Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
कारीगरों के मान के साथ ‘कार्यशाला’ का हुआ समापन” - श्रीनारद मीडिया

कारीगरों के मान के साथ ‘कार्यशाला’ का हुआ समापन”

कारीगरों के मान के साथ ‘कार्यशाला’ का हुआ समापन”

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

गत 28 मार्च को कारीगर यंत्र पर पूजन एवं दीप प्रज्जवलन के साथ आरम्भ हुई कार्यशाला का समापन कारीगरों के मान के साथ सम्पन्न हुआ।जीविका आश्रम में गत दिनों ‘संस्कृति एवं पर्यावरण’ विषय पर एक 7 दिवसीय आवासीय कार्यशाला का आयोजन हुआ, जिसमें देश-विदेश के बहुत से युवा प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का शुभारंभ 28 मार्च को पूर्व आईएएस ऑफिसर श्री वेद प्रकाश जी के हाथों से पारंपरिक तरीके से कारीगर यंत्र रूपी ग्राम देवता के पूजन से हुआ।

जीविका आश्रम परिसर में इस बार आयोजित हो रही कार्यशाला का स्वरूप पूरी तरह से भिन्न था।प्रतिभागी सुबह 5 बजे उठकर, नहा-धोकर तैयार होकर, 6.30 बजे से 9.00 बजे तक अलग-अलग समूहों में अलग-अलग कारीगरों के साथ काम करने में जुट जाते थे। पाँच-छह भिन्न-भिन्न समूहों में उन्होंने गाँव के पारम्परिक कारीगरों के साथ बाँस, मिट्टी, लोहा, सूत-कताई, झाड़ू, दर्जीगिरी, आदि का काम किया। जहाँ बाकी कामों से तो गाँव वाले पूरी तरह से परिचय थे, पर चरखे पर सूत की कताई को देखने-समझने की उत्सुकता उनमें भी खूब दिखी। आश्रम में उपलब्ध दो पेटी-चरखों पर मैसूर, कर्नाटक से आये गाँधीवादी श्री अभिलाष जी ने बहुत से लोगों को सूत कातना सिखाया। प्रातःकालीन इन सत्रों ने प्रतिभागियों के कारीगरों के काम के व्यवहारिक पक्ष को प्रत्यक्ष रूप से समझने में बहुत मदद की।


तत्पश्चात प्रातः जलपान के बाद उनसे विभिन्न विषयों — ग्राम व्यवस्था, उसकी सभ्यता, संस्कृति, पर्यावरण, गाँव की अर्थव्यवस्था, आधुनिकता के दुष्प्रभाव, आदि पर विस्तार से बातचीत एवं चर्चा होती थी। इसके बाद सन्ध्या-पूर्व के सत्रों में गाँव से नजदीकी परिचय हेतु गाँव भ्रमण, जंगल भ्रमण, खेत भ्रमण, नदी भ्रमण, आदि भी शामिल किया गया था, ताकि चर्चा बौद्धिक एवं मानसिक मात्र न होकर अधिकाधिक व्यवहारिक बन सके।

गाँव की जीवनशैली की बात हो, और गीत-संगीत की बात न हो, उससे प्रत्यक्ष परिचय न हो, यह संभव नहीं है। आश्रम में प्रतिदिन होने वाली सन्ध्या प्रार्थना के साथ-साथ, कार्यशाला के दौरान दिन में नजदीकी गाँव के एक तंबूरा बाबा आकर तम्बूरे के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे, वहीं शाम को भोजन के नजदीकी सत्र में एक दिन भजन-सन्ध्या का आयोजन हुआ, तो एक दिन विवेचना रंगमंडल के श्री आशुतोष द्विवेदी जी द्वारा अभिनीत एकल नाटक ‘मखमल की म्यान’ की प्रस्तुति एवं उस पर चर्चा हुई।


इस पूरी कार्यशाला में देशभर के 12 राज्यों के अतिरिक्त जर्मनी की भी एक प्रतिभागी शामिल हुई। ये सभी प्रतिभागी 22 से लेकर 35 वर्ष के युवा प्रतिभागी ही थे, जो आज की बदलती हुई आर्थिक, सांस्कृतिक व सामाजिक परिस्थितियों के जन सामान्य पर हो रहे असर और उसके व्यवस्थात्मक पक्ष को लेकर चिन्तित हैं, एवं उस पर अपने-अपने स्तर पर, अपने-अपने ढंग से कार्य कर रहे हैं।
कार्यशाला का समापन, कारीगरों के सम्मान के साथ सम्पन्न हुआ। समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों एवं कारीगरों ने अपने-अपने अनुभव और विचार रखे, और इस तरह की कार्यशालाओं को भविष्य में भी आयोजित किये जाने पर जोर दिया।

Leave a Reply

error: Content is protected !!