आदि गुरु शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत दर्शन में संसार की समस्त समस्याओ का समाधान विद्यमान है : डा. श्रीप्रकाश मिश्र
मातृभूमि सेवा मिशन के तत्वावधान में आदि गुरु शंकराचार्य जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा अद्वैत दर्शन संवाद कार्यक्रम आयोजित
श्रीनारद मीडिया, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, हरियाणा
सनातन वैदिक धर्म व संस्कृति के पुनरुद्धारक आदि गुरु शंकराचार्य ने समाज में व्याप्त विभिन्न धार्मिक विरोधाभास, भ्रम व चुनौतियों को ध्वस्त कर अद्वैत वेदांत के सिद्धान्त से सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण का मार्ग दिखाया। अल्पायु में ही अपने ज्ञान व दर्शन से वैदिक संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए आदि शंकराचार्य जी ने पूरे भारत में अपने पुरुषार्थ से जन जन में अध्यात्म व सांस्कृतिक चेतना को जागृत किया व चार दिशाओं में चार मठ स्थापित कर भारत को आध्यात्मिक एकता के सूत्र में बांधने का भगीरथ कार्य किया।
यह विचार आदि गुरु शंकराचार्य जयंती के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा आयोजित अद्वैत दर्शन संवाद कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के ब्रम्हचारियों ने आचार्य शंकर के चित्र माल्यार्पण, पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्ज्वलन से किया। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के ब्रहचारियों ने आचार्य आदि गुरु शंकराचार्य के जीवन से सम्बन्धित प्रेरक रसंग भी प्रस्तुत किये।
ब्रम्हचारियों को सम्बोधित करते हुए मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा शंकराचार्य एक महान समन्वयवादी थे। उन्हें सनातन धर्म को पुनः स्थापित एवं प्रतिष्ठित करने का श्रेय दिया जाता है। एक तरफ उन्होने अद्वैत चिन्तन को पुनर्जीवित करके सनातन हिन्दू धर्म के दार्शनिक आधार को सुदृढ़ किया, तो दूसरी तरफ उन्होने जनसामान्य में प्रचलित मूर्तिपूजा का औचित्य सिद्ध करने का भी प्रयास किया।
आदि गुरु शंकराचार्य का सामाजिक दर्शन मुख्य रूप से अद्वैतवाद पर आधारित है। वे भारतीय समाज को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए, विभिन्न मतों, संप्रदायों और पूजा पद्धतियों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए प्रयासरत थे। आदि गुरु शंकराचार्य ने भारतीय सनातन परम्परा को पूरे देश में फैलाने के लिए भारत के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठों की स्थापना, चारों कुंभों की व्यवस्था, वेदांत दर्शन के शुद्धाद्वैत संप्रदाय के शाश्वत जागरण के लिए दशनामी नागा संन्यासी अखाड़ों की स्थापना, पंचदेव पूजा प्रतिपादन उन्हीं की देन है। आदि गुरु शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत दर्शन में संसार की समस्त समस्याओ का समाधान विद्यमान है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा आदि शंकराचार्य ने मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में संपूर्ण भारतवर्ष का तीन बार पैदल भ्रमण कर बख़ूबी समझा और निरंतर साधना के बल पर प्रत्यक्ष अनुभव किया था। संभवतः यही कारण रहा कि वे राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के स्थाई, मान्य एवं व्यावहारिक सूत्र और सिद्धांत देने में सफल रहे। पूरब से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण तक राष्ट्र को एकता एवं अखंडता के सुदृढ़ सूत्र में पिरोने में उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली।
सुदूर दक्षिण में जन्म लेकर भी वे संपूर्ण भारतवर्ष की रीति, नीति, प्रकृति एवं प्रवृत्ति को भली-भाँति समझ पाए। वेदों, उपनिषदों, पुराणों एवं महाकाव्यों में बताया गया है कि ईश्वर सृष्टि के कण-कण में विद्यमान हैं। उन्होंने उस समय प्रचलित विभिन्न मत, पंथ, जाति आदि के बीच समन्वय स्थापित कर अद्वैतवाद का दर्शन दिया। उनका अद्वैत दर्शन सब प्रकार के भेद, संघर्ष, अलगाव व दूरी को मिटाकर आत्मा को परमात्मा, जीव को ब्रह्म तथा व्यक्ति-व्यक्ति को प्रकृति और पर्यावरण से जोड़ने का माध्यम है। कार्यक्रम का समापन विश्वमंगल की प्रार्थना से हुआ। कार्यक्रम में आश्रम के सदस्य, विद्यार्थी आदि उपस्थित रहे।
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