रिश्तों में माधुर्य, समृद्धि की आस और आशा के प्रकाश का संदेश है कोसी भरने की परंपरा

रिश्तों में माधुर्य, समृद्धि की आस और आशा के प्रकाश का संदेश है कोसी भरने की परंपरा

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कोसी भरने की विशेष परंपरा का परिपालन सीवान में भी श्रद्धाभाव से करते हैं छठ व्रती

✍️गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

लोक आस्था के महान पर्व छठ के दौरान कई परंपराओं का पालन श्रद्धाभाव से किया जाता है। खरना के प्रसाद के निर्माण से अस्ताचल सूर्य और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बीच कोसी भरने की परंपरा छठ पूजन की एक खास पहचान रही है। आम तौर पर श्रद्धालुओं की मान्यता यहीं रही है कि छठ माता जब कामना पूरी करती है तो उनका आभार व्यक्त करने के लिए कोसी भरा जाता है। परंतु कोसी भरने की परंपरा वास्तविक रूप में रिश्तों के माधुर्य, समृद्धि के आस और आशा के प्रकाश का संदेश दे जाती है।

गन्ने की छतरी बनाकर भरी जाती है कोसी

कोसी भरने की परंपरा में घर के आंगन या घाट के किनारे यथा संभव उपलब्ध स्थल पर गन्ने का मन्दिर बनाकर मिट्टी के पात्र में पूड़ी, ठेकुआ, अन्य शाक सब्जी और फल आदि रख कर उसमें दीपक जलाकर छठ माता की श्रद्धा भाव से पूजन किया जाता है। परंपरागत गानों को गाकर छठ माता से सुख समृद्धि के वरदान की याचना की जाती है। कोसी भरने की परंपरा का विशेष महत्व छठ पूजन में होता है।

मन्नतों के पूरे होने पर छठ माता का आभार होती है कोसी

एक सवाल यह हर श्रद्धालु के मन में यह जरूर उठता है कि आखिर छठ पूजन में कोसी भरने की परंपरा का संदेश क्या है? सामान्य तौर पर माना जाता है कि श्रद्धालुगण मन्नतों के पूरे होने पर छठ माता के प्रति आभार जताते हैं परंतु कोसी भरने की परंपरा का विशेष संदेश भी माना जाता है।

संकट का दौर भी गुजर जाता है
यदि…….

छठ पूजा में अस्ताचल भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद कोसी भरा जाता है। डूबते सूर्य को अर्घ्य इस आशा और विश्वास के साथ दिया जाता है कि उनका उदय भी होगा। अस्ताचल सूर्य और उदीयमान सूर्य के बीच का फासला ठीक वैसा ही होता है जैसा किसी संकट में फंसे व्यक्ति और संकट से उबरे व्यक्ति के बीच का होता है। संकट काल का दौर बेहद भयावह होता है, व्यथित करने वाला होता है, तनाव से भरा होता है। इस समय उम्मीद, धैर्य, आशा आदि भाव एक सकारात्मक परिवेश का सृजन करते हैं। इस संकट काल में व्यक्तिगत संबंधों का माधुर्य, अनाज शाक सब्जियों फल आदि की उपलब्धता यदि दैवीय कृपा से सुनिश्चित रहे तो संकटकाल आसानी से गुजर जाता है। इसी भाव को कोसी भरने की परंपरा में उद्घाटित करने का प्रयास किया जाता है।

गन्ना मिठास, माधुर्य का परिचायक

गन्ना यानी ईंख की फसल को मिठास का पर्याय माना जाता है। कोसी भरने के दौरान गन्ने को खड़ा कर मंदिर बनाने का प्रयास यहीं संदेश देता है कि पारिवारिक संबंधों में यदि मिठास हो और रिश्तों में माधुर्य हो तो किसी संकट का आसानी से सामना किया जा सकता है। मिट्टी के पात्र में ठकुआ, पूड़ी आदि अन्न से बनी खाद्य सामग्री के साथ शाक सब्जियों और फलों को रखकर छठ माता से यहीं कामना की जाती है कि घर परिवार का अन्नभंडार भरा रहे। कोसी भरने के दौरान दीपक का जलना अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का ही संकेत होता है। कुल मिलाकर सूर्य के उदय होने यानी खुशियों के आने, सफलता के मिलने के पूर्व यदि रिश्तों की मिठास कायम रहे, दैवीय कृपा से अन्ना भंडार भरा रहे तो संकट काल का सामना आसानी से हो पाएगा। इसलिए छठ माता की पूजा में कोसी को भरा जाता है।

कोसी नदी को शांत रहने का निवेदन भी….

हालांकि एक तथ्य यह भी रहा है कि बिहार में कोसी नदी को बिहार का शोक माना जाता रहा है। कोसी नदी प्रसन्न रहें और अपनी विकरालता से बिहार को बचाए की कामना भी कोसी भरने से संबंधित मानी जाती है। बरसात के दिनों में कोसी नदी में बाढ़ तो आता हो रहता है। कोसी नदी के किनारों पर तबाही का मंजर पसरा रहता है। इसलिए छठ माता की पूजा के दौरान कोसी नदी को प्रसन्न करने का भाव भी कोसी भरने की परंपरा से जुड़ा माना जा सकता है।

लोक आस्था का महापर्व छठ जीवन का संदेश है, जिंदगी की कहानी है। उस जिंदगी की जिसमें सुख आता है, दुख आता है। सफलता मिलती है असफलता मिलती है फिर भी जिंदगी चलती जाती है। कोसी भरने की परंपरा का निर्वहन भी अस्ताचल सूर्य और उदीयमान सूर्य के बीच के अवधि में ही होता है। जिसमें कोसी भरने की परंपरा रिश्तों में माधुर्य, जीवन में समृद्धि और प्रकाश का संदेश दे जाती है।
(विचार मंथन में सहयोग के लिए श्री पुष्पेंद्र पाठक का आभार)

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