सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त समिति ने तीनों कृषि कानूनों को बताया फायदेमंद.

सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त समिति ने तीनों कृषि कानूनों को बताया फायदेमंद.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

तीन कृषि कानूनों का अध्ययन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त की गई समिति (Supreme Court Appointed Panel) ने इन कानूनों को किसान हितैषी बताया था। साथ ही इनको निरस्त नहीं किए जानें की सिफारिश की थी। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक यह रिपोर्ट 19 मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई थी जिसे सोमवार को सार्वजनिक किया गया। मालूम हो कि पिछले साल नवंबर में संसद ने तीनों कानूनों को रद कर दिया था।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की तीन सदस्यीय समिति ने इन कृषि कानूनों में कई बदलावों का भी सुझाव दिया था। इन सुझावों में राज्यों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price, MSP) प्रणाली को कानूनी रूप देने की स्वतंत्रता भी शामिल थी। समिति के सदस्यों में से एक अनिल घनवट ने नई दिल्‍ली में रिपोर्ट के निष्कर्षों को संवाददाताओं के बीच जारी किया। उन्‍होंने बताया कि हमने 19 मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट को यह रिपोर्ट सौंपी थी।

स्वतंत्र भारत पार्टी के अध्यक्ष घनवट (Anil Ghanwat) ने बताया कि हमने सुप्रीम कोर्ट को तीन बार पत्र लिखकर इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने का अनुरोध किया था लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला था। चूंकि तीनों कानूनों को निरस्त कर दिया गया है इसलिए इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाती है। फ‍िर भी मैं इस रिपोर्ट को जारी कर रहा हूं। इस रिपोर्ट से भविष्य में कृषि क्षेत्र के लिए नीतियां बनाने में काफी सहूलियत होगी।

इसके साथ ही घनवट ने कहा कि इन कानूनों को निरस्त करना उस बहुसंख्‍य आबादी के खिलाफ होगा जो कृषि क्षेत्र में सुधारों और इन कानूनों का समर्थन करती है। रिपोर्ट के मुताबिक समिति के समक्ष कुल 73 किसान संगठनों ने अपनी बात रखी। कुल 61 किसान संगठनों ने इन कृषि कानूनों का समर्थन किया था। घनवट ने एक चौंकाने वाला दावा किया कि संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले आंदोलन करने वाले 40 संगठनों ने अपनी राय नहीं दी जबकि उनसे इसके लिए बार-बार गुजारिश की गई।

Leave a Reply

error: Content is protected !!