Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
महिला उद्यमियों के समक्ष मौजूद चुनौतियों पर चर्चा होनी चाहिये. - श्रीनारद मीडिया

महिला उद्यमियों के समक्ष मौजूद चुनौतियों पर चर्चा होनी चाहिये.

महिला उद्यमियों के समक्ष मौजूद चुनौतियों पर चर्चा होनी चाहिये.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आदिकाल से ही महिलाएँ अनेक अत्याचारों का शिकार रही हैं। यद्यपि लैंगिक समानता संबंधी आंदोलन विश्व के अधिकांश हिस्सों में गति पकड़ रहे हैं, किंतु लैंगिक समानता की यह लड़ाई कोई नई बात नहीं है।

निस्संदेह, जब से महिलाओं के अधिकारों को लेकर ये आंदोलन शुरू हुए हैं तब से महिलाओं ने एक लंबा सफर तय किया है और पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों सहित सभी क्षेत्रों में स्वयं को साबित किया है।

हालांँकि, आज भी महिलाएंँ लिंग-आधारित और अन्य संबंधित सामाजिक पूर्वाग्रहों की कई चुनौतियों का सामना किये बिना शायद ही कभी जीत हासिल कर पाती हैं।

इस संदर्भ में, समाज में नेतृत्त्व और उद्यमशीलता की भूमिका चुनने के लिये महिलाओं को सक्षम बनाने में समाज, सरकार और स्वयं महिलाओं की एक प्रमुख भूमिका है।

भारत में उद्यमिता और महिलाएंँ:

  • महिला उद्यमियों का कम प्रतिनिधित्व: हाल के दशकों में भारत में तीव्र आर्थिक वृद्धि के बावजूद, अभी भी महिला उद्यमियों का संख्या काफी कम है।
    • भारत में केवल 20% उद्यम महिलाओं के स्वामित्व वाले हैं (जो कि 22 से 27 मिलियन लोगों को प्रत्यक्ष रोज़गार प्रदान करते हैं) और कोविड-19 महामारी ने महिलाओं उद्यमियों के इस प्रतिशत को ओर अधिक प्रतिकूल रूप से  प्रभावित किया है।
  • स्टार्टअप्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: केवल 6% महिलाएंँ भारतीय स्टार्टअप्स की संस्थापक हैं।
    • वर्ष 2018-2020 के मध्य कम-से-कम एक महिला सह-संस्थापक वाले स्टार्टअप्स द्वारा केवल 5% फंडिंग ही जुटाई जा सकी और केवल एकमात्र महिला संस्थापकों वाले स्टार्टअप्स कुल निवेशक फंडिंग का केवल 1.43% हिस्सा ही प्राप्त कर सके।
  • क्षेत्रवार प्रतिनिधित्त्व: इक्विटी व्यापार के स्वामित्त्व के मामले में भारत के विनिर्माण क्षेत्र (मुख्य रूप से कागज़ और तंबाकू उत्पादों से संबंधित) में महिलाओं द्वारा धारित हिस्सेदारी 50% से भी अधिक है।
  • हालाँकि कंप्यूटर, मोटर वाहन, धातु उत्पादों, मशीनरी और उपकरणों से संबंधित उद्योगों में महिलाओं की 2% या उससे भी कम की हिस्सेदारी देखी जाती हैं।
  • भारत की पहल: भारत सरकार द्वारा स्त्री शक्ति पैकेज, उद्योगिनी योजना, महिला उद्यम निधि योजना, स्टैंड अप इंडिया योजनामहिला ई-हाट, महिला बैंक, महिला कॉयर योजना और महिला उद्यमिता मंच (WEP) जैसी पहल के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं।

महिला उद्यमियों के समक्ष चुनौतियाँ:

  • क्षमताओं पर रूढ़िवादिता: महिलाओं को प्रायः पुरुषों के विपरीत ‘शारीरिक रूप से कमज़ोर’ माना जाता है, जबकि पारंपरिक रूप से पुरुषों को संरक्षक और रक्षक के रूप में देखा जाता है।
    • यद्यपि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि पुरुष और महिला शारीरिक रूप से भिन्न हैं, भले ही एक औसत पुरुष एक औसत महिला की तुलना में शारीरिक रूप से अधिक मज़बूत हो, लेकिन यह मानने का कोई औचित्य नहीं है कि प्रत्येक महिला शारीरिक रूप से कमज़ोर है।
  • ‘मस्तिष्क’ क्षमता का आकलन करने हेतु जैविक पहलुओं का उपयोग करना: एक पुरानी धारणा यह रही है कि पुरुष अधिक तार्किक होते हैं, जबकि महिलाओं को अधिक सहानुभूतिपूर्ण माना जाता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः महिलाओं को कुछ निश्चित व्यवसायों तक सीमित कर दिया जाता है।
    • हालाँकि यह तर्क सतही तौर पर कुछ लोगों के लिये तार्किक हो सकता है, लेकिन जब इसका उपयोग महिलाओं को कुछ क्षेत्रों में प्रवेश करने से रोकने के लिये किया जाता है तो इसका कोई अर्थ नहीं रह जाता।
    • पितृसत्तात्मक और पारिवारिक बाधाएँ: भले ही बहुत सी महिलाओं के पास ऐसे क्षेत्रों में शीर्ष पर पहुँचने की क्षमता और इच्छा होती है, लेकिन वे अक्सर समाज की पितृसत्तात्मक व्यवस्था द्वारा अपने सपनों को नकार देती हैं।
    • अंतर्निहित पूर्वाग्रह और चिंताएँ, की बेटियाँ पुरुष-उन्मुख क्षेत्र में स्वयं को किस प्रकार बनाए रखेंगी, भी उन्हें प्रगति करने से रोकती हैं।
    • इन्हीं चिंताओं के परिणामस्वरूप कई क्षेत्रों में महिला प्रतिनिधियों की संख्या में भारी कमी आ जाती है, जो केवल लिंग असंतुलन को और खराब करता है।
  • फंड से संबंधित बाधाएँ: महिला उद्यमियों के लिये फंड और स्पॉन्सरशिप तक आसान पहुँच तथा बुनियादी समर्थकों से वंचित होना कोई नई बात नहीं है।
    • बहुत से लोगों को वित्त के क्षेत्र में महिलाओं की क्षमताओं के बारे में आपत्ति है क्योंकि यह परंपरागत रूप से एक पुरुष-प्रधान क्षेत्र है जिसे इसका ‘तार्किक’ आधार बनाया जाता है।
  • महिला सलाहकारों की कमी: कम महिला व्यवसाय संस्थापकों के साथ महिलाओं का नेटवर्क, जो साथी महिला उद्यमियों को सलाह दे सकता है, फलस्वरूप काफी छोटा है।
    • महिला-स्वामित्त्व वाले स्टार्टअप्स के लिये एक प्रमुख बाधा महिलाओं के लिये रोल मॉडल की कमी है
    • महिलाओं के लिये व्यावसायिक नेटवर्क के मूल्य को अधिकतम करना भी कठिन है।

आगे की राह:

  • महिलाओं को नेतृत्व के लिये प्रोत्साहित करने वाली सुविधाएँ प्रदान करना: देश के आधे संभावित कार्यबल को सशक्त बनाना लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के अलावा महत्त्वपूर्ण आर्थिक लाभ भी प्रदान करता है।
    • महिला उद्यमिता के प्रमुख चालक बुनियादी ढाँचे और शिक्षा में निवेश हैं, जो भारत में महिलाओं द्वारा शुरू किये गए व्यवसायों के उच्च अनुपात की भविष्यवाणी करते हैं।
    • बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य, महिला श्रम-बल की भागीदारी को बढ़ावा दे सकता है, भेदभाव और वेतन अंतर को भी कम कर सकता है और बेहतर कॅरियर-उन्नति प्रथाओं एवं प्रयासों को प्रोत्साहित कर सकता है।
  • महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिये महिलाओं को बढ़ावा देना: ‘जेंडर नेटवर्क’ निस्संदेह उद्यमिता के लिये मायने रखता है। संबंधित उद्योगों और स्थानीय व्यवसायों में उच्च महिला स्वामित्व अधिक सापेक्ष महिला प्रवेश दर सुनिश्चित कर सकता है।
    • यहाँ मौजूदा महिला उद्यमियों को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है क्योंकि वे अन्य महत्त्वाकांक्षी महिला उद्यमियों तक पहुँच स्थापित कर सकती हैं और अपने स्वयं के ज़िलों, उद्योगों या कार्यक्षेत्र के भीतर और उन्हें मार्गदर्शन प्रदान कर सकती हैं।
    • वे विशेष रूप से स्थानीय व्यवसायों की मालिक बनने की इच्छुक महिलाओं के लिये सेमिनार या कार्यशालाएँ भी आयोजित कर सकते हैं।
  • महिला निवेशकों को प्रोत्साहित करना: अधिकांश निवेशक समूह पुरुषों से बने होते हैं और उनके नेतृत्व में होते हैं, जिसके चलते निवेश समितियाँ अधिकांशतः पुरुष-प्रधान होती हैं। ‘एंजल इनवेस्टर्स’ में सिर्फ 2% महिलाएँ ही हैं।
    • ऐसे अचेतन पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिये कम-से-कम एक या अधिक महिला निवेशकों को निवेश समूह में शामिल किया जा सकता है।
    • यदि निर्णय लेने वाले समूह में लिंग की विविधता है, तो इस बात की संभावना अधिक है कि धन चाहने वाली महिला को निष्पक्ष सुनवाई मिलेगी और संभवतः अधिक अनुकूल निर्णय प्राप्त होंगे।
  • सरकार की भूमिका: अधिकांश महिला उद्यमियों की राय है कि प्रशिक्षण की कमी के कारण वे बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर पाती हैं। सरकार को नई उत्पादन तकनीकों, बिक्री तकनीकों आदि के लिये लगातार प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना चाहिये और इसे महिला उद्यमियों के लिये अनिवार्य बनाना चाहिये।
    • सरकार महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने, ऋण के लिये सब्सिडी बढ़ाने और स्थानीय स्तर पर महिला उद्यमियों को माइक्रो क्रेडिट प्रणाली और उद्यम ऋण प्रणाली के प्रावधान करने के लिये ब्याज़ मुक्त ऋण भी प्रदान कर सकती है।
  • महिला सशक्तीकरण हेतु किये गए तमाम प्रयासों के बाद भी, महिलाओं को जीवन एवं कार्य के सभी क्षेत्रों में निर्विवाद रूप से संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है और अभी भी पितृसत्ता खत्म नहीं हो सकी है।
  • भारत को $5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने के लिये, महिलाओं द्वारा उद्यमिता को इसके आर्थिक विकास में एक बड़ी भूमिका निभानी चाहिये। भारत का लिंग संतुलन दुनिया में सबसे कम है और इसे सुधारना न केवल लैंगिक समानता के लिये बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!