और बोर्डिंग, खेल उपकरण खरीदने के लिए आर्थिक सहायता, विभिन्न टूर्नामेंट्स में हिस्सा लेने के लिए कोचिंग एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं शामिल हैं। यूनिवर्सिटी में बेहतरीन एकेडमी एवं स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर है, जिसमें ओलिंपिक साइज़ आल वेदर इंडोर स्विमिंग पूल, डाइविंग पूल और वार्मिंग अप पूल,16 बैडमिंटन कोर्ट, कई स्क्वैश कोर्ट, बास्केटबाल कोर्ट, शूटिंग रेंज आदि शामिल हैं। पिछले कुछ सालों में कई छात्रों ने नेशनल एवं इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की है। हमें विश्वास है कि आने वाले समय में बहुत से छात्र हमारे सुपरस्टार्स जैसे मंजू रानी, उन्नति शर्मा, अमोज, नीरज और निषाद से प्रेरित होंगे तथा हम सभी का मान बढ़ाएंगे।

Leave a Reply

error: Content is protected !!